- नागपुर नगर निगम की सत्ता पिछले 15 सालों से बीजेपी के पास है और इस बार 125 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है.
- बीजेपी अकेले 143 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि शिंदे गुट को महज आठ सीटें मिली हैं.
- कांग्रेस ने महाविकास अघाड़ी से गठबंधन न करके सभी 151 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है.
महाराष्ट्र की उपराजधानी और संघ मुख्यालय का शहर यानी नागपुर की नगर निगम NMC की राजनीति को समझना मतलब राज्य की सत्ता की नब्ज को समझना है. पिछले 15 सालों से नागपुर नगर निगम की सत्ता की चाबी BJP के पास है. तीन बार से लगातार मेयर बीजेपी का ही रहा है और अब पार्टी चौका मारने की चाहत रख रही है.
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बीजेपी का मिशन 125 और शिंदे गुट की मजबूरी!
साल 2017 के चुनाव में बीजेपी ने रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन करते हुए 108 सीटें जीती थीं और पहली बार 100 का आंकड़ा पार किया था. इस बार बीजेपी ने खुद के लिए 125 सीटों का लक्ष्य रखा है, हालांकि, गठबंधन की राजनीति में बीजेपी यहां बड़े भाई की भूमिका में पूरी तरह हावी है.
पार्टी खुद 143 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि एकनाथ शिंदे की शिवसेना को महज 8 सीटें दी गई हैं. दिलचस्प और चर्चा वाली बात यह है कि शिंदे गुट को दी गई इन 8 सीटों में से भी 5 उम्मीदवार मूल रूप से बीजेपी के ही हैं, जो केवल गठबंधन के धर्म के लिए शिंदे के सिंबल धनुष-बाण पर चुनाव लड़ रहे हैं.
कांग्रेस का “एकला चलो रे” की रणनीति
विपक्ष की बात करें तो कांग्रेस ने इस बार चौंका दिया है. चुनाव की घोषणा से पहले तक चर्चा थी कि महाविकास अघाड़ी नागपुर में मिलकर चुनाव लड़ेगी. शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) के साथ कई दौर की बैठकें हुईं, लेकिन अंत में बात नहीं बनी.
कांग्रेस ने साफ कर दिया कि वह किसी के साथ गठबंधन नहीं करेगी और सभी 151 सीटों पर सोलो यानी अकेले चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस को लगता है कि गठबंधन में रहने से उसके वोट शेयर में गिरावट आती है, इसलिए उसने अकेले दम पर बीजेपी के किले में सेंधमारी की योजना बनाई है.
नागपुर का सियासी समीकरण, किसका कहां प्रभाव?
नागपुर को पारंपरिक रूप से नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस का पावर सेंटर माना जाता है. यहां का गडकरी मॉडल और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का राजनीतिक कौशल बीजेपी की सबसे बड़ी मजबूती है.
वहीं, कांग्रेस का प्रभाव पुराने शहर और दलित-मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में बना हुआ है, बहुजन समाज पार्टी (BSP), जो कभी यहां मुख्य विपक्षी पार्टी हुआ करती थी, अब लगातार कमजोर पड़ रही है, इसी कमजोरी का फायदा उठाने के लिए प्रकाश अंबेडकर की 'वंचित बहुजन अघाड़ी' भी मैदान में है.
छोटे खिलाड़ी बिगाड़ेंगे बड़े दलों का खेल?
इस बार मुकाबला केवल दोतरफा नहीं है. शरद पवार की एनसीपी (NCP-SP) 79 सीटों पर अपनी किस्मत आजमा रही है. हालांकि इतिहास गवाह है कि नागपुर में एनसीपी कभी 12 सीटों का आंकड़ा पार नहीं कर पाई, जिसके चलते इसे यहां वोट कटवा पार्टी के तौर पर भी देखा जाता है. वहीं, उद्धव ठाकरे की सेना (UBT) 56 सीटों पर लड़ रही है. याद रहे कि 2012 में जब शिवसेना अविभाजित थी, तब उसे केवल 6 सीटें मिली थीं.
मैदान में अजित पवार की एनसीपी भी 96 उम्मीदवारों के साथ ताल ठोक रही है, जबकि राज ठाकरे की MNS ने भी 22 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. इतने सारे खिलाड़ियों के मैदान में होने से यह साफ है कि हर वार्ड में वोटों का जबरदस्त बंटवारा होगा, जिसका सीधा असर चुनाव परिणाम पर पड़ेगा.
कांग्रेस के पास खुद को साबित करने की चुनौती
बीजेपी के लिए यह चुनाव अपनी साख को बचाए रखने का है, तो कांग्रेस के लिए यह साबित करने का मौका है कि वह बिना किसी बैसाखी के बीजेपी को टक्कर दे सकती है. देवेंद्र फडणवीस शुरुआत से ही नागपुर के राजनीतिक इतिहास में बेहद चर्चित चेहरा रहे हैं वो 1997 में महज 27 साल की उम्र में नागपुर के मेयर बने थे. उस समय वह देश के दूसरे सबसे कम उम्र के मेयर थे. उन्होंने 1997 से 1999 तक मेयर के रूप में काम किया. इसके बाद जब महाराष्ट्र में 'मेयर-इन-काउंसिल' सिस्टम लागू हुआ, तो वह फिर से चुने गए.
मेयर के तौर पर उन्होंने प्रॉपर्टी टैक्स सुधार और निगम की आय बढ़ाने के लिए जो कड़े फैसले लिए, उसी ने उन्हें बाद में मुख्यमंत्री पद तक पहुंचाने में मदद की. नागपुर बीजेपी का पॉवरहाउस कहलाता है, गडकरी और फडणवीस की जोड़ी ने यहां विकास के बड़े काम (मेट्रो, फ्लाईओवर्स) किए हैं, जो उनकी सबसे बड़ी ताकत है. आरएसएस का मुख्यालय होने के कारण संगठन की पकड़ यहां बेहद मजबूत है.
कोशिशों में जुटी वंचित बहुजन अघाड़ी
कांग्रेस का प्रभाव मुख्य रूप से उत्तर और मध्य नागपुर के इलाकों में है, जहां दलित, मुस्लिम और अल्पसंख्यक वोट निर्णायक भूमिका में हैं. NCP (शरद पवार) और शिवसेना (UBT) की ताकत यहां हमेशा सीमित रही है. बसपा (BSP) एक समय यहां किंगमेकर हुआ करती थी, लेकिन अब उसका आधार लगभग खत्म हो चुका है और उसकी जगह वंचित बहुजन अघाड़ी लेने की कोशिश कर रही है.
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