वाराणसी (Varanasi) में पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) समेत 26 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन इन 26 के अलावा एक 27 वां प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में है, जो बीजेपी के लिए मुश्किल बना हुआ है. ये 27 वां प्रत्याशी है नोटा (NOTA). बनारस में चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में नोटा की हरकत पहली बार ज़्यादा सक्रीय दिखाई पड़ी. हालांकि 2014 में भी नोटा ने अपनी उपस्थिति यहां दर्ज़ कराई थी लेकिन उसकी संख्या गिनती से बाहर थी. तब मात्र 2051 ही वोट नोटा को मिले थे लेकिन इस बार इसकी संख्या ज़्यादा होने के आसार हैं क्योंकि पहली बार बनारस में नोटा को लेकर लोग डोर टू डोर कैम्पेन करते दिखाई पड़े. इस कैम्पेन से कांग्रेस या गठबंधन से कहीं ज़्यादा परेशान बीजेपी दिखाई पड़ रही है. इसका बड़ा कारण भी है क्योंकि जो लोग नोटा के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं और इसमें ज़्यादा जी जान से जुटे हैं ये वही लोग हैं जो बीजेपी के स्थापना काल से कोर बीजेपी और आरएसएस से जुड़े रहे हैं.
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बनारस में शहर दक्षिणी का पुराना मोहल्ला पक्का महाल है. उसमें भी लाहौरी टोला तो बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है. इसी लाहौरी टोला में पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट विश्वनाथ कॉरिडोर आया जिसके ज़द में यहां के 279 मकान आए, जिसे सरकार ने तोड़ दिया. इससे प्रभावित लोगों ने अपने घरों को बचाने के लिए हर जगह गुहार लगाई, लड़ाई लड़ी, लेकिन जब वे सरकार से हार गये तो अब चुनाव में वो पीएम मोदी को सबक सिखाने के लिये नोटा को अपना प्रत्याशी मान प्रचार में जुट गए हैं.
ये लोग सिर्फ अपने ही इलाके में नहीं बल्कि उन इलाकों में भी जा रहे हैं, जहां इस तरह का समान दर्द मिला है. इनमें एक माझी समाज भी है क्योंकि माझी समाज भी इन पांच सालों में अपने रोज़ी रोटी को लेकर बराबर संघर्ष करता रहा है. कभी गंगा में क्रूज को लेकर तो कभी गंगा में जेटी लगाने के मुद्दे को लेकर. उनकी इस नाराज़गी को अपने तरफ करने के लिए भी नोटा के समर्थक लोग उनसे संपर्क कर रहे हैं.
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समाजवादी पार्टी के नाराज विधायक सुरेंद्र पटेल तो अपनी पार्टी में कांग्रेस से आईं शालिनी यादव के विरोध में बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर विरोध जताते हुए नोटा का बटन दबाने के लिए न सिर्फ अपील की बल्कि गांव-गांव जाकर प्रचार भी कर रहे हैं. बनारस में लोगों के आम मुद्दे को लेकर संघर्ष करने वाले क्रांति फाउंडेशन के राहुल सिंह कहते हैं, 'बीते पांच सालों में बनारस के अंदर की हालात और भी खराब हुई है. लोग गलियों में सीवर ,सड़क और पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. नाउम्मीदी में गुजरे पांच साल का हिसाब अब ये लोग नोटा का बटन दबा कर अपना विरोध जाता कर पूरा करेंगे.'
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नोटा के इतिहास पर अगर गौर फरमाएं तो साल 2013 से लेकर 2017 तक 1. 37 करोड़ लोग नोटा को वोट दे चुके हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में तकरीबन 60 लाख लोगों ने नोटा का बटन दबाया था. मध्य प्रदेश, राजस्थान के विधानसभा चुनाव में तो नोटा ने कई सीट पर बीजेपी के गणित को ही बिगाड़ दिया था. यही वजह है कि बनारस में नोटा को लेकर हो रहे प्रचार से बीजेपी बेहद संजीदा है, क्योंकि पीएम के संसदीय क्षेत्र में नोटा की संख्या अगर बढ़ी तो बड़ी किरकिरी हो सकती है.
वीडियो- चुनाव इंडिया का : प्रचार में कोई नहीं रहा पीछे
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