गांधी के बारे में दुनिया बहुत कुछ नहीं जानती: ‘दि सीक्रेट डायरी ऑफ कस्तूरबा’

गांधी के बारे में दुनिया बहुत कुछ नहीं जानती: ‘दि सीक्रेट डायरी ऑफ कस्तूरबा’

प्रतीकात्मक तस्वीर

खास बातें

  • काल्पनिक किताब है 'दि सीक्रेट डायरी ऑफ कस्तूरबा'
  • यह गांधी की पत्नी की दृष्टि से दुनिया को कस्तूरबा के मायने बताने की कोशिश
  • यह किताब ऐतिहासिक तथ्यों की पृष्ठभूमि में लिखी गयी है.

'दुनिया में ‘कस्तूर’ को खुशबू के लिए जाना जाता है और उसका नाम इसी पर रखा गया था . वह रईस कपाड़िया परिवार में सबसे छोटी थी, जो विदेशों में कपड़े, अनाज और कपास के कारोबार का स्थापित घराना था. बाद में दुनिया में उन्हें कस्तूरबा के नाम से जाना गया. वह एक ऐसे व्यक्ति की पत्नी बनीं, जिसे शांति के दूत के रूप में दुनिया भर में सम्मान प्राप्त हुआ. कस्तूरबा की शादी बचपन में ही मोहनदास से हो गयी थी.'

नीलिमा डालमिया अडार ने कस्तूरबा के जीवन पर एक काल्पनिक किताब ‘दि सीक्रेट डायरी ऑफ कस्तूरबा’ में लिखी है, जिसमें यह बातें कही गयी हैं. अडार ने बताया कि हालांकि कस्तूरबा की ‘किसी सीक्रेट डायरी’ का जिक्र नहीं है, लेकिन यह किताब ऐतिहासिक तथ्यों की पृष्ठभूमि में लिखी गयी है.

डायरी नहीं, ऐतिहासिक तथ्यों की पृष्ठभूमि में लिखी गई किताब
इस किताब को कस्तूरबा की डायरी की शैली में लिखा गया है. इसमें उन्होंने पोरबंदर में मोहनदास के साथ अपने अनुभवों को लिखा था. उनका जन्म मोहनदास से छह माह पहले 11 अप्रैल 1869 को हुआ था, जबकि मोहनदास का जन्म दो अक्तूबर 1869 को हुआ था. इसके अलावा उन्होंने अफ्रीका के दिनों और मोहनदास के एक जन नेता के रूप में उभरने के अनुभव भी बताये हैं.

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कस्तूरबा की यह डायरी पोरबंदर से कई सालों का सफर करती है. इसमें मोध बनिया समुदाय की ओर से गांधी की पढ़ने के लिए देश से बाहर जाने की योजना का विरोध और उससे भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में गांधी के उपक्रमों के विरोध के बारे में अनुभव कहे गये हैं. इसमें कस्तूरबा ने मोहनदास के अधीन रहकर मिलने वाले भय का जिक्र किया है, जब उन्हें प्रतिदिन केवल अपने बर्तन ही नहीं, बल्कि जो लोग अपने बर्तन ठीक से साफ नहीं करते थे, उनके बर्तन धुलने के लिए भी कहा जाता था. 

लेखिका की कल्पना
लेखिका ने कल्पना के आधार पर लिखा, ‘‘लगातार एक सड़ी हुयी बदबू और मेरी कलाइयों में गहरा घाव, जिससे मोहनदास ने मुझे पकड़ लिया और घसीटकर दरवाजे तक ले गये. मोहनदास एक अपमानजनक और निर्दयी पति बन गये, वह उस व्यक्ति का लिहाज करना भूल गये थे, जिससे वह सबसे अधिक प्यार करने का दावा करते थे .मैं घुटन और फंसा हुआ महसूस कर रही थीं. ’’ हालांकि इससे भी बड़ा सदमा आना बाकी था. जब उन्होंने अपने चौथे पुत्र देवदास को जन्म दिया, तब मोहनदास ने उनसे अलग कमरे में सोने को कहा.

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किताब में कहा गया है कि मोहनदास ने कस्तूरबा से कहा, ‘‘हम अब पति पत्नी के रूप में नहीं रहेंगे. वह समझ गयीं कि उन्हें एक वफादार हिन्दू पत्नी की तरह अपने पति के पदचिन्हों का अनुसरण करना है. यह कोई मायने नहीं रखता कि इससे उनकी संवेदनायें कितनी आहत होती हैं.’’ मोहनदास करमचंद गांधी ने गरीबी और ब्रम्हचर्य की शपथ ली थी और भारत की आजादी के कारण कस्तूरबा को 62 साल तक एक समर्पित पत्नी, ‘सत्याग्रही’ और त्याग करने वाली महान मां के रूप में रहना पड़ा. उन्हें यह सब इसलिये सहना पड़ा क्योंकि एक व्यक्ति देश के बहुसंख्यकों के लिए करीब करीब भगवान की तरह बन गया था.

किताब में दावा किया गया है कि गांधी अपने पुत्र हरिलाल के लिए एक असहिष्णु पिता थे. उनके स्वच्छंद पुत्र भ्रष्ट आचरण से प्रेरित थे, जिसकी कीमत कस्तूरबा को मां के रूप असीम दुख से चुकानी पड़ी.

किताब का प्रकाशन ट्रैंकबार प्रेस ने किया है. इसमें महात्मा गांधी की पत्नी की दृष्टि से दुनिया को कस्तूरबा के मायने बताने का प्रयास किया गया है.

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