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किसी के मन में लड्डू फूटा, कोई गम में डूबा... महाराष्ट्र के 6 बड़े चेहरों के लिए नतीजों का फलादेश समझिए

Maharashtra Assembly Election Results 2024: बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस, शिवसेना के एकनाथ शिंदे, एनसीपी के अजित पवार, एनसीपी (एसपी) के शरद पवार, शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे और कांग्रेस के नाना पटोले के लिए जनादेश में छुपे संदेश

किसी के मन में लड्डू फूटा, कोई गम में डूबा... महाराष्ट्र के 6 बड़े चेहरों के लिए नतीजों का फलादेश समझिए
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिल गया है.
नई दिल्ली:

Maharashtra Assembly Election Results: महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव राज्य और देश की राजनीति के लिए कई संदेश देने वाला है. इस चुनाव ने बीजेपी के वर्चस्व को साबित कर दिया. यह चुनाव दो-तीन प्रमुख दलों का चुनाव नहीं था बल्कि पार्टियों के दो गठबंधनों के बीच मुकाबला था. इस चुनाव के नतीजे आने के बाद इन दोनों गठबंधनों के कुल 6 नेताओं के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे हैं. एक तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA), यानी महाराष्ट्र में महायुती गठबंधन के नेता एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार हैं तो दूसरी तरफ महाविकास अघाड़ी (MVA) के  शरद पवार, उद्धव ठाकरे और नाना पटोले हैं.     

महाराष्ट्र में पिछले दो साल यहां की राजनीति में अब तक के सबसे अधिक परिवर्तन लाने वाले साल थे. महाराष्ट्र में जहां यहां के दो स्थापित राजनीतिक दल दो-दो हिस्सों में बंट गए वहीं राज्य में लंबे समय तक खासा प्रभाव रखने वाली पार्टी कांग्रेस हाशिये पर चली गई. दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी मजबूत होती गई.     

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA), यानी महाराष्ट्र में महायुती ने 236 सीटें जीतीं. इसमें शामिल बीजेपी को 133, शिवसेना ने 57, एनसीपी ने 41, जेएसएस ने दो सीटें, राष्ट्रीय समाज पक्ष (आरएसपीएस) ने दो, आरएसवीए ने एक और आरवाईएसपी ने एक सीट जीती. महाविकास अघाड़ी (MVA) ने कुल 48 सीटें जीतीं. इसमें शामिल शिवसेना (यूबीटी) को 20, कांग्रेस को 15, एनसीपी (एसपी) को 10, एसपी को दो और सीपीएम को एक सीट मिली. अन्य उम्मीदवारों ने चार सीटें जीतीं.

क्या एकनाथ शिंदे फिर से बन सकेंगे मुख्यमंत्री?

एकनाथ शिंदे की पार्टी शिवसेना ने पिछले लोकसभा चुनाव में 15 उम्मीदवार खड़े किए थे और उसने 7 सीटों पर जीत हासिल की थी. अब विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने 81 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए जिनमें से 57 को जीत मिली. उनकी पार्टी ने 16 प्रतिशत की बढ़त ली. लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी है जिसने 133 सीटें जीती हैं. इस स्थिति में क्या एकनाथ शिंदे फिर से मुख्यमंत्री पद के लिए दावा कर सकते हैं? पहले जब उन्हें मुख्यमंत्री पद सौंपा गया था तब कोई चुनाव नहीं हुआ था बल्कि महाविकास अघाड़ी की सरकार गिरी थी. और उस सरकार को गिराने में मुख्य भूमिका एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने निभाई थी. इन दोनों नेताओं की बगावत से शिवसेना और एनसीपी दो-दो धड़ों में टूट गई. एक-एक धड़ा एनडीए के साथ आ गया और एक-एक धड़ा एमवीए के साथ बना रहा. तब बीजेपी ने गठबंधन में समझौते की जरूरत को समझते हुए एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद दिया और अजित पवार को उप मुख्यमंत्री बना दिया. 

अब जो सरकार गठित होने वाली है, वह विधानसभा चुनाव में मिले जनादेश पर बनेगी. यह परिस्थितियां पिछली स्थिति से अलग हैं. ऐसे में एकनाथ शिंदे अब मुख्यमंत्री पद के लिए दावा नहीं कर सकते. उन्हें मंत्री या उप मुख्यमंत्री पद पाकर ही संतुष्ट होना पड़ेगा.              

देवेंद्र फडणवीस को क्या मिलेगा इनाम?  

जब महाराष्ट्र में पिछली सरकार गठित हुई थी तो मुख्यमंत्री पद के लिए खींचतान चलती रही थी. देवेंद्र फडणवीस फिर से मुख्यमंत्री का पद चाहते थे. उस समय पीएम नरेंद्र मोदी ने देवेंद्र फडणवीस को फोन किया था. उस फोन के साथ स्थिति बदल गई थी. देवेंद्र फडणवीस ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद देना स्वीकार किया और स्वयं डिप्टी सीएम बनकर संतुष्ट हो गए. इस गठबंधन सरकार ने अपना कार्यकाल सफलता के साथ पूरा किया. 

लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी (MVA) ने महाराष्ट्र की 48 सीटों में से 30 पर जीत हासिल की थी. यह एनडीए के लिए बड़ा झटका था. बीजेपी ने 18 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे और उसे जीत सिर्फ 3 सीटों पर मिली थी. लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बीजेपी को कड़ा संदेश दिया जिससे वह सतर्क हुई और राज्य के लिए अपनी रणनीति बनाई. देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा का समर जीतने के लिए कड़ी मेहनत की जिसका परिणाम आज सामने आ गया है. ऐसी स्थिति में न तो एकनाथ शिंदे और न ही बीजेपी आलाकमान फडणवीस को मुख्यमंत्री पद देने से इनकार नहीं कर सकता. देवेंद्र फडणवीस के एक बार फिर से महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने की पूरी संभावना है.              

अजित पवार 41 सीटें जीतकर भी 'मजबूत' नहीं हो सके  

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता अजित पवार अपने चाचा शरद पवार की इस पार्टी में बगावत करके महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में शामिल हुए थे. इससे एनसीपी दो हिस्सों में बंट गई थी. एक हिस्सा शरद पवार के साथ रहा और नेताओं का बड़ा खेमा अजित पवार के साथ चला गया. इसके बाद पार्टी पर अधिकार को लेकर विवाद चला. चुनाव आयोग ने नियमों के मुताबिक अजित पवार के खेमे को असली राष्ट्रवादी कांग्रेस घोषित किया और शरद पवार के धड़े को राष्ट्रवादी काग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) नाम दे दिया गया. विधानसभा चुनाव में अजित पवार की पार्टी के 59 उम्मीदवार खड़े हुए थे जिनमें से 41 विजयी हुए. अजित पवार ने इस चुनाव के नतीजों के साथ पार्टी के अपने धड़े को अधिक मजबूत साबित कर दिया है. हालांकि अब अजित पवार सरकार में पद के लिए सौदेबाजी की स्थिति में नहीं हैं. वास्तविकता यह है वे काफी सीटें हासिल करने के बावजूद सरकार में मजबूत नहीं हो सके हैं. बीजेपी के पास खुद का जितना संख्या बल है उसमें वह शिवसेना या एनसीपी में से किसी एक से ही समर्थन लेकर सरकार बना सकती है. ऐसे में अजित पवार को महाराष्ट्र की अगली सरकार का हिस्सा बने रहना है तो वे अपनी शर्तें नहीं रख सकते हैं.                  

गुजर चला शरद पवार का वक्त

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के संस्थापक शरद पवार ने 10 जून 1999 को कांग्रेस से अलग होकर पीए संगमा और तारिक अनवर सहित कुछ अन्य नेताओं के साथ मिलकर इस पार्टी का गठन किया था. सन 2000 में उनकी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया था. सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने के विरोध में एनसीपी का गठन किया गया था. 

एनसीपी के गठन के 23 साल बाद 2022 में शरद पवार की पार्टी टूटी और इस घटना के पीछे के उनके भतीजे अजित पवार की महत्वाकांक्षाएं थीं. अजित पवार ने बगावत की और पार्टी के कई विधायकों, सांसदों के साथ एनडीए में शामिल हो गए. यह मामला बाद में सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. अदालत के निर्देश पर चुनाव आयोग लने पार्टी के अजित पवार गुट को असली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी करार दिया. इस गुट को पार्टी का चिन्ह भी दे दिया गया. दूसरी तरफ शरद पवार के गुट को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) नाम दे दिया गया. राज्य स्तर पर नगालैंड और झारखंड की पार्टी की इकाई अजित पवार गुट के साथ चली गई जबकि केरल का गुट शरद पवार के साथ बना हुआ है.   

अपनी बनाई हुई पार्टी को खोने का सदमा झेल चुके वरिष्ठ नेता शरद पवार के लिए विधानसभा चुनाव के नतीजे अधिक दुख देने वाले हैं. चुनाव में उनकी पार्टी के 86 उम्मीदवार थे जिनमें से सिर्फ 10 ही जीत सके हैं. शरद पवार को महाराष्ट्र की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है. उन्होंने राजनीति की लंबी पारी खेली है, लेकिन मौजूदा हालात ने उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति के मैदान से परे धकेल दिया है. हालांकि शरद पवार जमीनी नेता रहे हैं और उनका अच्छा खासा जनाधार भी रहा है लेकिन शायद अब वक्त उनके साथ नहीं है.     

उद्धव ठाकरे के लिए आया नई चुनौतियों का समय

बीजेपी के लंबे समय तक साथी रहे उद्धव ठाकरे के लिए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने तगड़ा झटका दिया है. उद्धव की पार्टी शिवसेना (यूबीटी) यानी शिवसेना (उद्धव बालासाहब ठाकरे) ने विधानसभा चुनाव में 95 सीटों पर मुकाबला किया और मात्र 20 सीटें उसके खाते में आई हैं. मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए एनडीए से नाता तोड़ने वाले उद्धव न तो लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रह सके, न ही अपनी पार्टी को बचा सके. एकनाथ शिंदे की बगावत ने शिवसेना को तोड़ डाला. शरद पवार की तरह ही उन्हें भी अपनी मूल पार्टी से हाथ धोना पड़ा. उद्धव ठाकरे लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन की सफलता से आत्मविश्वास से भरे थे लेकिन विधानसभा चुनाव में बाजी पलट गई. उद्धव अब बालासाहब की तरह किंग मेकर की भूमिका में भी नहीं आ सकते हैं. उद्धव ठाकरे को अपने गुट को मजबूत करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी. शिवसेना बालासाहब ठाकरे के लंबे संघर्ष के बाद आकार ले सकी थी. आज स्थिति अलग हैं. उद्धव ठाकरे के हाथ में जो था वह वे खो चुके, अब नए सिरे से पार्टी को खड़ा करना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती है.                 

कांग्रेस में नाना पटोले की घट गई हैसियत 

महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव ने कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका दिया है. राज्य में 101 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस के खाते में सिर्फ 16 सीटें आई हैं. महाराष्ट्र कांग्रेस से अध्यक्ष नाना पटोले चुनाव जीत गए हैं. नाना पटोले ने सकोली विधानसभा सीट पर बीजेपी के अविनाश ब्रह्मानकर को हाराया. हालांकि पटोले की पार्टी बुरी तरह हार गई है. नाना पटोले को लेकर एमवीए में शामिल दल पहले ही असंतुष्ट थे. खास तौर पर सीटों के बंटवारे के दौरान नाना पटोले के खुद जल्द फैसला न लेने और सब कुछ हाईकमान पर छोड़ने से एनसीपी (एसपी) और शिवसेना (यूबीटी) नाराज चलती रही. सीटों के बंटवारे में देर होने से चुनाव के लिए तेजी से रणनीति तैयार करना आसान नहीं था. नाना पटोले के हिस्से में पार्टी की करारी हार आई है. उन्हें भविष्य में इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है. 

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