श्री श्री रविशंकर की संस्था ने पिछले साल यमुना के तट पर भव्य आयोजन किया था
नई दिल्ली:
देश की सबसे बड़ी पर्यावरण अदालत ने आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर के खिलाफ नाराज़गी जताते हुए पूछा है कि 'क्या आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती. आपको लगता है कि आप जो मन में आया बोल सकते हैं?'
गौरतलब है कि बुधवार को श्री श्री ने पिछले साल यमुना नदी के किनारे हुए तीन दिन के सम्मेलन के आयोजन के लिए सरकार और अदालत को जिम्मेदार ठहाराया था. उन्होंने कहा था कि यह तो सरकार और अदालत की गलती है कि उन्होंने इस कार्यक्रम की अनुमति दी. अदालत की फटाकर पर श्री श्री के प्रवक्ता ने कहा है कि - वह इससे सहमत नहीं हैं. प्रवक्ता ने कहा कि अदालत का असल आंकलन अंतिम आदेश में सामने आएगा. अगली सुनवाई सात मई को होगी.
दरअसल विशेषज्ञों की टीम ने एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के सामने इस बात की गवाही दी है कि कई सौ एकड़ में आयोजित किए गए इस कार्यक्रम की वजह से नदी का ताल पूरी तरह बर्बाद हो गया है. साक्ष्य में कहा गया कि इस नुकसान की भरपाई कम से कम 10 साल में हो पाएगी और इसमें करीब 42 करोड़ रुपए खर्च होंगे.
60 साल के श्री श्री की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन ने इन सभी आरोपों को नकारा है. रविशंकर ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि 'अगर किसी तरह का जुर्माना लगाना ही है तो केंद्र, राज्य और एनजीटी पर लगाया जाना चाहिए जिसने इस कार्यक्रम की अनुमति दी थी. अगर यमुना इतनी ही नाज़ुक और पवित्र है तो उन्हें वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल करने से हमें रोकना चाहिए था.'
गौरतलब है कि पिछले साल यमुना के किनारे हुए वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल का पर्यावरणविदों ने विरोध किया था. लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा था कि अब कार्यक्रम को रद्द करने के लिए बहुत देर हो चुकी है. इसके साथ ही कोर्ट ने रविशंकर की संस्था पर पांच करोड़ का जुर्माना लगाया था. उस वक्त श्री श्री ने कहा था कि उन्हें तो इस बात के लिए अवॉर्ड दिया जाना चाहिए कि दुनिया भर के लोगों को वह सबसे प्रदूषित नदियों में से एक के किनारे एकजुट कर पाए.
यही नहीं, इस कार्यक्रम के पहले दिन श्री श्री के साथ पीएम नरेंद्र मोदी मौजूद थे. आर्ट ऑफ लिविंग ने कहा है कि वह पर्यावरण के संरक्षण को लेकर प्रतिबद्ध है और वह देश भर में इस मुद्दे पर विभन्न परियोजनाओं के साथ जुड़ी हुई है.
गौरतलब है कि बुधवार को श्री श्री ने पिछले साल यमुना नदी के किनारे हुए तीन दिन के सम्मेलन के आयोजन के लिए सरकार और अदालत को जिम्मेदार ठहाराया था. उन्होंने कहा था कि यह तो सरकार और अदालत की गलती है कि उन्होंने इस कार्यक्रम की अनुमति दी. अदालत की फटाकर पर श्री श्री के प्रवक्ता ने कहा है कि - वह इससे सहमत नहीं हैं. प्रवक्ता ने कहा कि अदालत का असल आंकलन अंतिम आदेश में सामने आएगा. अगली सुनवाई सात मई को होगी.
दरअसल विशेषज्ञों की टीम ने एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के सामने इस बात की गवाही दी है कि कई सौ एकड़ में आयोजित किए गए इस कार्यक्रम की वजह से नदी का ताल पूरी तरह बर्बाद हो गया है. साक्ष्य में कहा गया कि इस नुकसान की भरपाई कम से कम 10 साल में हो पाएगी और इसमें करीब 42 करोड़ रुपए खर्च होंगे.
60 साल के श्री श्री की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन ने इन सभी आरोपों को नकारा है. रविशंकर ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि 'अगर किसी तरह का जुर्माना लगाना ही है तो केंद्र, राज्य और एनजीटी पर लगाया जाना चाहिए जिसने इस कार्यक्रम की अनुमति दी थी. अगर यमुना इतनी ही नाज़ुक और पवित्र है तो उन्हें वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल करने से हमें रोकना चाहिए था.'
गौरतलब है कि पिछले साल यमुना के किनारे हुए वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल का पर्यावरणविदों ने विरोध किया था. लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा था कि अब कार्यक्रम को रद्द करने के लिए बहुत देर हो चुकी है. इसके साथ ही कोर्ट ने रविशंकर की संस्था पर पांच करोड़ का जुर्माना लगाया था. उस वक्त श्री श्री ने कहा था कि उन्हें तो इस बात के लिए अवॉर्ड दिया जाना चाहिए कि दुनिया भर के लोगों को वह सबसे प्रदूषित नदियों में से एक के किनारे एकजुट कर पाए.
यही नहीं, इस कार्यक्रम के पहले दिन श्री श्री के साथ पीएम नरेंद्र मोदी मौजूद थे. आर्ट ऑफ लिविंग ने कहा है कि वह पर्यावरण के संरक्षण को लेकर प्रतिबद्ध है और वह देश भर में इस मुद्दे पर विभन्न परियोजनाओं के साथ जुड़ी हुई है.
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