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कौन हैं अशोक चक्र से सम्मानित "रैंबो"? बहादुरी पर लिखी गई किताब; रौंगटे खड़े करने वाले हैं किस्से 

मेजर वालिया के बारे में रैंबो में लिखा है कि करगिल जंग के समय वो तात्कालीन सेना प्रमुख जनरल वी पी मलिक के स्टाफ ऑफिसर थे. मगर जंग शुरू हुई तो वह विशेष अनुमति लेकर करगिल की पहाड़ियों में लड़ने गए और जो टास्क दिया गया, उसको पूरा किया.

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कौन हैं अशोक चक्र से सम्मानित "रैंबो"? बहादुरी पर लिखी गई किताब; रौंगटे खड़े करने वाले हैं किस्से 
रैंबो 29 अगस्त 1999 को वीरगति को प्राप्त हुए.
नई दिल्ली:

अपने साथियों के बीच रैंबो नाम से लोकप्रिय सेना के स्पेशल फोर्सेस के मेजर सुधीर कुमार वालिया ने पहले करगिल की पहाड़ियों से पाकिस्तानी सेना के घुसपैठियों को मार भगाया. इसके बाद कुपवाड़ा के जंगलों में मेजर वालिया ने चार से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया. इसी ऑपेरशन में आतंकियों से लड़ते हुए 29 अगस्त 1999 को वो वीरगति को प्राप्त हुए. सरकार ने उन्हें शांति काल के बहादुरी के सर्वोच्च सम्मान अशोक चक्र से नवाजा. मेजर सुधीर वालिया के बहादुरी के किस्से को सेना के ही कर्नल आशुतोष काले ने किताब की शक्ल दी है और किताब का नाम दिया है "रैंबो".  

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करीब ढाई साल की मेहनत के बाद कर्नल काले ने इस किताब को लिखा. इसमें मेजर वालिया की बहादुरी के रोंगटे खड़े कर देने वाले किस्से हैं. एनडीटीवी से कर्नल काले ने कहा कि मेजर वालिया के साथी उन्हें रैंबो नाम से बुलाते थे. उनके अंदर दिलेरी, गजब का जज्बा और जोश कूट-कूट कर भरा था. इसलिए किताब का नाम रैंबो रखा. मेजर वालिया के बारे में रैंबो में लिखा है कि करगिल जंग के समय वो तात्कालीन सेना प्रमुख जनरल वी पी मलिक के स्टाफ ऑफिसर थे. मगर जंग शुरू हुई तो वह विशेष अनुमति लेकर करगिल की पहाड़ियों में लड़ने गए और जो टास्क दिया गया, उसको पूरा किया. करगिल की पहाड़ी पर तिरंगा लहराया.

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कर्नल काले ने बताया कि मेजर वालिया सेना के स्पेशल फोर्सेस में तैनात थे. 1999 में ही अगस्त महीने में मेजर वालिया की यूनिट को खबर मिली कि कुपवाड़ा के घने जंगल मे आतंकियों का गुट छिपा हुआ है. वह टीम के साथ वहां पहुंचते हैं कि आतंकियों को घेरकर कार्रवाई शुरू कर दी. अचानक आतंकी की गोली से मेजर वालिया घायल हो जाते हैं. फिर भी मैदान में डटे रहते हैं और चार आतंकियों को मार गिराते हैं. खून बहता है लेकिन जब तक सारे आतंकी मारे नहीं जाते, वहां से नही हटते हैं. बाद में उनको अस्पताल ले जाया जाता है, लेकिन उनकी जान बचाई नहीं जा सकी. इसके बाद मेजर वालिया को सरकार ने अदम्य साहस और वीरता के लिए शांति काल के सर्वोच्च सम्मान अशोक चक्र से सम्मनित किया. 

किताब में किस्सों की भरमार
कर्नल आशुतोष बताते हैं कि मेजर वालिया की बहादुरी और जांबाजी के अनगिनत किस्से हैं. महज 30 साल की उम्र और नौ साल की सर्विस में मेजर वालिया शौर्य की वह गाथा लिख गए हैं, जिसे पढ़कर ये साफ हो जाता है कि वह कोई आम इंसान नहीं थे, बल्कि एक महान योद्धा थे. रैंबो आतंकियों से डरते नहीं थे. उनकी आंखों में आंखें डालकर कार्रवाई करते थे. उन्हें दो बार सेना मेडल से भी सम्मानित किया गया. उम्मीद है कर्नल आशुतोष काले के किताब रैंबो के जरिए मेजर वालिया की बहादुरी की कहानियां घर-घर तक पहुंचेंगी और युवा इससे प्रेरणा लेंगे.

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