जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी (PDP) प्रमुख महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) को अपनी हार शायद पहले ही नजर आ गई थी, तभी तो उन्होंने एग्जिट पोल के नतीजों के बाद ही ट्वीट कर ऐसा कहा था कि बीजेपी की हार या जीत दुनिया का अंत नहीं. खैर 23 मई को आए नतीजों के बाद उनका अंदाजा सही साबित भी हो गया. महबूबा अनंतनाग (Anantnag) से चुनाव हार रही हैं. ये सीट उनका गढ़ मानी जाती थी और यहां से अब बीजेपी के सोफी यूसुफ निर्णायक बढ़त बना चुके हैं. 2014 में महबूबा की पार्टी पीडीपी ने बारामुला, श्रीनगर और अनंतनाग सीटों पर जीत दर्ज की थी. अनंतनाग से वे खुद मैदान में थीं लेकिन 2016 में मुख्यमंत्री बनने के चलते उन्होंने ये सीट छोड़ दी थी. आइए जानते हैं इस बार अनंतनाग में उनकी हार के क्या कारण रहे.
बीजेपी का साथ
महबूबा मुफ्ती अक्सर सांप्रदायिक पार्टी को घाटी से दूर रखने की बात किया करती थीं, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के साथ राज्य में गठबंधन की सरकार बनाई. हिंदूवादी सांप्रदायिक पार्टी के तौर पर जानी जाने वाली बीजेपी के साथ हाथ मिलाना जम्मू-कश्मीर के लोगों को पसंद नहीं आया. हालांकि 2018 में ये गठबंधन टूट गया और राज्यपाल शासन लग गया. इसके बाद महबूबा अक्सर ये बताती रहीं हैं कि बीजेपी के साथ गठबंधन उनकी सबसे बड़ी गलती थी लेकिन उनके इस रवैये ने उनके कोर वोटर को उनसे दूर कर दिया.
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बेतुकी बयानबाजी
2016 में हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर, बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में भड़की हिंसा के दौरान कई नाबालिग बच्चे भी मरे थे. जब इस बारे में महबूबा से सवाल किया गया, तो उनका जवाब था, ‘ये लोग क्या आर्मी के कैंप में दूध या टॉफी लेने गए थे?' इस बयान ने जम्मू-कश्मीर में उनके खिलाफ हवा बनाने का काम किया.
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छवि बदलने की कोशिश
महबूबा की छवि घाटिवासियों के मानवाधिकारों के उल्लंघन का जमकर विरोध करने वाले की रही है. लेकिन जब उन्होंने बीजेपी का दामन थामा तो उनके तेवर ही बदल गए थे. वे बीजेपी और सेना समर्थक बयान देते नजर आने लगीं. लेकिन अब बीजेपी का साथ छोड़ने के बाद वे पुन: अपनी पुरानी छवि गढ़ने में जुटी हैं, जो बात लोगों के गले नहीं उतरी.
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कम मतदान
आतंकवादियों की चुनाव बहिष्कार की धमकी के कारण अनंतनाग में इस बार सबसे कम मतदान हुआ है. यहां तीन फेज में चुनाव कराया गया, जिसमें करीब 12 फीसदी मतदान हुआ. यहां के बिजबेहरा के 40 मतदान केंद्रों में तो एक भी वोट नहीं डाला गया. अब जिस जगह महबूबा का वोट बैंक था वहीं वोटिंग का प्रतिशत इतना कम रहेगा तो उनकी हार तो होनी ही थी.
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