हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक रहीं मुंबई (Mumbai) की रामलीलाएं (Ramleelas) अब नए रूप में ढल गई हैं, जिसमें मुस्लिम दर्शक और कलाकार नदारद हैं. इसके कारण कई आयोजक निराश हैं. साथ ही रामलीलाओं को देखने के लिए नाम मात्र के लोग आ रहे हैं. खाली कुर्सियां और ना के बराबर प्रायोजकों ने आयोजकों की चिंता को और बढ़ा दिया है. मुंबई में रामलीलाओं को लेकर आजकल चल रहे संघर्ष का इनसे पता चलता है.
मुंबई की सबसे पुरानी रामलीला दक्षिण मुंबई के क्रॉस मैदान में 1958 से चली आ रही है. आयोजक कहते हैं कि बस कुछ और साल खींच पाएंगे. अब हिम्मत नहीं बची है.
उन्होंने कहा कि एक तो कार्यक्रम ही ढंग से नहीं बढ़ा पा रहे हैं, उस पर कलाकारों पर कहां से खर्च कर पाएंगे. उन्होंने कहा कि कुछ साल और खींच पाएंगे. सरकार भी मदद नहीं करती है, बस राम नाम जपने से क्या होगा.
अलग रूप ले चुकी हैं मुंबई की रामलीलाएं
गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करने वाली मुंबई की रामलीलाएं वक्त के साथ अलग रूप ले चुकी हैं. आजाद मैदान की रामलीला करीब 45 साल पुरानी है. आजकल मुस्लिम दर्शकों का ना पहुंचना आश्चर्यचकित नहीं करता, लेकिन कम हिंदू दर्शक इन्हें जरूर निराश करते हैं.
पिछले आठ-दस सालों में बहुत कुछ बदला
रामलीला समितियां बताती हैं कि मुंबई की रामलीलाओं में पहले बड़ी संख्या में दर्शक और कार्यकर्ता मुसलमान होते थे. साथ ही मुस्लिम कलाकार रामलीला मंचन में जमकर भाग लेते थे., लेकिन आठ से दस बरसों में सब बदल गया है.
हालांकि मुंबई की मलाड रामलीला में अच्छी खासी संख्या में दर्शक दिखे. इन्हें खींचने के लिए एलईडी स्क्रीन जैसी कई हाईटेक तकनीकों पर खर्च से फायदा हुआ है. हालांकि मुस्लिम दर्शक यहां भी नदारद हैं.
एक लड़की ने कहा कि मैं गरबा भी जाती हूं और इस बार यहां पर आई हूं. डैड ने बोला चलो. यहां आकर अच्छा लगा. हमें तो इस बारे में पता ही नहीं था. वहीं लड़की के पिता ने कहा कि इसे पसंद आया, मैं चाहता था कि यह यहां आकर देखे.
रामलीला को यूनेस्को ने 2008 में "मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत" में से एक घोषित किया था. जाति, धर्म, या उम्र के भेदभाव के बिना पूरी आबादी को एक साथ लाने की पारंपरिक प्रदर्शन कला का आज बदला रूप मुंबई के कई आयोजकों को निराश कर रहा है.
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