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दिल्ली में अब मॉनसून के बाद होगा क्लाउड सीडिंग ट्रायल, क्यों ₹3.21 करोड़ खर्च कर रही सरकार?

इस प्रोजेक्‍ट पर 3.21 करोड़ रुपये लगने वाले हैं और इसमें सफलता मिली तो ये दिल्ली के स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए एक बड़ी उपलब्धि साबित हो सकती है.

दिल्ली में अब मॉनसून के बाद होगा क्लाउड सीडिंग ट्रायल, क्यों ₹3.21 करोड़ खर्च कर रही सरकार?
नई दिल्‍ली:

दिल्ली सरकार अब क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) का ट्रायल मॉनसून खत्म होने के बाद कराएगी. पहले इसकी योजना 4 से 11 जुलाई के बीच थी, लेकिन अब इसे टाल दिया गया है. इस ट्रायल का मुख्य उद्देश्य है– वायु प्रदूषण में कमी लाना. इसके लिए सरकार लगभग ₹3.21 करोड़ खर्च कर रही है. दुनिया के कई देश (जैसे अमेरिका, चीन, UAE) इसका उपयोग सूखे से निपटने, एयर क्‍वालिटी सुधारने या अन्‍य उद्देश्‍यों की पूर्ति के लिए करते हैं.

क्या है क्लाउड सीडिंग?

क्‍लाउड सीडिंग को सरल शब्‍दों में समझें तो जब आसमान में बादल होंगे, सरकार विमान भेजेगी, जो बादलों में नमक और रासायनिक कण छोड़ेंगे, ताकि कृत्रिम बारिश हो जाए. अगर ऐसा हुआ तो दिल्ली की प्रदूषित हवा थोड़ी साफ हो सकेगी.

ये एक वैज्ञानिक तकनीक है जिससे बादलों में कुछ खास पदार्थ (जैसे सिल्वर आयोडाइड, आयोडाइज्ड नमक, रॉक सॉल्ट आदि) छोड़े जाते हैं. ये पदार्थ हवा में मौजूद नमी को आकर्षित करके बूंदें या बर्फ के कण बनने में मदद करते हैं. जब ये कण भारी हो जाते हैं तो जमीन पर बारिश या बर्फबारी के रूप में गिरते हैं.

इसे विमानों, रॉकेट्स या ग्राउंड मशीनों से किया जाता है. यह तब ही प्रभावी होता है जब पहले से कुछ नमी वाले बादल आसमान में मौजूद हों. 

कैसे होगा क्लाउड सीडिंग ट्रायल?

  • ये परियोजना IIT कानपुर और IMD पुणे की तकनीकी निगरानी में होगी.
  • प्रत्येक ट्रायल में 90 मिनट की 5 उड़ानें होंगी.
  • हर उड़ान 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करेगी.
  • ट्रायल के लिए Cessna विमान को विशेष रूप से तैयार किया गया है.
  • ये विमान नैनो सिल्वर आयोडाइड और नमक का मिश्रण हवा में छोड़ेगा.
  • उड़ानें दिल्ली के उत्तर-पश्चिम और बाहरी क्षेत्रों में होंगी, जहां हवाई क्षेत्र अपेक्षाकृत कम सुरक्षा वाले हैं.

क्यों हो रहा है ट्रायल, क्या मिलेगा फायदा?

दिल्ली में वायु प्रदूषण लगातार एक बड़ी समस्या रही है. खासकर सर्दियों में स्थिति बहुत खराब हो जाती है. क्लाउड सीडिंग से नमी युक्त बादलों में बारिश कराई जाएगी, जिससे वातावरण में मौजूद प्रदूषक कण नीचे बैठेंगे और हवा साफ हो सकेगी.

  • ये देश की राजधानी में पहला ऐसा प्रयोग होगा.
  • सफलता मिलने पर इसे नियमित रूप से अपनाया जा सकता है.
  • दुनिया के कुछ हिस्सों में इस तकनीक से 5–15% तक बारिश बढ़ाने में सफलता मिली है.
  • देश में भी पूर्व में एक पायलट प्रोजेक्ट में 3% बारिश वृद्धि देखी गई थी.

दिल्ली में मॉनसून की स्थिति 

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, 28 जून को मॉनसून दिल्ली पहुंच गया था, लेकिन अब तक हल्की बारिश ही हुई है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के आसपास के हिस्सों में भी यही स्थिति बनी हुई है. अगले 3-4 दिनों में हवाओं के उत्तर की ओर बढ़ने से बारिश की संभावना में सुधार हो सकता है. आमतौर पर 27-30 जून के बीच दिल्ली में मॉनसून आता है.

अब तक क्यों नहीं हो पाई थी क्लाउड सीडिंग?

दिल्ली में पहले भी कृत्रिम बारिश की कई योजनाएं बनी थीं, लेकिन तकनीकी और प्रशासनिक मंजूरियों की कमी से वे लागू नहीं हो सकीं. इस बार नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) से विशेष अनुमति ली गई है. IIT कानपुर के वैज्ञानिकों ने फॉर्मूला तैयार किया है और ट्रायल की दिशा में सब कुछ लगभग तैयार है.

अगर ट्रायल सफल रहता है तो यह दिल्ली जैसे महानगरों में प्रदूषण से लड़ने का एक नया रास्ता खोल सकता है. इस प्रोजेक्‍ट पर 3.21 करोड़ रुपये लगने वाले हैं और इसमें सफलता मिली तो ये दिल्ली के स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए एक बड़ी उपलब्धि साबित हो सकती है.

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