2019 की लोकसभा के चुनाव में अब सबकी निगाहें उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और इससे सटे बिहार की सीटों पर टिकी हैं. पूर्वांचल के छह मंडल देवी पाटन, गोरखपुर, मिर्ज़ापुर, आजमगढ़, वाराणसी और इलाहाबाद में कुल 26 संसदीय सीटे हैं. इन मंडलों का केन्द्र बिंदु पीएम मोदी की संसदीय वाराणसी है क्योंकि इन इलाकों के व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य, जैसी बुनियादी चीजें यही शहर पूरी करता है. इसलिये यहां से जो बयार बहती है वही पूर्वांचल और पास के बिहार में भी बहने लगती है. 2014 के चुनाव में बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आये थे और उसका असर भी दिखाई पड़ा. पूर्वांचल के छह मंडल की सिर्फ आजमगढ़ की सीट छोड़ दें तो बाकी की सभी सीटों पर बीजेपी का परचम लहराया था. इसके अलावा बिहार की छह सीटों आरा, बक्सर, सासाराम, सारण,गोपालगंज और सिवान पर भी यहां का असर पड़ता है. पिछली बार यहां की सभी सीटें बीजेपी ने जीती थीं. कुल मिलाकर बीजेपी को 31 सीटें मिली थीं. यही वजह है कि 2019 में एक बार फिर इन सीटों पर अपनी पार्टी का परचम लहराने के लिए जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 अप्रैल को बड़ा रोड शो की तैयारी कर रहे हैं तो वहीं कांग्रेस भी प्रियंका नाम समय-समय पर उछाल कर इस इलाके की नब्ज़ टटोलने की कोशिश कर रही है.
वहीं यह भी कहना गलत नहीं होगा कि वाराणसी से पूरे देश में भी संदेश दिया जा सकता है क्योंकि इस शहर का धार्मिक महत्व पूरे देश में है. वाराणसी शिव की नगरी मानी जाती है और बाबा विश्वनाथ हिन्दू धर्म के ऐसे देवता हैं जिनकी मान्यता देश के हर कोने में है. इसमें भी खासतौर पर दक्षिण भारत और महाराष्ट्र के लोगों की आस्था बड़ी है. बनारस शहर में पूरा एक मिनी भारत रहता है. लिहाजा यहां पर जो फ़िज़ा बनती है उसका असर देश के इन इलाकों में भी होता है. दूसरी एक सच्चाई यह भी है कि पूर्वांचल देश का एक पिछड़ा इलाका है यहां रोज़गार के साधन नहीं निकल पाए लिहाजा लोगों का देश के दूसरे शहरों और राज्यों में पलायन हुआ जो लोग यहां से गए वे दूसरी जगह बस तो गए लेकिन अपनी मिट्टी से जुड़े रहे और यहां का गहरा असर भी उन पड़ता है लिहाजा बनारस देश के दूसरे शहरों का भी मिजाज बनाता है.
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