उत्तर प्रदेश की इस सीट पर कभी था कांग्रेस का दबदबा, क्या प्रियंका गांधी खत्म करवा पाएंगी 35 सालों का सूखा?

जौनपुर की लोकसभा सीट (Jaunpur Constituency)  पर अब तक कुल 17 बार चुनाव हुए (Jaunpur Constituency History), जिसमें शुरू से ही कांग्रेस का दबदबा रहा.

उत्तर प्रदेश की इस सीट पर कभी था कांग्रेस का दबदबा, क्या प्रियंका गांधी खत्म करवा पाएंगी 35 सालों का सूखा?

जौनपुर की लोकसभा सीट (Jaunpur Constituency)  पर कांग्रेस का दबदबा रहा है.

खास बातें

  • जौनपुर की सीट पर रहा है कांग्रेस का दबदबा
  • अब तक 6 बार यहां से पार्टी के उम्मीदवार जीत चुके हैं
  • लेकिन 1984 के बाद से अब तक कांग्रेस का खाता नहीं खुला है
नई दिल्ली :

लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. राजनीतिक पार्टियां अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने में जुट गई हैं. इस बार सबकी निगाहें देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर-प्रदेश पर है. पिछली बार बीजेपी ने 80 सीटों में से अकेले 71 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बनाया था. तो सपा के खाते में 5, कांग्रेस के खाते में 2 और अपना दल के खाते में 2 सीटें गई थीं. बसपा खाता तक नहीं खोल सकी थी, लेकिन इस बार प्रदेश की सियासी सूरत बदली नजर आ रही है. एक तरफ केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी को हराने के लिए सपा-बसपा एकजुट हैं. तो दूसरी तरफ, कांग्रेस भी प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) के सहारे मजबूती से ताल ठोंक रही है, लेकिन कांग्रेस और प्रियंका के सामने चुनौती भी कम कठिन नहीं है. प्रियंका को जिस पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गई है, वहां कई ऐसी लोकसभा सीटें हैं जिनपर कभी पारंपरिक रूप से कांग्रेस का कब्जा था, लेकिन एक-एक ये सीटें पार्टी से छिनती गईं. इत्र की खुशबू और इमरती की मिठास समेटे गोमती के किनारे बसा ऐतिहासिक शहर 'जौनपुर' भी उन्हीं सीटों में से एक है.

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35 साल से नहीं खुल सका है कांग्रेस का खाता 

जौनपुर की लोकसभा सीट (Jaunpur Constituency)  पर अब तक कुल 17 बार चुनाव हुए (Jaunpur Constituency History), जिसमें शुरू से ही कांग्रेस का दबदबा रहा. 6 बार यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी लोकसभा में पहुंचे, लेकिन 80 के दशक में जब एक बार कांग्रेस की इस सीट पर पकड़ कमजोर हुई तो उसके बाद उबरने का मौका नहीं मिला. 1984 में आखिरी बार कांग्रेस ने इस सीट पर जीत हासिल की और कमला प्रसाद सिंह चुनाव जीते. इस बात को 35 साल हो गए हैं. जौनपुर में कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है और इस बार भी कांग्रेस की डगर आसान नहीं दिख रही है. खासकर सपा-बसपा गठबंधन के बाद बीजेपी से कहीं ज्यादा बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) जौनपुर सीट (Jaunpur Lok Sabha Seat) पर कांग्रेस के लिए कोई करिश्मा कर पाती हैं. 

जौनपुर में पंडित दीनदयाल उपाध्याय खा चुके हैं मात  

1952 में जब पहली लोकसभा के चुनाव हुए तो जौनपुर की सीट से कांग्रेस के बीरबल सिंह अच्छे-खासे अंतर से जीतकर लोकसभा में पहुंचे. 1957 में कांग्रेस के टिकट पर ही उन्होंने दोबारा जीत हासिल की, लेकिन 1962 के चुनाव में जनसंघ के प्रत्याशी ब्रम्हजीत सिंह ने उनसे यह सीट छीन ली. हालांकि ब्रम्हजीत सिंह का कुछ दिनों बाद ही असमय देहांत हो गया और इस सीट पर फिर चुनाव हुआ. यह उप चुनाव इस मायने में भी खास था कि जनसंघ की तरफ से पंडित दीनदयाल उपाध्याय खुद मैदान में थे. उनकी जीत भी लगभग तय मानी जा रही थी, लेकिन नतीजे चौंकाने वाले रहे. इंदिरा गांधी के करीबी और स्थानीय लोगों में "भाई साहब" के नाम से मशहूर कांग्रेस के प्रत्याशी राजदेव सिंह ने जौनपुर की सीट (Jaunpur Constituency) पर कब्जा जमा लिया. इसके बाद 1967 और 1971 के चुनाव में लगातार कांग्रेस के टिकट पर ही राजदेव सिंह जौनपुर से लोकसभा में पहुंचते रहे.

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1977 भारतीय लोकदल के टिकट पर यादवेंद्र दत्त दुबे ने यहां से बाजी मारी. जबकि 1980 के चुनाव में यह सीट जनता पार्टी (सेक्युलर) के उम्मीदवार अजिमुल्लाह आजमी के खाते में गई. 1984 में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर जीत हासिल की और कमला प्रसाद सिंह विजयी रहे. 1989 में यादवेंद्र दत्त दुबे एक बार फिर चुनाव लड़े, लेकिन भाजपा के टिकट पर और जीतने में कामयाब भी रहे. 1981 में जनता दल की तरफ से अर्जुन सिंह यादव, 1996 में भाजपा के राजकेसर सिंह, 1998 में सपा के पारसनाथ यादव, 1999 में भाजपा के स्वामी चिन्मयानंद, 2004 में सपा के पारसनाथ, 2009 में बसपा के धनंजय सिंह और 2014 में बीजेपी के केपी सिंह जौनपुर से जीतते रहे. 

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पिछली बार कुछ ऐसा था सियासी समीकरण 

जौनपुर की गद्दी पर अभी बीजेपी का कब्जा है.  2014 में 15 साल बाद बीजेपी ने इस सीट पर जीत हासिल की थी और पार्टी के उम्मीदवार केपी सिंह लोकसभा में पहुंचे. उन्होंने बसपा के बाहुबली धनंजय सिंह से यह सीट छीनी थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में जौनपुर सीट से कुल 21 उम्मीदवार मैदान में थे. केपी सिंह ने बसपा के ही सुभाष पांडे को 1,46,310 वोटों के अंतर से हराया था. केपी सिंह को  3,67,149 लाख वोट मिले थे, जबकि सुभाष पांडे ने 2,20,839 वोट हासिल किया था. इसके अलावा सपा तीसरे स्थान पर रही थी.  

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