नई दिल्ली:
दिल्ली के अशोक विहार इलाके में दिल्ली नगर निगम के लिए हो रही वोटिंग के बीच कुछ मतदाता ऐसे भी थे, जिनके सामने धर्मसंकट की स्थिति थी. धर्मसंकट ये कि उनके यहां जिन उम्मीदवारों ने जमकर प्रचार किया या उनके घर आकर मान-मनोव्वल करके वोट मांगे और जिनको वोट देने का मन यहां के लोगों ने बनाया, वो मतदान से ठीक पहले उनके उम्मीदवार ही नहीं रहे.
दरअसल हुआ ऐसा कि दिल्ली के अशोक विहार इलाके के करीब 2500 मतदाताओं का नाम शुक्रवार 21 अप्रैल को यानी प्रचार खत्म होने वाले अशोक विहार वार्ड से हटाकर वज़ीरपुर वार्ड में शिफ़्ट कर दिया गया. इसके चलते जिन उम्मीदवारों ने इस इलाके में प्रचार किया और जिसके बारे में सोच समझकर वोट देने का मन यहां के लोगों ने बनाया, वो इन लोगों के उम्मीदवार ही नहीं रहे.
अशोक विहार जी ब्लॉक के RWA महासचिव दिनेश गुप्ता ने बताया कि 21 तारीख को रिटर्निंग अफसर का लेटर आया, जिससे हम लोगों को अशोक विहार की बजाय अचानक वज़ीरपुर वार्ड का वोटर बना दिया गया. अब जब हम उन उम्मीदवारों का जानते ही नहीं और वो कभी हमसे मिले नहीं तो हम उनको वोट कैसे दे दें? ये हमारे मौलिक अधिकारों का हनन है जिसकी हमने चुनाव आयोग से शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.'
पहली बार वोट डालने वाले भास्कर ने बताया, 'मैंने इस बार सभी उम्मीदवारों से बात करके वोट डालने का सोचा हुआ था और अपने दोस्तों को भी बताया कि इनको वोट देना लेकिन सब बेकार हो गया, क्योंकि वो अब हमारे कैंडिडेट ही नहीं रहे.'
रिटर्निंग अफसर के पत्र के मुताबिक वोटर लिस्ट में कुछ गड़बड़ी थी जिसको ठीक करने के लिए ऐसा किया गया है. देश में चुनाव पर्चा दाखिल करने के बाद वोटिंग तक करीब दो हफ्ते का समय होता है प्रचार के लिए. इसमें उम्मीदवार अपने वोटर को रिझाने की कोशिश करता है और वोटर अपने उम्मीदवार को देखकर, जानकर, समझकर मन बनाता है कि किसको वोट करना या नहीं करना है. लेकिन इस मामले में एक तो वोटर और मतदाता एक दूसरे से रूबरू नहीं हो पाए और दूसरा जिन उम्मीदवारों ने इन वोटर को अपना माना और जिन वोटरों ने इन उम्मीदवारों को अपना माना, दोनों के साथ धोखा हुआ सो अलग.
अब सोचने वाली बात है कि जब वोटर को अपने उम्मीदवार की जानकारी ही नहीं रही होगी तो वोटर बस पार्टी के आधार पर ही वोट देकर आया होगा या फिर हो सकता है कि वोटर ने वोटिंग के लिए दिलचस्पी ही ना दिखाई हो. वैसे भी नगर निगम का चुनाव बेहद लोकल होता है और इसमें उम्मीदवार सबसे अहम माना जाता है.
दरअसल हुआ ऐसा कि दिल्ली के अशोक विहार इलाके के करीब 2500 मतदाताओं का नाम शुक्रवार 21 अप्रैल को यानी प्रचार खत्म होने वाले अशोक विहार वार्ड से हटाकर वज़ीरपुर वार्ड में शिफ़्ट कर दिया गया. इसके चलते जिन उम्मीदवारों ने इस इलाके में प्रचार किया और जिसके बारे में सोच समझकर वोट देने का मन यहां के लोगों ने बनाया, वो इन लोगों के उम्मीदवार ही नहीं रहे.
अशोक विहार जी ब्लॉक के RWA महासचिव दिनेश गुप्ता ने बताया कि 21 तारीख को रिटर्निंग अफसर का लेटर आया, जिससे हम लोगों को अशोक विहार की बजाय अचानक वज़ीरपुर वार्ड का वोटर बना दिया गया. अब जब हम उन उम्मीदवारों का जानते ही नहीं और वो कभी हमसे मिले नहीं तो हम उनको वोट कैसे दे दें? ये हमारे मौलिक अधिकारों का हनन है जिसकी हमने चुनाव आयोग से शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.'
पहली बार वोट डालने वाले भास्कर ने बताया, 'मैंने इस बार सभी उम्मीदवारों से बात करके वोट डालने का सोचा हुआ था और अपने दोस्तों को भी बताया कि इनको वोट देना लेकिन सब बेकार हो गया, क्योंकि वो अब हमारे कैंडिडेट ही नहीं रहे.'
रिटर्निंग अफसर के पत्र के मुताबिक वोटर लिस्ट में कुछ गड़बड़ी थी जिसको ठीक करने के लिए ऐसा किया गया है. देश में चुनाव पर्चा दाखिल करने के बाद वोटिंग तक करीब दो हफ्ते का समय होता है प्रचार के लिए. इसमें उम्मीदवार अपने वोटर को रिझाने की कोशिश करता है और वोटर अपने उम्मीदवार को देखकर, जानकर, समझकर मन बनाता है कि किसको वोट करना या नहीं करना है. लेकिन इस मामले में एक तो वोटर और मतदाता एक दूसरे से रूबरू नहीं हो पाए और दूसरा जिन उम्मीदवारों ने इन वोटर को अपना माना और जिन वोटरों ने इन उम्मीदवारों को अपना माना, दोनों के साथ धोखा हुआ सो अलग.
अब सोचने वाली बात है कि जब वोटर को अपने उम्मीदवार की जानकारी ही नहीं रही होगी तो वोटर बस पार्टी के आधार पर ही वोट देकर आया होगा या फिर हो सकता है कि वोटर ने वोटिंग के लिए दिलचस्पी ही ना दिखाई हो. वैसे भी नगर निगम का चुनाव बेहद लोकल होता है और इसमें उम्मीदवार सबसे अहम माना जाता है.
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