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This Article is From Apr 30, 2019

बाराबंकी का सांसद तय करने में मुस्लिम मतदाता निर्णायक, जानें यहां के समीकरण

बाराबंकी सीट पर कुर्मी, पासी और यादव बिरादरी के मतदाताओं की भी खासी तादाद है. इन्हें लेकर सभी उम्मीदवारों के अपने—अपने दावे हैं. बाराबंकी की सियासत को करीब से जानने वाले रिजवान मुस्तफा का मानना है कि यादव, कुर्मी, रावत, मुसलमान और गठबंधन का वोट राम सागर को मिल सकता है.

बाराबंकी का सांसद तय करने में मुस्लिम मतदाता निर्णायक, जानें यहां के समीकरण
फाइल फोटो
नई दिल्ली:

हमेशा से समाजवादियों का गढ़ रहा  बाराबंकी लोकसभा क्षेत्र इस दफा लोकसभा चुनाव में दिलचस्प जंग का गवाह बन गया है. यहां अपने—अपने समीकरण साधने में जुटे प्रत्याशियों की नजर खामोश खड़े मुस्लिम मतदाताओं पर टिक गयी है. समाजवाद के प्रणेताओं में शुमार किये जाने वाले रामसेवक यादव की कर्मभूमि बाराबंकी में वर्ष 1957 से लेकर ज्यादातर वक्त तक समाजवादियों का ही दबदबा रहा. इस सीट पर आम चुनाव और उपचुनावों के कुल 17 मौकों में से सिर्फ पांच बार कांग्रेस, दो बार भाजपा और एक बार बसपा के प्रत्याशी जीते हैं. बाकी मौकों पर समाजवादी विचारधारा के जनप्रतिनिधियों ने ही यहां कब्जा किया है. बाराबंकी, जैदपुर, रामनगर, हैदरगढ़ और कुर्सी विधानसभा सीटों को खुद में समेटे इस सुरक्षित श्रेणी की सीट पर सपा—बसपा गठबंधन ने चार बार सांसद रह चुके राम सागर रावत को मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने अपने पूर्व सांसद पी.एल. पुनिया के बेटे तनुज पुनिया पर दांव लगाया है. भाजपा ने जैदपुर सीट से मौजूदा विधायक उपेन्द्र रावत को उम्मीदवार बनाया है. करीब 18 लाख मतदाताओं वाले इस लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण खासा अहम है लेकिन जीत—हार का दारोमदार करीब 25 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिम मतदाताओं पर रहता है. 

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अब तक मुसलमानों का समर्थन ही किसी भी प्रत्याशी का भाग्य तय करता रहा है. वरिष्ठ पत्रकार हशमत उल्ला कहते हैं कि इस दफा यहां त्रिकोणीय मुकाबला है मगर मुस्लिम वोट जिधर जाएगा, वही जीतेगा. अगर यह बंट गया तो भाजपा को फायदा होगा. हालांकि मुसलमान मतदाता बिल्कुल खामोश हैं और वे यह जाहिर नहीं होने दे रहे कि उनका रुझान किस तरफ है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2009 में बाराबंकी से सांसद रहे पुनिया को अपने कार्यकाल में क्षेत्र में किये गये विकास कार्यों का फायदा मिल सकता है लेकिन गठबंधन प्रत्याशी राम सागर को भी कम नहीं आंका जा सकता। गठजोड़ के बाद उन्हें बसपा का भी पक्का वोट मिलने की सम्भावना है. हशमत ने कहा कि जहां तक भाजपा उम्मीदवार उपेन्द्र रावत का सवाल है तो वह जिस पार्टी से हैं, उसका अपना ठोस वोट बैंक है. उपेन्द्र को भाजपा का पूरा वोट मिलने की सम्भावना इसलिये भी है, क्योंकि उसके कोर वोटर उपेन्द्र की शक्ल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को वोट दे रहे हैं. अपना टिकट काटे जाने से नाराज मौजूदा भाजपा सांसद प्रियंका रावत का बागी रुख उपेन्द्र के लिये कितना नुकसानदेह होगा, इस बारे में हशमत कहते हैं कि इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि प्रियंका को भी मोदी के नाम पर ही जीत मिली थी. 

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बाराबंकी सीट पर कुर्मी, पासी और यादव बिरादरी के मतदाताओं की भी खासी तादाद है. इन्हें लेकर सभी उम्मीदवारों के अपने—अपने दावे हैं. बाराबंकी की सियासत को करीब से जानने वाले रिजवान मुस्तफा का मानना है कि यादव, कुर्मी, रावत, मुसलमान और गठबंधन का वोट राम सागर को मिल सकता है. सपा—बसपा का का वोट डबल हो गया लगता है, जिसका फायदा राम सागर को मिलने की सम्भावना तो दिखती है. उन्होंने कहा कि मुसलमानों का वोट पुनिया को भी मिल रहा है और राम सागर को भी. पुनिया को अपने काम, अपने व्यवहार का फायदा मिल रहा है, लेकिन गठबंधन के समीकरण उनके लिये चुनौती बन रहे हैं. 

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भाजपा की कोशिश है कि मुस्लिम वोट में ज्यादा से ज्यादा बंटवारा हो जाए ताकि वह जीत जाए. मुस्तफा कहते हैं कि मुसलमान बिल्कुल खामोश है. वह पुनिया के साथ भी दिख रहा है और राम सागर के साथ भी. जैसा कि पहले भी होता रहा है, वह ऐन वक्त पर अपना रुख तय करता है. यह हालात ही बाराबंकी के चुनावी रण को दिलचस्प बना रहे हैं. हालांकि क्षेत्र में घूमने पर पता चलता है कि यहां भाजपा, कांग्रेस और गठबंधन के प्रत्याशियों में कांटे की टक्कर है. अगड़ी जातियों के सम्पन्न लोगों के लिये मोदी अब भी पहली पसंद हैं. मगर, छोटे कारोबारियों और निचले तबकों तक आते—आते बाकी विकल्प भी असरदार होते दिखते हैं. बाराबंकी लोकसभा सीट के इतिहास पर नजर डालें तो वर्ष 1951—52 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के मोहन लाल सक्सेना तो वर्ष 1957 में कांग्रेस के ही स्वामी रामानंद शास्त्री चुने गये. 

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हालांकि इसी साल हुए उपचुनाव में समाजवादी नेता रामसेवक यादव यहां से चुनाव जीते. उसके बाद 1962 और 1967 में भी वह क्रमश: सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से सांसद रहे. वर्ष 1971 में यह सीट फिर कांग्रेस के पास आ गयी. वहीं, 1977 और 1980 के लोकसभा चुनाव में यह भारतीय लोकदल और जनता पार्टी सेक्युलर के पास चली गई. वर्ष 1984 में 'इंदिरा लहर' के दौरान कमला रावत कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते. उसके बाद वर्ष 1989, 1991 और 1996 में राम सागर रावत ने यहां जीत की हैट्रिक लगायी. वर्ष 1998 में पहली बार बाराबंकी सीट भाजपा के खाते में गई. साल 2004 में कमला रावत बसपा के टिकट पर सांसद बने. वर्ष 2009 में कांग्रेस के पी.एल. पुनिया ने यहां से जीत हासिल की। वहीं, 2014 में 'मोदी लहर' ने प्रियंका रावत की नैया पार लगायी थी.


 

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