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This Article is From Nov 14, 2019

महाराष्ट्र में जिस 50-50 फॉर्मूले पर टूटा BJP-शिवसेना का गठबंधन, अब उसी ब्लूप्रिंट पर बन सकती है नई सरकार 

महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन जिस 50-50 फॉर्मूले को लेकर टूटा, अब वही फॉर्मूला राज्य में सरकार गठन का ब्लूप्रिंट साबित हो सकता है.

महाराष्ट्र में जिस 50-50 फॉर्मूले पर टूटा BJP-शिवसेना का गठबंधन, अब उसी ब्लूप्रिंट पर बन सकती है नई सरकार 
सूत्रों का कहना है कि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के बीच सरकार गठन को लेकर सहमति बन गई है.
  • 50-50 फॉर्मूले को लेकर बीजेपी-शिवसेना हुए थे अलग
  • अब उसी फॉर्मूले के तहत राज्य में बन सकती है सरकार
  • सूत्रों के मुताबिक शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी में बनी सहमति
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मुंबई:

महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन जिस 50-50 फॉर्मूले को लेकर टूटा, अब वही फॉर्मूला राज्य में सरकार गठन का ब्लूप्रिंट साबित हो सकता है. एनडीटीवी को सूत्रों ने बताया कि शिवसेना, कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी के बीच राज्य में सरकार गठन को लेकर एक सामान्य सहमति बन गई है. हालांकि कांग्रेस नेतृत्व पहले शिवसेना के साथ गठजोड़ को तैयार नहीं था और बाहर से समर्थन देने की बात भी चल रही थी, लेकिन अब शिवसेना और एनसीपी के सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस भी सरकार में शामिल हो सकती है. बताया जा रहा है कि शरद पवार की पार्टी एनसीपी में शिवसेना के साथ मुख्यमंत्री पद साझा करने को लेकर लगभग सहमति बन गई है. विधानसभा चुनावों में एनसीपी को शिवसेना से सिर्फ दो सीटें कम मिली हैं.

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सूत्रों का कहना है कि सरकार के पहले ढाई साल में उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना का सीएम होगा, वहीं आखिरी ढाई साल मुख्यमंत्री का पद एनसीपी के पास होगा. आपको बता दें कि मुख्यमंत्री पद साझा करने को लेकर ही बीजेपी और शिवसेना के बीच गतिरोध पैदा हुआ और दोनों दलों के रास्ते जुदा हो गए. दूसरी तरफ,  बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने सरकार बनने की स्थिति में पूरे पांच साल के लिए डिप्टी सीएम पद की मांग की है. साथ ही, विधानसभा अध्यक्ष का पद भी कांग्रेस के हिस्से में जा सकता है.

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वहीं, दूसरी तरफ मंत्री पद का बंटवारा तीनों दलों के बीच बराबर होगा. हालांकि अभी इस बात पर चर्चा नहीं हुई है कि गृह और वित्त जैसे अहम मंत्रालय किस दल के हिस्से में जाएंगे. इसके अलावा कांग्रेस और एनसीपी ने यह शर्त भी रखी है कि अगर शिवसेना की तरफ से उद्धव ठाकरे सीएम बनते हैं, तो उन्हें विचारधारात्मक मतभेदों को किनारे रखना होगा और वे अयोध्या जैसे मुद्दों पर नहीं बोलेंगे. 

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