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This Article is From May 04, 2019

लोकसभा चुनाव 2019 : पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटर्स गुल खिला सकते हैं या नहीं? डॉ. प्रणव रॉय का विश्लेषण

लोकसभा चुनाव(Lok Sabha Polls 2019) के दौरान पश्चिम बंगाल(West Bengal) में इतने ज्यादा ध्रुवीकरण की राजनीति पहले कभी नहीं हुई. पढ़ें डॉ. प्रणव रॉय(Prannoy Roy's Analysis) का विश्लेषण.

पश्चिम बंगाल के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटर्स की क्या रहेगी भूमिका ? डॉ. प्रणव राय का विश्लेषण.

नई दिल्ली:

42 लोकसभा सीटों वाले पश्चिम बंगाल(West Bengal) में इस बार कठिन लड़ाई है. बीजेपी(BJP) ने 23 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है तो ममता बनर्जी(Mamata Banerjee) उसे एक भी सीट देने के मूड में नहीं हैं. राज्य में यह अब तक का यह सबसे ध्रुवीकृत चुनाव है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(PM Modi) और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच राजनीतिक टकराव भी देखने को मिला है. बीजेपी यहां लोकसभा सीटों को जीतने के लिए कोई भी मौका चूकना नहीं चाहती. इस रणनीति के तहत पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नियमित अंतराल पर राज्य में कैंपेनिंग करते रहे हैं.परंपरागत रूप से, भाजपा की बंगाल में न्यूनतम उपस्थिति है. यहां शुरू में मुख्य लड़ाई कांग्रेस और वामदलों के बीच थी. कांग्रेस ने राज्य पर 35 साल शासन किया. और बाद में वामदलों और तृणमूल ने किया. पिछले कुछ वर्षों में, कांग्रेस और वामदलों की तुलना में बीजेपी ने बंगाल की राजनीति में अपने लिए बड़ा स्थान तैयार किया है. हालांकि सीटों के मामले में, उसके पास राज्य में लोकसभा की दो और विधानसभा में तीन सीटें हैं. 

1996 और 2014 के बीच, कांग्रेस और तृणमूल  ने वोट शेयर के मामले में एक दूसरे से स्थानों की अदला-बदली की. आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं. मिसाल के तौर पर देखें तो 1996 में 40 प्रतिशत वोट शेयर रखने वाली कांग्रेस 2014 तक आते-आते दस प्रतिशत तक पहुंच गई, वहीं 1996 में 10 प्रतिशत वोट शेयर वाली तृणमूल कांग्रेस 2014 में 40 प्रतिशत के आंकड़े पर पहुंच गई. 

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इसी तरह, जैसे-जैसे पश्चिम बंगाल की राजनीति से वामपंथी दल कमजोर हुए, उसी अनुपात में बीजेपी का 2011 के बीच उदय शुरू हुआ. जब तृणमूल ने तीन दशकों से काबिज वाम शासन का अंत कर दिया.2011 की तुलना में 2014 न्म बीजेपी का वोटर शेयर 13 प्रतिशत बढ़ा तो लेफ्ट का 12 प्रतिशत घट गया.

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राज्य में सात चरणों में लोकसभा के मतदान हो रहे हैं. बीजेपी जिन इलाकों में मजबूत मानी जाती हैं, वहां पहले दो चरण में वोट पड़ चुके हैं. तीसरे चरण के लिए हुए मतदान वाली सीटों पर कांग्रेस की पकड़ मजबूत है. आखिरी चरणों में उन जगहों पर वोट होना है, जहां तृणमूल कांग्रेस का अन्य दलों की तुलना में मजबूत आधार है.

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बंगाल के चुनाव को इस बार आयु वर्ग, धर्म, जाति और लिंग के आधार पर विभाजित आबादी ने दिलचस्प बना दिया है. प्रणव रॉय और उनकी टीम द्वारा किए विश्लेषणों से रुझानों से पता चलता है कि मुस्लिम वोट बंगाल में काफी विभाजित हैं. जहां उनकी आबादी शेष भारत के 14 प्रतिशत से दोगुनी 28 प्रतिशत है.

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पिछले आम चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को मुस्लिमों का 40 प्रतिशत वोट मिला था. लेफ्ट को तीस और कांग्रेस को 20 प्रतिशत और अन्य को आठ फीसद.

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इस चुनाव के ट्रेंड्स बताते हैं कि मुस्लिम वोट कम विभाजित हो रहे हैं. तृणमूल, जिसने मुस्लिम मतदाताओं के लिए कई उपाय किए हैं, को मुसलमानों का 70 प्रतिशत वोट मिलने की संभावना है. कांग्रेस को 20 और लेफ्ट को महज पांच प्रतिशत मुस्लिम वोट मिलने की संभावना है.यह ट्रेंड्स के आधार पर आंकलन किया गया है. बंगाल में मुस्लिम आबादी किसी खास पॉकेट की जगह पूरे राज्य में फैली हुई है. डेटा से पता चलता है कि ममता बनर्जी की पार्टी ने उन सीटों पर बेहतर प्रदर्शन किया है, जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा नहीं है. 2014 में, तृणमूल को उन सीटों पर 27 प्रतिशत वोट मिले, जहां 20 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम थे. वहीं नॉन मुस्लिम सीटों पर 42 प्रतिशत वोट मिले. बीजेपी के आक्रामक चुनाव अभियान के कारण तृणमूल कांग्रेस को हिंदू वोटों की एकजुटता का सामना करना पड़ सकता है. 

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ट्रेंड्स यह भी बताते हैं कि तृणमूल कांग्रेस का वोट शेयर शहरी इलाकों की तुलना में गांवों में ज्यादा है.उच्च वर्ग के मतदाता बीजेपी की तरफ झुकाव रखते हैं तो आदिवासियों में ममता बनर्जी की पार्टी की तरफ झुकाव है.

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ट्रेंड्स के मुताबिक 18 से 23 साल के युवा वोटर्स बीजेपी को ज्यादा सपोर्ट कर रहे हैं. जबकि तृणमूल कांग्रेस के सपोर्टर्स की उम्र 33 से 50 साल के बीच है. पश्चिम बंगाल में हवा का रुख भांपकर वोट करने वाली कुल आठ सीटें हैं, जिन्होंने उसी दल को जिताया, जिसकी राज्य में सरकार  रही. ये सीटें हैं बीरभूम, हुगली, , उलबेरिया, बैरकपुर, बशीरहाट, तामलुक, डायमंड हार्बर और मथुरापुर हैं.

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आसनसोल, एक सीट, जो हाई प्रोफाइल उम्मीदवारों केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो और तृणमूल उम्मीदवार मुनमुन सेन की वजह से चर्चा में रही है, इसके अलावा दार्जिलिंग ऐसी सीट है, जो जीतने वाले दल के विपरीत वोट करती रही है. 

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