
सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को भारतीय आचार दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 व्यभिचार पर फैसला सुनाया
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सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार-रोधी कानून को रद्द कर दिया है
व्यभिचार अपराध नहीं है
इसमें कोई संदेह नहीं कि यह तलाक का आधार हो सकता है
व्यभिचार कानून को सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द, संविधान पीठ ने कहा- यह अपराध नहीं
क्या है सेक्शन 497
आईपीसी के सेक्शन 497 के तहत अगर शादीशुदा पुरुष किसी अन्य शादीशुदा महिला के साथ संबंध बनाता है तो यह अपराध है. लेकिन इसमें शादीशुदा महिला के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है. इस सेक्शन में सबसे जरूरी बात ये है विवाहित महिला का पति भी अपनी पत्नी के खिलाफ केस दर्ज नहीं करा सकता है. इस मामले में शिकायतकर्ता विवाहित महिला से संबंध बनाने वाले पुरुष की पत्नी ही शिकायत दर्ज करा सकती है.
इस कानून के तहत अगर आरोपी पुरुष पर आरोप साबित होते है तो उसे अधिकत्तम पांच साल की सजा हो सकती है. इस मामले की शिकायत किसी पुलिस स्टेशन में नहीं की जाती है बल्कि इसकी शिकायत मजिस्ट्रेट से की जाती है और कोर्ट को सबूत पेश किए जाते हैं.
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केन्द्र सरकार ने दी थी ये दलीलें
- केंद्र सरकार ने IPC की धारा 497 का समर्थन किया था. केंद्र सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी ये कह चुका कि जारता विवाह संस्थान के लिए खतरा है और परिवारों पर भी इसका असर पड़ता है.
- केंद्र सरकार की तरफ ASG पिंकी आंनद ने कहा था अपने समाज में हो रहे विकास और बदलाव को लेकर कानून को देखना चाहिए न कि पश्चिमी समाज के नजरिये से.
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