कुछ दिन पहले असदुद्दीन ओवैसी और प्रकाश आंबेडकर एक साथ एक रैली में दिखे. पश्चिम महाराष्ट्र के शोलापुर में आयोजित एक रैली में ओवैसी ने अपने नए सहयोगी का जोरदार अभिवादन किया, जिससे वहां जुटे आंबेडकर की नई पार्टी के करीब 25000 कार्यकर्ता जोश से भर उठे.
देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं, जिनमें से 10 पर गुरुवार 18 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. सविंधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के पोते और वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) पार्टी के प्रमुख प्रकाश आंबेडकर ने 6 महीने पहले घोषणा की थी कि वो असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के साथ गठबंधन करेंगे और महाराष्ट्र की सभी 48 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे.
ओवैसी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख हैं, जिसने महाराष्ट्र में 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में आश्चर्यजनक रूप से 2 सीटें जीत ली थी जबकि पार्टी का पूरा आधार और प्रभाव हैदराबाद में है.
शोलापुर में प्रचार अभियान की शुरुआत के के समय असदुद्दीन ओवैसी और प्रकाश आंबेडकर ने NDTV से कहा, फिलहाल VBA सोशल इंजीनियरिंग का एक प्रयोग भर है. लेकिन मई के महीने में अगर यह केंद्र में गैर बीजेपी और गैर कांग्रेसी सरकार बनाने में योगदान दे पाई तो फिर हमें कोई नहीं रोक पाएगा. प्रकाश आंबेडकर यहां से चुनाव मैदान में हैं. 64 वर्षीय आंबेडकर शोलापुर के अलावा विदर्भ क्षेत्र की अकोला सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं.
वीबीए खुद को महाराष्ट्र की उन जातियों का प्रतिनिधि मानती है जो पीड़ित और हाशिए पर हैं. इसके बड़े नेता दलित और मुस्लिम हैं, इन दोनों समुदाय की राज्य में 25 फीसदी आबादी है. महाराष्ट्र का झुकाव अब तक दो परंपरागत मोर्चों शरद पवार-कांग्रेस और बीजेपी-शिवसेना की ओर रहा है. इनमें से मुस्लिमों और दलितों का झुकाव मुख्य रूप से कांग्रेस की तरफ रहा है. (इसलिए कांग्रेस VBA पर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगाती है और कहती है कि इसे कांग्रेस के वोटों को विभाजित करने के लिए बनाया गया है.)
1 जनवरी 2018 को पुणे के पास भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं जयंती मनाने के लिए इकट्ठा हुए दलितों पर ऊंची जाति के लोगों की भीड़ ने हमला कर दिया था. भीमा-कोरेगांव युद्ध में दलित सैनिकों ने अंग्रेजों के साथ मिलकर पेशवा के खिलाफ युद्ध किया था जो ब्राह्मण थे, और इस तरह उनके जातीय अत्याचार को समाप्त किया था.
प्रकाश आंबेडकर ने उस हिंसा के लिए कट्टरपंथी हिंदू संगठनों को जिम्मेदार ठहराया था और आरोप लगाया था कि ऐसे संगठनों की राज्य की बीजेपी सरकार का संरक्षण प्राप्त है. उन्होंने इस हिंसा का विरोध करने के लिए महाराष्ट्र बंद बुलाया था. प्रकाश आंबेडकर ने कहा, 'इसकी सफलता ने मुझे भरोसा दिलाया कि न केवल दलित, बल्कि मुस्लिम और महाराष्ट्र के ओबीसी के निचले तबके का बड़ा हिस्सा एक नई राजनीतिक मोर्चे के लिए तैयार है जो उनकी आकांक्षाओं को पहले रखे. इसने वंचित बहुजन अघाड़ी की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया.'
सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे के अनुसार 2014 में हुए आम चुनाव में राज्य के 56 फीसदी दलितों ने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को चुना जबकि कांग्रेस को 33 फीसदी दलितों का समर्थन मिला.
भगवा गठबंधन से अपने समाज के वोट वापस लेने के लिए, VBA कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए राजी थी और पार्टी ने पश्चिमी महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ की 12 दलित प्रभुत्व वाली सीटों पर दावा किया था. कांग्रेस नहीं मानी जबकि उन 12 सीटों में से जिनकी मांग प्रकाश आंबेडकर ने की थी, कांग्रेस पिछले तीन लोकसभा चुनाव में एक भी नहीं जीत पाई.
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे जो शोलापुर से कांग्रेस उम्मीदवार हैं और प्रकाश आंबेडकर के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, दावा करते हैं कि शरद पवार की पार्टी एनसीपी को गठबंधन से बाहर रखने की आंबेडकर की जिद से हमेशा यही लगा कि वह कभी भी गठबंधन करने को लेकर गंभीर नहीं थे.' एनसीपी के एक नेता ने सार्वजनिक रूप से भीमा-कोरेगांव हिंसा के मुख्य आरोपी का समर्थन किया था जिसकी वजह से आंबेडकर एनसीपी को गठबंधन में नहीं चाहते थे.
शिंदे शोलापुर से 3 बार सांसद रह चुके हैं. इस चुनाव से पहले तक आंबेडकर राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक होने के खतरनाक रूप से करीब आए गए थे. उन्होंने पिछली बार 1999 में चुनाव जीता था. उसके बाद 2016 में सेंट्रल मुंबई में आंबेडकर द्वारा स्थापित की गई एक प्रिंटिंग प्रेस को एक कमर्शियल कॉम्प्लेक्स के निर्माण के लिए गिरा दिया गया, जिसकी वजह से उनके समुदाय में जबरदस्त गुस्सा पनपा जिसका उन्हें बड़ा राजनीतिक लाभ मिला. उसके बाद भीमा-कोरेगांव हिंसा हुई जिसने उन्हें दलितों का बड़ा नेता बना दिया. शोलापुर से बीजेपी ने महास्वामी सिद्धेश्वर को चुनाव मैदान में उतारा है तो कि लिंगायत समुदाय के धर्म गुरु हैं और लंबे समय से पार्टी के समर्थक रहे हैं.
VBA देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली राज्य की बीजेपी-शिवसेना सरकार द्वारा सरकारी नौकरी में ऊंची जाति वाले मराठा समुदाय के लिए आरक्षण और उनके लिए कॉलेजों के निर्माण जैसे कदमों के खिलाफ निचली जातियों में में व्याप्त गुस्से पर बड़े पैमाने पर दांव लगा रही है. धांगर समुदाय, जिसकी महाराष्ट्र में 9 फीसदी आबादी है, उसका कहना है कि यही फडणवीस सरकार ने 2014 में वादा किया था कि उनके समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देकर 7 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा लेकिन उसे पूरा नहीं किया गया. फिलहाल धांगर समुदाय को घुमंतू जनजाति का दर्जा प्राप्त है और उसे 3.5 फीसदी आरक्षण मिलता है.
सांगली से वंचित बहुजन अघाड़ी के उम्मीदवार और धांगर नेता गोपीचंद पाडलकर कहते हैं, 'यदि राज्य की बीजेपी सरकार सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के अंतर्गत ऊंची जाति के मराठों के लिए 16 फीसदी आरक्षण के प्रस्ताव का बिल पास कर सकती है, यदि केंद्र की मोदी सरकार आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए 10 फीसदी कोटा का बिल पास कर सकती है, तो फिर धांगर समुदाय की मांग को क्यों नजरंदाज कर दिया गया.
लेकिन प्रकाश आंबेडकर के एक नया सामाजिक गठबंधन बनाने के प्रयासों में कई विरोधाभास भी हैं. उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में हिंदू दलित एक नीयो-बुद्धिस्ट को अपना नेता मानने को अनिच्छुक हैं. (नीयो-बद्धिस्ट डॉ. बीआर आंबेडकर के अनुयायी हैं, जिनके नेतृत्व में 1956 में लाखों दलितों ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था.) ये दोनों समुदाय वोट भी अलग-अलग करते हैं, हिंदू दलित बीजेपी-शिवसेना को चुनते हैं जबकि बौद्ध दलित प्राय: कांग्रेस को वोट देते हैं. VBA की शोलापुर रैली में साजिद शेख व अपने अन्य दोस्तों के साथ शामिल होने आए और पहली बार वोट दे रहे 22 वर्षीय विजय गुरु ने कहा, 'इस बार बिखराव थोड़ा कम है. 2014 के बाद से पूरे देश में दलितों के खिलाफ बढ़ रहे हमले, चाहे वो गुरात का उना हो या यूपी का सहारनपुर, इन घटनओं की वजह से वो करीब आए हैं.' विजय ने कहा, 'असदुद्दीन ओवैसी युवा मुस्लिम मतदाताओं के बीच खासे मशहूर हैं. लेकिन आखिर में समुदाय बीजेपी को हरानपे वाली पार्टी को वोट देगा और आज जिस VBA को लोग नहीं जानते हैं, शायद उसे जानने लगें.'
ओवैसी और आंबेडकर की जोड़ी को स्थानीय मीडिया ने महाराष्ट्र की राजनीति में 'वीरू और जय' का नाम दिया है, जो 1970 के दशक में आई बॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म शोले के दो किरदार हैं, जो मिलकर डाकू गब्बर सिंह की दहशत को खत्म करते हैं. उन्होंने NDTV से कहा, 'इस बार शायद हमारी बारी ना हो लेकिन हम अपनी अगली लड़ाई के लिए तैयार हैं.' अगले 6 महीने बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हो सकते हैं.
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