साल 2019 के लोकसभा चुनाव (General Elections 2019) क्या भारतीय राजनीति को नई दिशा देंगे या नरेंद्र मोदी (Narendra Modi)के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार (Nda Goverment) फिर सत्ता में वापसी करेगी..यह सवाल ऐसा है जो राजनीतिक गलियारों से चौक-चौपाल तक हर कहीं चर्चा में है. चुनावी समर की तारीख नजदीक आते-आते हर पार्टी सियासी जोड़-घटाने में जुटी है. कुछ समय पहले तक माना जा रहा था कि नरेंद्र मोदी नीत एनडीए गठबंधन के लिए इस बार राह कठिन है और लामबंद विपक्ष उन्हें कड़ी चुनौती दे रहा है. सियासत के लिहाज से निर्णायक उत्तरप्रदेश और बिहार में बने दो महागठबंधन इस लिहाज से चैजिंग फैक्टर माने जा रहे थे. यूपी में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की सपा का बीएसपी और रालोद का महामोर्चा और बिहार में लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के पुत्र तेजस्वी की अगुवाई में बना आरजेडी-कांग्रेस और अन्य छोटे दलों का गठबंधन NDA का रास्ता रोकता नजर आ रहा था. बहरहाल, पाकिस्तान में भारतीय वायुसेना की 'एयरस्ट्राइक' और दोनों गठबंधनों में अपनों की ही ओर से लगी 'सेंध' ने एनडीए में उम्मीद के भाव ला दिए हैं. महाभारत में एक उद्धरण है कि कुरुक्षेत्र के महासमर में कौरवों के नाश के बाद यदुवंशी भगवान श्रीकृष्ण, गांधारी के पास गए थे. अपने 100 पुत्रों की मौत से व्यथित गांधारी ने उस समय श्रीकृष्ण को श्राप दिया था कि जिस तरह मेरे 100 पुत्रों का नाश हुआ है, उसी प्रकार तुम्हारे 'यदुवंश' का आपसी क्लेश में 'नाश' हो जाएगा. गांधारी के इस श्राप की झलक लोगों को कलयुग में दिख रही है. जहां यूपी में चाचा शिवपाल यादव, भतीजे अखिलेश यादव की सीटों की 'गणित' को बिगाड़ते लग रहे हैं, वहीं बिहार में बड़े भाई तेजप्रताप ने छोटे भाई तेजस्वी की सल्तनत को चुनौती दे डाली है. स्वाभाविक है कि परिवार की इस कलह का बीजेपी (BJP)पूरा मजा ले रही है. उसके लिए यह एक तरह से 'बिल्ली के भाग छींका टूटना' जैसा ही है. दोनों पाटियों सपा और आरजेडी के सुप्रीमो क्रमश: मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav)और लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav)के प्रभाव में आई कमी के कारण दोफाड़ जैसी नौबत आई है.
यूपी में भतीजे अखिलेश के खिलाफ शिवपाल ने ठोकी 'ताल'
यह बात जोरशोर से कही जाती है कि दिल्ली की सत्ता की चाबी यूपी के पास है. देश का यह सबसे बड़ा राज्य 80 सांसद चुनकर भेजता है. ऐसे में जो दल यूपी में ज्यादा सीटें जीतता है, दिल्ली की गद्दी उसी की होती है. 2014 में सपा और बसपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, ऐसे में बीजेपी नीत एनडीए गठबंधन ने राज्य की 73 सीटों पर कब्जा जमा लिया था. राज्य में हुए इस बुरे हाल ने सपा और बसपा को साथ आने के लिए मजबूर किया. राजनीतिक वजूद बचाने के लिए दो धुर विरोधी मुलायम सिंह यादव और मायावती की पार्टियों ने गठबंधन का फैसला किया. सपा (SP)और बसपा (BSP), दोनों का ही अपना खांटी वोटबैंक है, स्वाभाविक है कि इस गठबंधन ने बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरे ला दी थी. कुछ सर्वे में तो यह दावा किया कि साइकिल और हाथी का साथ बीजेपी+एनडीए को 30 या इससे कम सीटों पर सीमित कर सकता है. इस बिगड़ते खेल में चचा शिवपाल (Shivpal Yadav)बीजेपी (BJP)के लिए उम्मीद बने हैं. सपा में हाशिये पर डाल दिए गए शिवपाल ने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाते हुए सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है.यह मोर्चा एक भी सीट नहीं जीत पाएगा लेकिन सपा+बसपा गठबंधन के लिए 'वोटकटवा' का काम जरूर करेगा. ऐसे में फायदा बीजेपी को होना है.
खुद शिवपाल ने फिरोजाबाद सीट में सपा प्रत्याशी अक्षय यादव के खिलाफ ताल ठोकी है. अक्षय राज्यसभा सांसद और अखिलेश के चाचा रामगोपाल यादव के बेटे हैं. शिवपाल का मानना है कि रामगोपाल के कारण ही अखिलेश ने सपा में उन्हें ठिकाने लगाया और यह समय 'बदला' लेने का है. यादव समाज और अल्पसंख्यकों के वोट काटने का काम शिवपाल और उनका मोर्चा कर सकता है. माना जा रहा कि शिवपाल बीजेपी की 'बी' टीम के रूप में काम कर रहे हैं. वैसे भी, शिवपाल और अखिलेश के इस 'ईगो क्लेश' में मुलायम की भूमिका सपा कार्यकर्ताओं का भ्रम बढ़ा रही है. 'नेताजी' कभी शिवपाल की तारीफ करके उनके पक्ष में होने का संकेत देते हैं तो कभी बेटे अखिलेश के साथ दिखते हैं. अंदरखाने यह चर्चा है कि सपा-बसपा गठबंधन से मुलायम खुश नहीं हैं. वे कह चुके हैं कि गठबंधन करके अखिलेश ने सपा का नुकसान किया है. वैसे, मुलायम मैनपुरी से पार्टी उम्मीदवार हैं. महागठबंधन और एनडीए की इस लड़ाई में शिवपाल की एंट्री ने सबसकी दिलचस्पी बढ़ा दी है. स्वाभाविक रूप से शिवपाल सपा का नुकसान करेंगे लेकिन यह नुकसान कितना बड़ा या छोटा होगा, वोटिंग के बाद ही पता लगेगा.
बिहार में तेजस्वी के खिलाफ 'बड़के भैया' की बगावत
लालू प्रसाद के दोनों बेटों तेजस्वी और तेज प्रताप के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं (फाइल फोटो)
बिहार की बात करें तो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav)के सियासी परिदृश्य से बाहर होने के बाद यादव परिवार में तेजस्वी (Tejashwi Yadav)और उनके बड़े भाई तेजप्रताप (Tej Pratap Yadav) खुलकर सामने आ गए हैं. तेजप्रताप ने साफ कहा, तेजस्वी चाटुकारों से घिर गए हैं और इन चाटुकारों के कारण सही फैसले नहीं ले पा रहे हैं. अपनी अनदेखी से नाराज बड़े भैया ने लालू-राबड़ी के नाम से अलग मोर्चा बनाने का गठन कर दिया है. तेजप्रताप ने कहा कि टिकट तय करने में उनकी राय नहीं ली जा रही. उनकी सबसे अधिक नाराजगी सारण सीट से ससुर चंद्रिका राय को टिकट देने पर है. चंद्रिका की बेटी ऐश्वर्या की पिछले साल मई में तेजप्रताप के साथ शादी हुई थी. हालांकि, शादी के छह महीने से कम समय के भीतर तेजप्रताप की ओर से तलाक की याचिका दायर की गयी थी.
तेजप्रताप ने कहा है कि सारण से उनकी मां राबड़ी देवी को लालटेन (RJD का चुनाव चिह्न) से चुनाव लड़ना चाहिए. यदि मां नहीं लड़ीं तो वे अपने ससुर के खिलाफ निर्दलीय मैदान में उतरने को तैयार हैं. यही नहीं, तेजप्रताप जहानाबाद और शिवहर से अपने प्रत्याशी को टिकट देने पर अड़े हुए हैं. उन्होंने कहा, मैंने दो सीटों को लेकर तेजस्वी से बात की थी. जहानाबाद से सुरेंद्र यादव को टिकट दिया गया है जो तीन बार से लगातार हार रहे हैं और फिर भी उन्हें टिकट दिया गया है. तेजप्रताप जहानाबाद से चंद्र प्रकाश और शिवहर से अंगेश को राजद द्वारा उम्मीदवार बनाए जाने के लिए दबाव बना रहे है. उन्होंने दोटूक कहा है कि यदि इन दोनों को RJD से टिकट नहीं मिला तो ये दोनों लालू-राबड़ी मोर्चे से चुनावी मैदान में उतरेंगे. ऐसा लग रहा है कि एक समय तेजस्वी को अपना 'अर्जुन' बताने वाले तेजप्रताप के अपने छोटे भाई से रिश्ते सुलझने न वाली स्थिति में पहुंच चुके हैं. दोनों भाइयों की यह खटपट भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के लिए खुशखबरी है. उसे उम्मीद है कि राज्य में सत्ता विरोधी रुझान से पार पाते हुए वह 2014 लोकसभा चुनाव के बराबर ही सीटें जीतने में सफल रहेगी.
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