हिन्दी साहित्य में आलोचना और समीक्षा को अहम स्थान दिलाने वाले रामचन्द्र शुक्ल, 20 वीं शताब्दी के हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार हैं. 'चिन्तामणि' के रचयिता राम चन्द्र शुक्ल ने समीक्षा और समालोचना के क्षेत्र में अपना अगल ही स्थान बनाया है. आज रामचन्द्र शुक्ल का जन्मदिन है. इस मौके पर हम उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.
जिस तरह उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में प्रेमचंद्र, व्यंग्य के क्षेत्र में हरिशंकर परसाई हैं वैसे ही निबंध के क्षेत्र में शुक्ल जी का स्थान है. वह एक श्रेष्ठ निबंधकार थे. शुक्ल की पुस्तक ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’आज हिन्दी पढ़ने वाले और उसमें रूचि रखने वालों के लिए बेहद सहायक है. हिन्दी निबन्ध क्षेत्र में वह अपने विशेष योगदान के लिए जाने जाते हैं.
साल 1884 में आज ही के दिन आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी का जन्म बस्ती जिले के अगोना गावं में हुआ था. शुक्ल जब महज नौ साल के थे, तब उनकी मां का निधन हो गया. कहते हैं कि शुक्ल का हाथ गणित में थोड़ा कमजोर ही था और इसी वजह से वह इंटर की परीक्षा तक नहीं दे पाए थे. पर उस समय कौन जानता था कि वही एक दिन हिन्दी साहित्य के हर समीकरण को इस सरलता से हल करेंगे कि जमान उन्हें याद रखेगा.
प्रमुख तीन शैलियों आलोचनात्मक शैली, गवेषणात्मक शैली और भावात्मक शैली में लिखने वाले शुक्ल हर शैली के लिए सटीक भाषा में लिखते थे.
हिन्दी साहित्य के कीर्ति स्तंभ शुक्ल ने ही हिंदी वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात किया. हिंन्दी में जिस प्रकार की विद्वत्तापूर्ण आलोचनाएं उन्होंने प्रस्तुत की वैसी उनसे पहले कभी नहीं हुई थीं. शायद यही कारण है कि उनकी आलोचनाए पाठ्यक्रम में छात्रों के सहायक के रूप में आज भी खड़ी रहती हैं. शुक्ल जी की इन्हीं आलोचनाओं को हिंदी साहित्य में अनुपम विधियां माना जाता है.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
जिस तरह उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में प्रेमचंद्र, व्यंग्य के क्षेत्र में हरिशंकर परसाई हैं वैसे ही निबंध के क्षेत्र में शुक्ल जी का स्थान है. वह एक श्रेष्ठ निबंधकार थे. शुक्ल की पुस्तक ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’आज हिन्दी पढ़ने वाले और उसमें रूचि रखने वालों के लिए बेहद सहायक है. हिन्दी निबन्ध क्षेत्र में वह अपने विशेष योगदान के लिए जाने जाते हैं.
साल 1884 में आज ही के दिन आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी का जन्म बस्ती जिले के अगोना गावं में हुआ था. शुक्ल जब महज नौ साल के थे, तब उनकी मां का निधन हो गया. कहते हैं कि शुक्ल का हाथ गणित में थोड़ा कमजोर ही था और इसी वजह से वह इंटर की परीक्षा तक नहीं दे पाए थे. पर उस समय कौन जानता था कि वही एक दिन हिन्दी साहित्य के हर समीकरण को इस सरलता से हल करेंगे कि जमान उन्हें याद रखेगा.
प्रमुख तीन शैलियों आलोचनात्मक शैली, गवेषणात्मक शैली और भावात्मक शैली में लिखने वाले शुक्ल हर शैली के लिए सटीक भाषा में लिखते थे.
हिन्दी साहित्य के कीर्ति स्तंभ शुक्ल ने ही हिंदी वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात किया. हिंन्दी में जिस प्रकार की विद्वत्तापूर्ण आलोचनाएं उन्होंने प्रस्तुत की वैसी उनसे पहले कभी नहीं हुई थीं. शायद यही कारण है कि उनकी आलोचनाए पाठ्यक्रम में छात्रों के सहायक के रूप में आज भी खड़ी रहती हैं. शुक्ल जी की इन्हीं आलोचनाओं को हिंदी साहित्य में अनुपम विधियां माना जाता है.
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