
- भारत-ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौता फाइनल हो गया है और यह दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को नया आयाम देगा.
- इस व्यापार समझौते से ब्रिटेन के GDP में सालाना अरबों पाउंड की बढ़ोतरी होगी और विनिर्माण क्षेत्र को लाभ मिलेगा.
- भारत-यूके FTA से चीन और अमेरिका के कुछ निर्यात क्षेत्रों को प्रतिस्पर्धा में नुकसान होने की संभावना है.
India-UK Free Trade Agreement: भारत और ब्रिटेन के बीच गुरुवार, 24 जुलाई को मुक्त व्यापार समझौता (FTA) फाइनल हो गया. इस मुक्त व्यापार समझौते पर पीएम मोदी और ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर के हस्ताक्षर के साथ दोनों देशों के आर्थिक संबंधों में एक नया अध्याय शुरू हो गया है. यूरोपीय यूनियन (ईयू) छोड़ने के बाद यह ब्रिटेन द्वारा किया गया सबसे बड़ा और आर्थिक रूप से सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यापार समझौता है.
चलिए इस एक्सप्लेनर में समझने की कोशिश करते हैं कि भारत-ब्रिटेन FTA इतना खास क्यों है. भारत कैसे ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के लिए 'ऑक्सीजन' बन रहा है. इस डील से भारत को कितना फायदा होगा, भारत और यूके पहले से और कितने करीब आएंगे. और सबसे बड़ा सवाल कि ब्रिटेन के साथ हुई इस डील से चीन और अमेरिका को क्या नुकसान होगा.
भारत-ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौता खास क्यों है?
भारत और ब्रिटेन के FTA के तहत 99 प्रतिशत भारतीय निर्यात पर ब्रिटेन में कोई शुल्क यानी टैरिफ नहीं लगेगा. वहीं भारत के अंदर ब्रिटिश कारों एवं व्हिस्की जैसे उत्पादों पर टैरिफ कम होंगे अगले साल से लागू होने वाले इस समझौते का लक्ष्य वर्ष 2030 तक दोनों देशों के बीच व्यापार को दोगुना करना है जो फिलहाल 56 अरब डॉलर है. भारत ने चॉकलेट, बिस्कुट एवं सौंदर्य प्रसाधनों (कॉस्मेटिक) सहित विभिन्न उपभोक्ता वस्तुओं के लिए अपना बाजार खोल दिया है. इसके साथ ही उसे कपड़ा, जूते, रत्न एवं आभूषण, खेल के सामान और खिलौनों जैसे निर्यात उत्पादों तक भी आसान पहुंच मिलेगी.
इसके अलावा, ब्रिटेन में काम कर रहीं टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) और इन्फोसिस जैसी भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों को भारत से आने वाले कर्मचारियों के लिए तीन साल तक सामाजिक सुरक्षा अंशदान भी नहीं करना होगा. इस समझौते को आधिकारिक तौर पर 'व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौता' (सीईटीए) का नाम दिया गया है. इसे तीन साल तक चली बातचीत के बाद अंतिम रूप दिया गया है.
ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के लिए 'ऑक्सीजन' क्यों?
इस सवाल का जवाब खुद ब्रिटिश पीएम देते दिखें. व्यापार समझौते पर दस्तखत होने के कुछ देर पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने कहा था कि इस समझौते से समूचे ब्रिटेन में हजारों रोजगार पैदा होंगे, कंपनियों को नए अवसर मिलेंगे और वृद्धि को रफ्तार मिलेगी. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, ब्रिटेन पहले से ही भारत से 11 अरब पाउंड का सामान आयात करता है लेकिन भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ कम होने से ब्रिटिश उपभोक्ताओं एवं कंपनियों के लिए भारतीय उत्पादों की खरीद अधिक आसान और सस्ती हो जाएगी. इससे भारतीय कंपनियों की तरफ से ब्रिटेन को किए जाने वाले निर्यात में भी बढ़ोतरी होगी.
व्यापक आर्थिक एवं व्यापार समझौते के विश्लेषण से पता चलता है कि लंबे समय में ब्रिटेन के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सालाना 4.8 अरब पाउंड की बढ़ोतरी होगी, जिसका फायदा ब्रिटेन के हर क्षेत्र को होगा. विनिर्माण क्षेत्र यानी मैन्युफैक्चरिंग को खास लाभ होगा, जिसमें वैमानिकी कलपुर्जों पर भारत में टैरिफ 11 प्रतिशत से घटाकर शून्य, वाहन पर 110 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत होगा.
FTA से चीन और अमेरिका को क्या नुकसान?
यूके के साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौता (FTA) भारतीय उपभोक्ताओं के लिए औद्योगिक इनपुट और उपभोक्ता वस्तुओं को सस्ता बनाने के लिए तैयार है. लेकिन यह अमेरिका और चीन से मौजूदा व्यापार प्रवाह को डेंट भी दे सकता है.
FTA एक नई वैश्विक व्यापार रणनीति का संकेत देता है, जो चीन पर निर्भरता को दरकिनार कर अमेरिकी टैरिफ को नियंत्रित करता है. परिधान निर्यात संवर्धन परिषद के अनुसार ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौता होने के कारण अगले तीन वर्षों में ब्रिटेन को होने वाले भारत के तैयार कपड़ों के निर्यात को दोगुना करने में मदद मिलेगी. भारत, ब्रिटेन के कुल तैयार कपड़ों के आयात में 6.1 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ, कपड़ों का चौथा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है. ब्रिटेन को तैयार कपड़ों का शीर्ष सप्लायर देश, चीन है. अब भारत से सप्लाई बढ़ने के बाद चीन को डेंट लग सकता है.
मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका ने 2024 में भारत को 39 अरब डॉलर मूल्य का सामान निर्यात किया था. अब उसे अपने 1.24 अरब डॉलर मूल्य के शिपमेंट में प्रतिस्पर्धा का सामना करने की उम्मीद है - जो भारत को कुल निर्यात का लगभग 3.2 प्रतिशत है.
रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक डेंट अमेरिक से निर्यात होने वाले तांबे और लोहे के वेस्ट और स्क्रैप में लग सकता है, जिसकी कीमत 703 मिलियन डॉलर है. इसके साथ ही मशीनरी, वाहन के हिस्से, कॉन्टैक्ट लेंस और चिकित्सीय उपकरण जैसी कैटैगरी वाले निर्यात पर भी असर पड़ सकता है. अब भारत में ब्रिटेन के सामानों को कम टैरिफ से फायदा होने वाला है, ऐसे में अमेरिकी निर्यातकों को इन क्षेत्रों में नुकसान हो सकता है.
(इनपुट- भाषा)
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