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Exclusive : नीरा राडिया ने बताया, रतन टाटा क्यों सिंगूर में लगाने चाहते थे नैनो फैक्ट्री

नीरा राडिया ने बताया कि बंगाल के सिंगूर में नैनो कार बनाने का फैसला हैरान करने वाला था. उन्होंने कहा, "हमें ये नहीं बताया गया था कि इस कार को कहां बनाया जाएगा, हम वाकई हैरान थे."

Exclusive : नीरा राडिया ने बताया, रतन टाटा क्यों सिंगूर में लगाने चाहते थे नैनो फैक्ट्री
नई दिल्ली:

बंगाल के सिंगूर में 1 लाख की कार नैनो बनाने के फैसले और साथ ही उसकी कीमत ने सभी को चौंका दिया था. यह बात अब बंद हो चुकी वैष्णवी कम्युनिकेशंस की पूर्व प्रमुख नीरा राडिया ने एनडीटीवी से खास बातचीत में कही. नीरा राडिया की कंपनी टाटा ग्रुप के लिए साल 2000 से 2012 तक पब्लिक रिलेशन का काम संभालती थी. रतन टाटा और उनके साथ एक दशक तक काम करने के अनुभव को याद करते हुए राडिया ने उन्हें एक स्वप्नद्रष्टा और दूरदर्शी शख्सियत बताया है, जो एक ऐसी कार बनाना चाहते थे जो दोपहिया वाहन चलाने वाले आम आदमी को "बारिश से बचाए" रखे.

राडिया ने बताया कि बंगाल के सिंगूर में नैनो कार बनाने का फैसला हैरान करने वाला था. उन्होंने कहा, "हमें ये नहीं बताया गया था कि इस कार को कहां बनाया जाएगा, हम वाकई हैरान थे."

उन्होंने बताया कि उस प्रोजेक्ट के लिए रतन टाटा ने बंगाल को इसलिए चुना क्योंकि उस समय उन्हें लगा कि राज्य को औद्योगीकरण की जरूरत है. और उन्होंने सिंगूर को इसलिए चुना, क्योंकि वह विपक्ष के विधायक रवीन्द्रनाथ भट्टाचार्य  (तृणमूल कांग्रेस) की सीट थी. क्योंकि "वह हमेशा सभी को साथ लेकर चलना चाहते थे."

अगर वहां पर यह प्रोजेक्ट लगता तो उस क्षेत्र का बहुत शानदार विकास होता, जैसा गुजरात के साणंद में हुआ. ममता बनर्जी के विरोध की वजह से सिंगूर में यह प्रोजेक्ट नहीं लग पाया, जो कि बाद में गुजरात शिफ्ट हो गया. ममता बनर्जी इसी विरोध प्रदर्शन के दम पर साल 2011 में सत्ता में आई थीं.

राडिया ने बताया, "कोलकाता से सिंगूर तक की पूरी सड़क शानदार बनती. जैसा कि साणंद में हुआ था... आज साणंद गुड़गांव जैसा लगता है." 
उन्होंने बताया कि उस वक्त प्रोजेक्ट का विरोध पूरी तरह से सियासी था, ये नैनो, रतन या टाटा के बारे में नहीं था."

वाम मोर्चा सरकार ने औद्योगिकीकरण, विकास और नौकरियों के वादे पर 2006 का विधानसभा चुनाव जीता था. नैनो प्रोजेक्ट को उस बदलाव के अगुआ के रूप में देखा गया था. इसका ऐलान तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने किया था.

लेकिन राज्य सरकार ने जो 997 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी, उसमें 347 एकड़ जमीन विवादित हो गई. किसानों को ममता बनर्जी के रूप में उनकी आवाज उठाने वाला मिल गया, जिन्होंने 26 दिनों की भूख हड़ताल की. इसी विरोध प्रदर्शन ने बंगाल के भविष्य की दिशा बदल दी.

नैनो प्रोजेक्ट अंततः गुजरात चला गया, जहां नरेंद्र मोदी की सरकार थी. राडिया ने बताया, "निवेश के लिए निमंत्रण मिलने के बाद हमने कई राज्यों - पंजाब, कर्नाटक और उत्तराखंड - का दौरा किया. फिर हमें गुजरात से निमंत्रण मिला. नरेंद्र मोदी वहां सीएम थे और गुजरात में टाटा के दूसरे प्लांट भी थे और वह एक ऐसे राज्य में जाना चाहते थे जो पहले से ही औद्योगीकृत है."

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