विज्ञापन

भारत की 'मिसाइल लैब' DRDO क्या है, जानिए कैसे हुई इसकी शुरुआत

DRDO History: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) का काम भारतीय सेना की हर जरूरत को पूरा करना है, इसके अलावा भारत के आधुनिक हथियार और मिसाइलें भी यही तैयार करता है.

भारत की 'मिसाइल लैब' DRDO क्या है, जानिए कैसे हुई इसकी शुरुआत
DRDO की पूरी कहानी

DRDO History: डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) का नाम आपने कई बार सुना होगा. हाल ही में डीआरडीओ ने अंकथी राजू को डिफेंस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट लेबोरेट्री का डायरेक्टर नियुक्त किया है. ये एक ऐसा संस्थान है, जो मिसाइल से लेकर भारतीय सेना से जुड़ी तमाम चीजें बनाता है और इन पर रिसर्च करता है. परमाणु बम से लेकर हाइड्रोजन बम बनाने में इसी डीआरडीओ के साइंटिस्ट्स का सबसे बड़ा योगदान रहा है. आज हम आपको मिसाइल लैब डीआरडीओ की पूरी कहानी बता रहे हैं, जिसमें ये जानेंगे कि आखिर इसकी शुरुआत कब हुई और कैसे ये आत्मनिर्भर भारत की सबसे बड़ी पहचान बन गया. 

डिफेंस सेक्टर के लिए बनाया गया डीआरडीओ

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की स्थापना साल 1958 में हुई थी. देश में डिफेंस सेक्टर से जुड़ी रिसर्च और मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए इसकी शुरुआत की गई थी. शुरू में ये सिर्फ 10 लैबोरेट्री के साथ चलाया गया, लेकिन आज डीआरडीओ की ब्रांच देशभर में फैली हुई हैं. आज देशभर में इसकी करीब 42 लैबोरेट्री हैं, जहां डिफेंस के तमाम सेक्टर्स में काम करने के लिए हजारों साइंटिस्ट काम करते हैं. भारत का न्यूक्लियर प्रोग्राम भी इसी संस्थान के वैज्ञानिकों की देखरेख में किया गया था. 

JNU में कैसे हुई वामपंथ राजनीति की शुरुआत, ये है पूरी कहानी

क्या है DRDO का काम?

डीआरडीओ का काम सेनाओं की तमाम जरूरतों को पूरा करना और इसके लिए रिसर्च करना है. डीआरडीओ एयरोनॉटिक्स, आर्मामेंट्स, युद्धक वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्र्मेंटेशन, इंजीनियरिंग प्रणालियां, मिसाइलें, नौसेना प्रणालियां, एड्वांस कम्प्यूटिंग, सिम्युलेशन, साइबर और ऐस ही तमाम चीजों पर काम करता है. यहां आधुनिक हथियार, सेंसर, मिसाइल, रडार, तोप, बम, टैंक, पनडुब्बी, जवानों के लिए जूते और लड़ाकू विमानों को तैयार किया जाता है और उनके पार्ट्स भी बनाए जाते हैं. 

कलाम के नेतृत्व में हुई मिसाइल बनाने की शुरुआत

आज भारत के पास पृथ्वी, अग्नि, आकाश, त्रिशूल और ब्रह्मोस जैसी खतरनाक मिसाइलें हैं, जो पल भर में दुश्मन का खात्मा करने में सक्षम हैं. हालांकि एक दौर था जब भारत में मिसाइलें साइकिल के पीछे रखकर ले जाई जाती थीं. डीआरडीओ ने मिसाइल टेक्नोलॉजी पर 1980 के दशक में काम करना शुरू किया और इसका नेतृत्व भारत के पूर्व राष्ट्रपति और मशहूर साइंटिस्ट डॉक्टर अब्दुल कलाम ने किया था. 

भारत का न्यूक्लियर प्रोग्राम शुरू होने के बाद अमेरिका जैसे तमाम बड़े देशों ने भारत पर कई पाबंदियां लगाईं और डिफेंस से जुड़ी तमाम चीजों की सप्लाई भी बंद हो गई. इसके बाद डिफेंस सेक्टर में भारत ने तेजी से काम करना शुरू कर दिया और तमाम तरह की आधुनिक मिसाइलें तैयार कीं, इसमें डीआरडीओ के तमाम वैज्ञानिकों का सबसे अहम योगदान रहा. आज भारत सिर्फ मिसाइलें तैयार ही नहीं कर रहा है, बल्कि इन्हें दूसरे देशों को भी निर्यात कर रहा है. 
 

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com