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टाइगर स्टेट… या टाइगर कब्रिस्तान? एमपी में 2025 बना बाघों के लिए 'काल', 54 मौतों से दहला जंगल

Tiger State Madhya Pradesh: बाघों की गिनती पर तालियां बटोरने वाला मध्य प्रदेश अब उनकी लाशों का हिसाब देने में नाकाम साबित हो रहा है. साल 2025 में 54 बाघों की मौत ने 'टाइगर स्टेट' के तमगे को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है.

टाइगर स्टेट… या टाइगर कब्रिस्तान? एमपी में 2025 बना बाघों के लिए 'काल', 54 मौतों से दहला जंगल

MP Tiger Death News: मध्य प्रदेश...जिसे पूरी दुनिया 'टाइगर स्टेट'के नाम से जानती है. यहां बाघों की बढ़ती संख्या पर तालियां बजती हैं और जश्न मनाए जाते हैं. लेकिन आज उसी प्रदेश से एक डरावनी तस्वीर सामने आ रही है. मध्य प्रदेश के जंगलों में इन दिनों बाघों की दहाड़ से ज्यादा उनकी लाशों का शोर है. एक के बाद एक रहस्यमयी मौतें और एक हफ्ते के भीतर छह बाघों का खत्म हो जाना कई बड़े सवाल खड़े कर रहा है. सवाल ये है कि क्या हम बाघों को बचाने में वाकई कामयाब हैं, या टाइगर स्टेट अब धीरे-धीरे 'टाइगर कब्रिस्तान' में तब्दील हो रहा है?

एक हफ्ते में 6 मौतें और टूटते सारे रिकॉर्ड

दरअसल मध्यप्रदेश में बाघों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. शनिवार को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से फिर एक बाघ की लाश मिली. यह शव उमरिया जिले के चंदिया फॉरेस्ट रेंज में एक पावर लाइन के पास मिला, जहां बाघों की गिनती का काम चल रहा था. वन विभाग को आशंका है कि बाघ की मौत बिजली के झटके (करंट) से हुई है.लेकिन यह कोई इकलौती घटना नहीं है. साल 2025 अभी खत्म भी नहीं हुआ है और मध्य प्रदेश में अब तक 54 बाघों की मौत हो चुकी है. 1973 में 'प्रोजेक्ट टाइगर' शुरू होने के बाद से यह एक साल में मौतों का सबसे बड़ा और खौफनाक आंकड़ा है.

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आपसी लड़ाई या सिस्टम की ढिलाई?

हैरानी की बात यह है कि विभाग की फाइलों में अधिकांश मौतों की वजह 'आपसी लड़ाई' यानी टेरिटोरियल फाइट बता दी जाती है. लेकिन आंकड़ों की गहराई में जाएं तो पता चलता है कि 2025 में हुई कुल मौतों में से 57 फीसदी मौतें अप्राकृतिक हैं. इनमें शिकार, करंट और अज्ञात कारण शामिल हैं. वन विभाग के राज्यमंत्री दिलीप अहिरवार कहते हैं कि विभाग हर घटना पर नजर रखे हुए है और एक्सपर्ट टीम जांच कर रही है. लेकिन हकीकत यह है कि बिजली के तारों से हो रहा शिकार और जंगलों में शिकारियों की मौजूदगी वन विभाग के खुफिया तंत्र की विफलता को उजागर कर रही है.

अंतरराष्ट्रीय शिकारी और बर्फीली पहाड़ियों में ऑपरेशन

हाल ही में एक बड़ी कामयाबी जरूर मिली जब अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव तस्करी की मास्टरमाइंड यांगचेन लाखुंगपा को सिक्किम से गिरफ्तार किया गया. इंटरपोल के रडार पर रही इस अपराधी को पकड़ने के लिए -7 डिग्री तापमान में बर्फ के बीच बड़ा ऑपरेशन चलाया गया. उसका नेटवर्क भारत से लेकर नेपाल, तिब्बत और चीन तक फैला था.

लेकिन जानकारों का मानना है कि जब तक जमीनी स्तर पर निगरानी नहीं सुधरेगी, ऐसे मास्टरमाइंड के पकड़े जाने के बाद भी बाघों की जान पर खतरा बना रहेगा.

वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे कहते हैं कि प्रोजेक्ट टाइगर के इतिहास में यह सबसे बुरा साल है और विभाग का निगरानी तंत्र पूरी तरह फेल हो चुका है.

जांच के नाम पर पर्यटकों पर पाबंदी

बाघों की सुरक्षा के नाम पर वन विभाग ने अब कोर जोन में पर्यटकों के मोबाइल ले जाने पर पाबंदी लगा दी है. इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि जिप्सी चालक बाघों के ज्यादा करीब चले जाते हैं. लेकिन इस फैसले का विरोध भी शुरू हो गया है. जानकारों का कहना है कि गाइड और ड्राइवर मोबाइल के जरिए ही जंगल की समस्याओं या किसी आपात स्थिति की जानकारी विभाग को देते हैं. मोबाइल बंद करने से पारदर्शिता खत्म होगी और जंगल के भीतर क्या हो रहा है, यह बाहर आना और मुश्किल हो जाएगा.

फाइलों में दबी लापरवाही की दास्तान

पिछले साल वन विभाग की एक आंतरिक रिपोर्ट ने चौंकाने वाले खुलासे किए थे. रिपोर्ट के मुताबिक, बांधवगढ़ जैसे बड़े रिजर्व में बाघों की मौत के मामलों में जांच में भारी ढिलाई बरती गई. कई जगह पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी नहीं हुई, फॉरेंसिक जांच अधूरी छोड़ी गई और कई मामलों में तो केस (POR) तक दर्ज नहीं किया गया. हर मौत को बस 'आपसी लड़ाई' का ठप्पा लगाकर फाइल बंद करने की कोशिश की गई. अब सवाल यह है कि क्या मध्य प्रदेश अपनी 'टाइगर स्टेट' की पहचान सिर्फ कागजों पर बचाए रखेगा, या इन मौतों के लिए जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही भी तय होगी?
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