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This Article is From Jan 14, 2017

साक्षात्कार: जब समाज बोल्ड हो गया तो कहानी में बोल्डनेस क्यों नहीं: प्रियंका ओम

साक्षात्कार: जब समाज बोल्ड हो गया तो कहानी में बोल्डनेस क्यों नहीं: प्रियंका ओम
'प्रियंका ओम' की किताब 'ओ अजीब लड़की' महिला मुद्दों पर लिखी गई है.
नई दिल्‍ली: विश्व पुस्तक मेला-2017 में महिला लेखन की जोरदार झलक देखने को मिल रही है. मानुषी थीम पर आयोजित पुस्तक मेले में महिला लेखिकाओं और महिला मुद्दों पर लिखी 600 से ज्यादा पुस्तकों का प्रदर्शन थीम पैवेलियन में किया गया है. 'प्रियंका ओम' की किताब 'ओ अजीब लड़की' भी एक ऐसी ही पुस्तक है जो महिला मुद्दों पर लिखी गई है. जो दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे बुक फेयर में हॉल नंबर 12 के 122 नंबर स्टॉल पर उपलब्ध है. प्रियंका ओम ने NDTV से बात करते हुए बताया कि उनकी यह किताब करीब एक साल पहले आई थी. पेश है प्रियंका ओम से खास बातचीत के कुछ अंश-

- अपनी किताब 'वो अजीब लड़की' के बारे में बताइए.
मेरी किताब वो अजीब लड़की एक कहानी संग्रह है, जिसमें कुल 14 कहानियां हैं. सभी कहानियां एक दूसरे से अलग है. जहां कुछ कहानियां कुछ घंटों के अंतर्द्वंद्व को प्रस्तुत करती हैं तो कुछ जिंदगी की मुकम्मल दास्तान हैं. सभी कहानियों के केंद्र में स्त्री है जो समाज के कई विद्रूपताओं से परिचय करवाती हैं. जहां कुछ कहानियां शोषण, बाजारवाद, लालच, स्वार्थ, असुरक्षा की भावना और मानवीय कमजोरी को प्रकट करती हैं, वहीं कुछ कहानियां प्रेम, क्षमा, समर्पण और दोस्ती की नई मिसालें गढ़ती हुई हमारे सामने से गुजरती हैं. इन कहानियों में समाज के कुछ कड़वे सच हैं, तो जिंदगी की फंतासियां भरा जादुई यथार्थ भी और रिश्तों की नाजुक डोर है तो स्वार्थ की गांठ भी. मेरी कहानियों में समाज के असली रूप को दिखाने वाली जरिया है स्त्री. इसके इतर कुछ भी नहीं. मेरी कहानियों का थीम बोल्ड है. लेकिन, अपना समाज भी तो अब बोल्ड हो गया है. 
priyanka om wo ajeeb ladki

- आपकी किताब 'वो अजीब लड़की' को आए हुए लगभग एक साल हो गया, इसे लेकर अब तक पाठकों की प्रतिक्रिया कैसी रही?
ना तो मैं कोई सेलिब्रिटी हूं और ना ही मैं कोई मीडिया पर्सन, जिनकी लिखी किताब उनके नाम पर बिकती है. चाहे वो बकवास ही क्यों ना लिखी हो लोग खरीदते जरूर हैं और कहते भी फिरते है मैंने फलाने की किताब पढ़ी है. असल में ऐसा कहने में वो शान समझते है, लेकिन जब हम जैसे लोग कोई किताब लिखते हैं जिसका इस इंडस्ट्री में कोई माई-बाप ना हो और जिसका नाम तक भी पहले से कोई ना जानता हो उसकी किताब का लोकार्पण भी किसी जानी मानी हस्ती के हाथों ना हुआ हो उसकी किताब पढ़ने में लोगों को शर्म आती है.

मेरे भारत से बाहर रहने के कारण मेरी किताब का औपचारिक या अनौपचारिक लोकार्पण नहीं हो पाया और किसी बड़े लेखक या समीक्षक ने मेरी किताब पढ़कर ना चर्चा की ना समीक्षा लिखी. ऐसे में एक साल में तीसरे संस्करण का आना मेरे ख्याल से संतोष से ऊपर का लेवल है. मैं इंडिया में नहीं रहती इसलिए साहित्यकारों  से मिलना जुलना या किसी सम्मेलन इत्यादि में जाना आना सम्भव नहीं हो पाता है ना ही किसी पत्र-पत्रिका में पहले लिखा है इसलिए किताब आने से पहले मेरा परिचय लेखिका के रूप में नहीं बन पाया. किताब आने पर पहले कुछ पाठक फेसबुक पर मित्र बने, फिर एक से चार, चार से आठ हुए और अब तो ये सिलसिला जारी है. 

- अब तक आपने कितनी किताबें लिखी हैं और आगे आने वाली किताब के बारें बताइए?
वो अजीब लड़की मेरी पहली कहानी संग्रह है और अगली किताब भी शायद कहानी संग्रह ही होगी. इसके अलावा उपन्यास लिखना मेरा सपना है.

- अपने परिवार, एजुकेशन और करियर के बारे में बताइए.
मेरा जन्म झारखण्ड के जमशेपदुर में हुआ और बारहवीं तक की पढाई भी वहीं से हुई. अपने पैतृक शहर भागलपुर से मैंने इंग्लिश लिटरेचर में स्नातक करने के बाद दिल्ली से सेल्स और मार्केटिंग में स्नातकोत्तर किया. मैं एक बहुत बड़े संयुक्त परिवार से हूं. हम बहुत भाई बहन थे और हम सबकी उम्र में ज्यादा फर्क भी नहीं था, इसलिए हम सब में दोस्ताना व्यवहार था. जब शुरू-शुरू में दो पंक्तियां लिखा करती थी तब अपने भाई बहन को ही सुनाया करती थी और घर के किसी बड़े को इसकी भनक तक नहीं थी. हालांकि घर में किसी को लिखने में रूचि नहीं थी, लेकिन पढ़ने का शौक जीन में था. एक ओर बाबा इंग्लिश लिटरेचर से मास्टर थे तो दूसरी ओर नाना बीएचयू के स्कॉलर.

घर में हर महीने पांच मैग्जीन आती थीं. पापा के लिए माया और इंडिया टुडे, मां के लिए गृहशोभा, मनोरमा और सरिता. इसके अलावा बड़े लेखकों की चर्चित किताबें पुस्तक मेले से खरीदी जाती थी. प्रेमचंद्र, शरतचंद्र उपाध्याय और रविंद्र नाथ टैगोर को मैंने दसवीं करने से पहले ही पढ़ लिया था. पापा नहीं चाहते थे कि घर में कोई विवादास्पद किताब आयए इसलिए अपनी पॉकेट मनी से पैसे बचाकर मैंने लज्जा, औरत के हक में और लोलिता जैसी किताबें छुपाकर पढ़ी थी.

पापा इंदिरा गांधी से बहुत प्रभावित थे, इसलिए उन्होंने मेरा नाम प्रियंका रखा. वो चाहते थे कि मैं बड़ी होकर इंडियन पुलिस फोर्स ज्वाइन करूं और उनकी मित्र की तरह IPS बनूं, लेकिन मेरी फैमिली में बच्चों पर कभी भी किसी भी बात के लिए दबाब नहीं दिया गया, चाहे वो करियर हो या शादी. इसलिए मैं वो नहीं बनी जो पापा चाहते थे और इसका अफसोस मुझे हमेशा रहेगा, लेकिन बड़े फक्र से मैं ये कह सकती हूं कि जिस परिवार में पली बढ़ी वो आम नहीं है और मैं आज जो कुछ भी हूं. जैसी भी हूं वो अपने पारिवारिक माहौल और परवरिश के कारण हूं.

- इंग्लिश लिटरेचर में ग्रेजुएशन करने के बाद आपका हिंदी साहित्य की तरफ रुझान कैसे हुआ?
पढ़ती तो मैं बचपन से थी, लेकिन बारहवीं के दौरान मैंने लिखना शुरू किया. शुरुआत दो-दो पंक्तियों से की थी, क्योंकि हमारे समय में इंग्लिश पढ़ने वाले अंग्रेज नहीं हुआ करते थे, इसलिए मेरी दो पंक्तियां कभी इंग्लिश में हुआ करती थी तो कभी हिंदी में. वो शायद उम्र का असर था कि मैं कुछ तुकबंदी वाली रोमांटिक कविताएं लिखने लगी. हालांकि अब लगता है वो बहुत बचकाना था.

कहानी लिखने की शुरुआत मैंने अंग्रेजी भाषा से ही की थी, जो आज भी लैपटॉप के एक फोल्डर में पड़ी हुई है, क्योंकि मेरी लिखी एक कहानी 'toward end' पढ़कर वरिष्ठ पत्रकार सत्य प्रकाश असीम सर ने कहा इसे हिंदी में लिख कर दो, सच मानिए हिंदी लेखन की शुरुआत यही से हुई और मैंने महसूस किया कि मैं खुद को हिंदी में ज्यादा बेहतर तरीके से पेश कर पाती हूं. वहीं मेरे इंग्लिश लिटरेचर के प्रोफेसर डॉक्टर बीएन मिश्रा अक्सर बीच-बीच में हिंदी में ये कहते थे 'दिल की बात हिंदी में'. कहानियां भी दिल से लिखी जाती है इसलिए मैं हिंदी में लिखने लगी. एक बात मैं हमेशा कहती हूं हिंदी मेरी आत्मा है और इंग्लिश आवरण.

- जमशेदपुर और भागलपुर से जुड़ी कोई याद जो आप शेयर करना चाहती हों.
जमशेदपुर में मेरा बचपन बीता है इसलिए जमशेदपुर मेरे लिए खूबसूरत यादों का शहर है. खूबसूरत यादें क्योंकि बचपन से खूबसूरत और कुछ नहीं. इसलिए जमशेदपुर शहर मुझे बहुत पसंद है. सालों बाद भी वहां सब कुछ वैसा का वैसा ही है. लगता है जमशेदपुर के लिए वक्त ठहर गया हो.  भागलपुर में कुछ साल ही रही हूं और 2008 से शादी के बाद मैं ज्यादातर अफ्रीका में ही रह रही हूं, लेकिन आज भी भागलपुर और जमशेदपुर आना जाना लगा रहता है. फिलहाल दारसिटी तंजानिया अफ्रीका में रह रही हूं.

प्रियंका ओम से कुछ और सवाल-

- आपकी प्रिय कहानी कौन सी है ?
- खुदगर्ज प्यार
- आपके फेवरेट लेखक कौन हैं ?
- प्रियंका ओम
- आपकी अगली किताब कब आएगी ?
- जब वो पूरी हो जाएगी
- कहानियां लिखने का आइडिया कहां से आता है ?
- दिल से
- खाने में आपको सबसे ज्यादा क्या पसंद है ?
- चने की दाल, चावल और आलू का भुजिया 
- भारत में कौन सा शहर सबसे ज्यादा पसंद है ?
- जमशेदपुर
- आपका फेवरेट रंग ?
- ब्लैक 
- टीवी पर क्या देखना पसंद करती है ?
- सास बहू और साजिश
- आपका फेवरेट हीरो कौन है ?
- मेरे पति ओम प्रकाश
- किसी बात का अफसोस ?
- मेरा बेटा अकेला है

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