मनमोहन सिंह देश में आर्थिक सुधारों के जनक माने जाते हैं
देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गुरुवार को एम्स में अंतिम सांस ली. उनके निधन पर पूरा देश आज गमगीन है. देश उन्हें रिफॉर्म लाने वाले नेता के तौर पर भी याद कर रहा है. इन सब के बीच एक रुपये का वो नोट भी याद आ रहा है जिसमें पहली बार मनमोहन सिंह का के हस्ताक्षर नजर आता था. उस दौर में एक रुपये के नोट पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गर्वनर के नहीं बल्कि वित्त सचिव के दस्तखत होते थे. ऐसे में जब मनमोहन सिंह वित्त सचिव बने तो उस समय जितने भी एक रुपय के नोट छापे गए उन सब में उनके ही हस्ताक्षर थे.
जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर बने मनमोहन सिंह
ये बात है 16 दिसंबर 1982 की जब मनमोहन सिंह रिजर्व बैंक के गवर्नर बने. मनमोहन सिंह 1982 से 14 जनवरी 1985 तक आरबीआई के गवर्नर रहे. इस दौरान जितने भी नोट छपे उनपर मनमोहन सिंह के ही हस्ताक्षर होते थे. भारत में नोटों पर आरबीआई गवर्नर के हस्ताक्षर की परंपरा तब से ही लेकर आज तक चली आ रही है. बतौर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर के तौर पर मनमोहन सिंह के काम की काफी सराहना हुई थी. इसी समय से मनमोहन सिंह उस समय की सरकार के नजर में आ गए थे.
कैसे वित्त मंत्री बने मनमोहन सिंह?
इस फोन कॉल के कुछ ही घंटों बाद मनमोहन सिंह और एलेक्जेंडर की मुलाकात हुई. उन्होंने डॉ. सिंह को नरसिम्हा राव की उनको वित्त मंत्री नियुक्त करने की योजना के बारे में बताया. उस समय मनमोहन सिंह यूजीसी अध्यक्ष थे. उनका राजनीति से कोई वास्ता नहीं था. इसीलिए उन्होंने एलेक्जेंडर को गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन नरसिम्हा राव उनको लेकर बहुत गंभीर थे.
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नरसिम्हा राव के भरोसे ने बनाया वित्त मंत्री
मनमोहन सिंह के हवाले से उनकी बेटी दमन सिंह की किताब 'स्ट्रिक्टली पर्सनल, मनमोहन एंड गुरशरण' में 21 जून 1991 के उस दिन का जिक्र है जब मन मोहन सिंह अपने यूजीसी ऑफिस में बैठे थे. उनसे घर जाने और तैयार होकर शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए कहा गया. किताब में पूर्व पीएम के हवाले से कहा गया है कि पद की शपथ लेने के लिए लाइन में खड़ी नई टीम के सदस्य के रूप में उनको देखकर हर कोई हैरान था. हालांकि उनका पोर्टफोलियो बाद में आवंटित किया गया था. लेकिन नरसिम्हा राव ने उनको तभी बता दिया था कि वह वित्त मंत्री बनने जा रहे हैं.
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1991 में वित्त मंत्रालय की संभाली थी बागडोर
1991 में देश में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी. ये वो साल था जब मनमोहन सिंह को पहली बार वित्त मंत्रालय संभालने की जिम्मेदारी मिली थी. ये वो दौर था जब देश का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 8.5 प्रतिशत के करीब था. इतना ही नहीं भुगतान संतुलन घाटा बहुत बड़ा था और चालू खाता घाटा भी जीडीपी के 3.5 प्रतिशत के आसपास था. ये वो दौर था जब देश की अर्थव्यस्था गहरे संकट नजर आ रही थी. ऐसी परिस्थिति में डॉ. मनमोहन सिंह ने केंद्रीय बजट 1991-92 के माध्यम से देश में नए आर्थिक युग की शुरुआत की थी.
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