पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) को श्रद्धांजलि देना का सिलसिला जारी है. हालांकि कोरोना वायरस की वजह से कई तरह के प्रतिबंध लागू हैं. आज ही प्रणब मुखर्जी को पंचतत्व में विलीन कर दिया जाएगा. देश में 7 दिन के राष्ट्रीय शोक का भी ऐलान किया गया है. कांग्रेस के संकटमोचक रहे प्रणब मुखर्जी बीच-बीच में पार्टी को झटका देते भी रहते थे. पार्टी नेताओं के विरोध के बावजूद भी वह नागपुर में आरएसएस के कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंच गए. राजीव गांधी से उनके मतभेद भी हुए थे. हालांकि कई विरोधाभाषों के बाद भी कांग्रेस में उनकी हैसियत कम नहीं हुई. एक बार लोकसभा में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि वह सोचते हैं कि अगर प्रणब दा नहीं होते तो यूपीए सरकार का क्या होता. प्रणब मुखर्जी ने अपनी डायरियां भी लिखते थे और उन्होंने कहा था कि इन डायरियों को उनके न रहने पर ही प्रकाशित की जाएं.
अपनी आत्मकथा के तीसरे हिस्से में उन्होंने लिखा है कि राष्ट्रपति पद पर चुने जाने से पहले वर्ष 2012 में उनकी मुंबई में दिवंगत शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे से हुई मुलाकात की वजह से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी नाराज़ थीं. सोनिया गांधी ने उनको न मिलने की भी सलाह दी थी. मुखर्जी ने कहा कि वह राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन पाने के लिए महाराष्ट्र गए थे, जहां उनकी उम्मीदवारी को समर्थन दे रहे शिवसेना प्रमुख ने अपने आवास 'मातोश्री' पर डॉ मुखर्जी के स्वागत के लिए खासे इंतजाम कर रखे थे. शरद पवार भी चाहते थे कि मुखर्जी शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे से जरूर मुलाकात करें.
डॉ मुखर्जी ने आत्मकथा के तीसरे खंड 'कोअलिशन ईअर्स : 1996-2012' बाल ठाकरे से अपनी मुलाकात को सही भी ठहराया. उनके मुताबिक इस कदम के पीछे उनकी एक सियासी समीकरण था. वह यूपीए को समर्थन कर रहे एनसीपी को संतुष्ट रखना चाहते थे क्योंकि उसी समय ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस गठबंधन छोड़ चुकी थी. मुखर्जी अपनी आत्मकथा में कहते हैं कि मुंबई यात्रा काफी अहम थी, क्योंकि एनडीए में होने के बाद भी शिवसेना ने उनकी उम्मीदवारी के समर्थन का ऐलान किया था.
डॉ मुखर्जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा, "मैंने सोनिया गांधी और शरद पवार दोनों से पूछा था कि क्या मुझे मुंबई यात्रा के दौरान (बाल) ठाकरे से मिलना चाहिए या नहीं... मुझे उनकी ओर से उनके आवास पर मिलने के लिए कई संदेश मिल चुके थे... सोनिया गांधी इस मुलाकात को लेकर उत्साहित नहीं थीं, और संभव हो सके, तो इसे डालना चाहती थीं... सोनिया गांधी के दिमाग में ठाकरे की छवि उनकी नीतियों की वजह से कुछ अलग थी..."
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