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क्या मुगलों के जमाने में था बोर्ड परीक्षा का कॉन्सेप्ट, जानिए उस वक्त कैसे होती थी परीक्षा

मुगल काल में शिक्षा और परीक्षा की व्यवस्था कैसी थी? जानिए उस दौर में बोर्ड परीक्षा जैसा कॉन्सेप्ट कैसे काम करता था, मौखिक परीक्षा, सवाल-जवाब और इजाजतनामा यानी प्रमाणपत्र की दिलचस्प कहानी.

क्या मुगलों के जमाने में था बोर्ड परीक्षा का कॉन्सेप्ट, जानिए उस वक्त कैसे होती थी परीक्षा
नई दिल्ली:

Mughal Era Education System: मुगल काल की शिक्षा प्रणाली अपने आप में बेहद खास थी. आज हम बोर्ड परीक्षा, मार्कशीट और रिजल्ट की बात करते हैं लेकिन उस दौर में पढ़ाई और परीक्षा का तरीका बिल्कुल अलग हुआ करता था. छात्रों की समझ और काबिलियत जांचने के लिए उस समय मौखिक परीक्षा ली जाती थी, उनसे सवाल-जवाब होते थे और कभी-कभी विद्वानों की सभा में अपना ज्ञान दिखाना पड़ता था. मतलब उस दौर में भी परीक्षा होती थी, बस तरीका आज से अलग था.

पढ़ाई कहां होती थी

मुगल काल में पढ़ाई लिखाई का सबसे बड़ा ठिकाना मदरसे और मकतब होते थे. यहां बच्चे कुरान, अरबी और फारसी भाषा सीखते थे. इसके साथ ही गणित, खगोल विज्ञान, तर्कशास्त्र और साहित्य जैसी पढ़ाई भी कराई जाती थी. पढ़ाई अच्छी हो इसके लिए उस समय बड़े-बड़े विद्वान और उलेमा पढ़ाने के लिए रखे जाते थे.

लिखित बोर्ड परीक्षा नहीं मौखिक परीक्षा होती थी

आज की तरह न तो लिखित बोर्ड परीक्षा होती थी और न ही मार्कशीट मिलती थी. उस दौर में छात्रों की परीक्षा मौखिक रूप से ली जाती थी. छात्र अपना पाठ याद करके गुरु के सामने सुनाते थे. कभी-कभी उन्हें विद्वानों की सभा में बुलाकर कठिन सवाल पूछे जाते थे. सवाल-जवाब के जरिए उनकी याददाश्त, सोचने-समझने की क्षमता और पढ़ाई की पकड़ देखी जाती थी.

प्रमाणपत्र और डिग्री का सिस्टम

हालांकि तब बोर्ड रिजल्ट जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं था. लेकिन शिक्षा पूरी करने के बाद छात्रों को गुरु या संस्था की तरफ से एक इजाजतनामा (प्रमाणपत्र) दिया जाता था. यही आगे चलकर डिग्री की तरह काम करता था. इसी के आधार पर छात्र नौकरियां हासिल करते थे या विद्वानों की मंडली में जगह पाते थे.

नौकरियों के लिए परीक्षा

मुगल प्रशासन और दरबार से जुड़ी नौकरियों के लिए भी परीक्षा जैसी प्रक्रिया होती थी. उम्मीदवार से साहित्य, गणित, खगोल या सैन्य ज्ञान से जुड़े सवाल पूछे जाते थे. कई बार यह तय करने के लिए कि कोई व्यक्ति नौकरी के लायक है या नहीं उसकी परीक्षा होती थी. हालांकि विद्वानों या प्रभावशाली लोगों की सिफारिश भी अहम मानी जाती थी.

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