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NDTV ग्राउंड रिपोर्ट: 9 महीने की गर्भवती और रहने को घर नहीं, इन मांओं का दर्द सुनिए ममता दीदी!

Murshidabad Violence: मुर्शिदाबाद में हिंसा के बीच करीब 800 घरों में ताला लग गया. घरों के साथ सपने की जलकर राख हो गए. बेबस महिलाएं मालदा शरणार्थी शिविर में रहने को मजबूर हैं. इनका दर्द जानने के लिए देखिए मनोज्ञा लोईवाल की रिपोर्ट.

मुर्शिदाबाद के पीड़ितों का दर्द.

मालदा:

पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद इन दिनों हिंसा (Murshida Violence) की आग में जल रहा है. वजह है नया संशोधित वक्फ कानून. वक्फ एक्ट पर पिछले कई दिनों से लगातार विरोध-प्रदर्शन हो रहा है. मुर्शिदाबाद में हिंसा के शिकार लोगों को अपने घरों में ही डर लगने लगा. वह अब मालदा में शरणार्थी शिविरों (Malda Refugee Camps) में रहने को मजबूर हैं. उनकी बेबसी और पीड़ा इतनी ज्यादा है कि वे एक लाचार जिंदगी जीने को मजबूर हैं, पीड़ितों का दर्द उनकी जुबानी. पढ़िए मनोज्ञा लोईवाल की रिपोर्ट...

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मालदा के शरणार्थी शिविर की हृदय विदारक तस्वीरें बता रही हैं कि जब मानुष अमानुष बन जाता है तो कैसे मां को अपनी माटी से दूर कहीं शरण लेनी पड़ती है.महिलाएं शरणार्थी शिविर में रहने को मजबूर पंचमी मंडल वैसी ही एक मां है, जिसके पेट में 9 महीने का बच्चा पल रहा है. लेकिन मुर्शिदाबाद में वक्फ प्रेमियों की हिंसा का शिकार होकर उसे ऐसी स्थिति में घर छोड़कर भागना पड़ा.

(गर्भवती पंचमी मंडल का दर्द)

(गर्भवती पंचमी मंडल का दर्द)

9 महीने की गर्भवती, शरणार्थी शिविर में रह रही

25 साल की पंचमी मंडल अपने जीवन के सबसे ख़ूबसूरत पल में सबसे ज़्यादा दर्द झेल रही है. वह गर्भवती है. मां बनने की ख़ुशी एक तरफ़ और ज़िंदा रहने का डर दूसरी तरफ़. नौ महीने बच्चे को को पेट में रखने के बाद उसे ये नहीं पता कि वो किस अवस्था में उसे जन्म देगी. जितना दर्द उसे पेट में है उससे ज्यादा दर्द उसके दिन और दिमाग़ में दिन रात होता है कि उसे कब तक अपने घर से बाहर इस तरह के एक स्कूल में बेघर के तौर पर रहना पड़ेगा.

घर कब तक लौटेगी, ये नहीं पता

जब सब अपना घर छोड़कर दौड़ रही थी तब पंचमी की मां उसे धीरे-धीरे एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने की कोशिश कर रही थी. घर में सारा सामान लूटा जा चुका है, क्या बचा है ये तो घर जाकर ही पता लगेगा. पंचमी मंडल अभी भी इंतज़ार कर रही है कि वह कब अपने घर जा सकेगी. पंचमी की मां उसके साथ दिन रात रहती है और उसकी हिम्मत बढ़ाने की कोशिश करती है लेकिन डर है कि जाने का नाम ही नहीं ले रहा.

ममता दीदी के बंगाल में ये हो क्या रहा है?

जिस बंगाल की पहचान मां से है. जो बंगाल मां दुर्गा की आराधना में नवरात्र में नव दिनों तक लीन रहता है, उस बंगाल में माताओं का ये हाल एक महिला मुख्यमंत्री के राज में हुआ है. ममता बनर्जी बंगाल में मुख्यमंत्री हैं लेकिन उनकी पुलिस पर बंगाल की मांओं को आज रत्ती भर भरोसा नहीं है.

घर छोड़े, शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर

महिलाएं  शरणार्थी शिविर में एक बेबस जिंदगी जी रही हैं, फिर भी अपने घर जाने को तैयार नहीं क्योंकि इन्हें डर है कि वहां वो वक्फ प्रेमियों की भेंट ना चढ़ जाएं. इसीलिए वो चाहती हैं कि पहले पैरा मिलिट्री फोर्स आए, फिर वो वहां जाएंगी. आज कसौटी पर ममता बनर्जी की सरकार पर लोगों का विश्वास कसा जा रहा है. अब उन्हें तय करना है कि इन महिलाओं की वेदना को अपनी संवेदना का हिस्सा बनाएंगी कि नहीं. 

हिंसा की आग में घर स्वाहा, अब क्या करें?

मुर्शिदाबाद में वक्फ पर नफरती हिंसा का वो सितम हो रहा है, जिसमें न जाने कितने दिलों के अरमान पिघलते चले गए.  पहले 8 अप्रैल और फिर 11 अप्रैल को हिंसा की ऐसी आग फैली जिसमें कई घर स्वाहा हो गए, आज मुर्शिदाबाद के 800 घरों में ताला लगा है. महज घर ही नहीं जले हैं, लोगों के सारे सपने जल गए. यही वजह है कि लोगों को मालदा शरणार्थी शिविरों में शरण लेनी पड़ रही है. पीड़ितों को शक है कि अगर ये लोग अपने घर वापस लौटे तो वक्फ के लोग वहां आकर हंगामा न करें. 
 

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