देहरादून:
उत्तराखंड के राज्यपाल डा कृष्णकांत पाल ने प्रसिद्घ अंग्रेजी लेखक रस्किन बांड को सम्मानित किया. यहां राजभवन में आयोजित कार्यक्रम में बांड ने शहर के बुद्विजीवियों के साथ अपने अनुभवों को भी साझा किया. राज्यपाल ने प्रकृति प्रेम और मानव स्वभाव पर आधारित रस्किन बॉन्ड की रचनाओं में अभिव्यक्ति की अनुपम शैली की सराहना करते हुए उनके कार्यों का उल्लेख किया.
राज्यपाल ने बताया कि वह स्वयं श्याम बेनेगल की फिल्म रजुनूनॅ के माध्यम से रस्किन बॉन्ड से परिचित हुए जो उनके ही उपन्यास रए फ्लाइट ऑफ पिज़न्सॅ पर बनी है. उन्होंने बताया कि फिल्म देखने के बाद ही उन्होंने इस उपन्यास को पढ़ा.
राज्यपाल ने कहा कि पहाड़ों के प्रति रस्किन का प्यार, देहरादून व मसूरी के प्रति उनका गहरा लगाव तथा अपने लेखन में मानव स्वभाव की अच्छाईयों के प्रति उनकी अभिव्यक्ति ने ही उन्हें पाठ्कों के बीच लोकप्रिय बनाया. उन्होंने कहा कि दून घाटी के प्रति रस्किन का गहरा भावात्मक लगाव है और यही कारण है कि दून घाटी की खूबसूरती व प्राकृतिक सौंदर्य उनके लेखन में उभर कर आया है.
बॉन्ड ने देहरादून के लिये अपने लगाव के बारे में बताते हुए किशोरावस्था में देहरादून से लंदन जाने तथा लंदन से वापस देहरादून की खूबसूरत वादियों में लौट आने, दोस्तों, पहाड़ों, पेडों और दून घाटी के पर्यावरण से जुड़ी अपनी स्मृतियों को साझा किया.
उन्होंने बताया कि 1963 से मसूरी में रहते हुए वह प्रकृति से प्रेरित होकर निरन्तर स्वतन्त्र लेखन कर रहे हैं. बॉन्ड ने बुद्घिजीवियों से अपनी जीवन शैली अपनी कहानी की पटकथा, हास्य-विनोद भरे स्वभाव से भी परिचित कराया. रई-बुक्सॅ के बढ़ते चलन पर उन्होंने कहा कि अच्छा है कि लोग पढ़ रहे हैं किन्तु असली किताब पढ़ने का मजा ही कुछ और है.
राज्यपाल ने बताया कि वह स्वयं श्याम बेनेगल की फिल्म रजुनूनॅ के माध्यम से रस्किन बॉन्ड से परिचित हुए जो उनके ही उपन्यास रए फ्लाइट ऑफ पिज़न्सॅ पर बनी है. उन्होंने बताया कि फिल्म देखने के बाद ही उन्होंने इस उपन्यास को पढ़ा.
राज्यपाल ने कहा कि पहाड़ों के प्रति रस्किन का प्यार, देहरादून व मसूरी के प्रति उनका गहरा लगाव तथा अपने लेखन में मानव स्वभाव की अच्छाईयों के प्रति उनकी अभिव्यक्ति ने ही उन्हें पाठ्कों के बीच लोकप्रिय बनाया. उन्होंने कहा कि दून घाटी के प्रति रस्किन का गहरा भावात्मक लगाव है और यही कारण है कि दून घाटी की खूबसूरती व प्राकृतिक सौंदर्य उनके लेखन में उभर कर आया है.
बॉन्ड ने देहरादून के लिये अपने लगाव के बारे में बताते हुए किशोरावस्था में देहरादून से लंदन जाने तथा लंदन से वापस देहरादून की खूबसूरत वादियों में लौट आने, दोस्तों, पहाड़ों, पेडों और दून घाटी के पर्यावरण से जुड़ी अपनी स्मृतियों को साझा किया.
उन्होंने बताया कि 1963 से मसूरी में रहते हुए वह प्रकृति से प्रेरित होकर निरन्तर स्वतन्त्र लेखन कर रहे हैं. बॉन्ड ने बुद्घिजीवियों से अपनी जीवन शैली अपनी कहानी की पटकथा, हास्य-विनोद भरे स्वभाव से भी परिचित कराया. रई-बुक्सॅ के बढ़ते चलन पर उन्होंने कहा कि अच्छा है कि लोग पढ़ रहे हैं किन्तु असली किताब पढ़ने का मजा ही कुछ और है.
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