महिला आरक्षण बिल का क्या होगा, कैसे वो हकीकत बनेगा और इतना लंबा इंतजार उसके लिए क्यों करना पड़ रहा है? संसद के दोनों सदनों ने इसे पारित कर दिया है, लेकिन यह लागू 2027 के बाद होगा. इस पर NDTV ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी से खास बातचीत की.
महिला आरक्षण को डीलिमिटेशन से जोड़ना क्या जरूरी था? इस सवाल पर एसवाई कुरैशी ने कहा कि, यह बिल्कुल जरूरी था. अभी एक-दो चीजें अभी बिल्कुल क्लियर नहीं हैं. वन थर्ड सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व की जाएंगी, क्या वे अभी जो 543 हैं उसी में से वन थर्ड औरतों को जाएंगी या सीटों का नंबर बढ़ेगा? पार्लियामेंट की नई बिल्डिंग में सीटें बढ़ा दी गई हैं. पार्लियामेंट की नई बिल्डिंग पर गवर्नमेंट से सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया था. तब गवर्नमेंट ने कहा था 808 सीटें लोकसभा में और 383 या 384 सीटें राज्यसभा में करेंगे. हो सकता है ये एडीशनल सीटें बढ़ाई जाएं. उसके बाद डीलिमिटेशन की बात आती है. कान्स्टीट्यूशन में लिखा है, हर सेंसस के बाद, हर दस साल के बाद डीलिमिटेशन कमीशन बैठा करेगी.
उन्होंने कहा कि, चार बार डीलिमिटेशन कमीशन बैठी है, 1963 में 1972 में और 1972 में एक इशू रेज हुआ था साउथ इंडियन स्टेट ने रेज किया कि जो हमारे स्टेट में नंबर ऑफ सीट एलॉट की जाती हैं, हम लोगों ने फैमिली प्लानिंग प्रोग्राम बहुत अच्छे से किया तो पॉपुलेशन कंट्रोल हो गई. यूपी, बिहार और नार्थ इंडिया में बेतहाशा पॉपुलेशन बढ़ रही है, तो सीटें सारी उनको चली जाएंगी, यह तो नहीं चलेगा. यह बहुत माकूल बात थी, पार्लियामेंट ने उसको माना. और 25 साल के लिए यह फ्रीज कर दिया कि जो स्टेट को सीट एलोकेटेड हैं वो डिस्टर्ब नहीं की जाएंगी. 25 साल बाद जब 2002 में जब यह मसला दुबारा आया तो लॉजिक वही था, तो पार्लियामेंट ने उसको फिर 25 साल के लिए बढ़ा दिया. यह 2026 में खत्म होगा.
एक्ट पारित होने के बाद बनता है डीलिमिटेशन कमीशनडिलिमिटेशन होता कैसे है? इस सवाल पर एसवाई कुरैशी ने कहा कि, हर बार डीलिमिटेशन के लिए पार्लियामेंट कानूनी तौर पर एक एक्ट पारित करती है. उसके बाद एक डीलिमिटेशन कमीशन बनती है, जिसका चेयरमेन सुप्रीम कोर्ट का रिटायर जज होता है. यह जरूरी है, चेयरमेन सुप्रीम कोर्ट का फार्मर जज होगा. उसके दो मेंबर और होते हैं. एक चीफ इलेक्शन कमिश्नर ऑफ इंडिया या उसके नॉमिनेशन से सेकेंड या थर्ड इलेक्शन कमिश्नर. तीसरा मेंबर स्टेट का इलेक्शन कमिश्नर, जिस स्टेट में डीलिमिटेशन होना है. क्योंकि हर स्टेट की अलग-अलग जांचें होती हैं, कितनी कान्स्टीट्यूएंसी हैं, कितनी लाइनें खींचनी हैं.. इसके अलावा पांच-सात स्पेशन नॉमिनी वगैरह होते हैं.
परिसीमन आयोग का फैसला होता है अंतिमक्या परिसीमन आयोग की फाइंडिंग को अदालत में चुनौती दे सकते हैं? सवाल पर पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा, नहीं दे सकते. डीलिमिटेशन कमीशन का फैसला फाइनल है और जस्टिसेबल नहीं है.
सीटें बढ़ती हैं तो महिलाओं की भागेदारी आसान होगी
लोकसभा की सीटें कितनी बढ़ेंगी, यह किस पर निर्धारित होगा. जनसंख्या पर, यदि जनसंख्या पर तो कितनी जनसंख्या पर? इस प्रश्न के जवाब में एसवाई कुरैशी ने कहा कि, कितनी सीटें होंगी यह पार्लियामेंट रीकंसीडरेशन से डिसाइड कर सकती है. जैसे एक दफा यूके का इलेक्शन हो रहा था, वह बहुत छोटा है, हम उससे 40 गुना बड़े हैं. लेकिन उनके हाउस ऑफ कामंस की स्ट्रेंथ हमसे ज्यादा है. वहां 12000 वोटरों पर एक मेंबर ऑफ हाउस ऑफ कामंस है. अगर हम उस रेश्यो से चलेंगे तो हमको 12-14 हजार एमपी चाहिए होंगे. वह चीज नहीं है. पार्लियामेंट 543 से अच्छा चलता ही रहा है, अगर उसको बढाकर 880 करते हैं तो अच्छा खासा इजाफा होगा. इसके नतीजे में औरतों को एडिशनल सीटें मजे से, आसानी से एकमोडेट हो सकेंगी. यह डिटरमिनेशन पार्लियामेंट करेगी.
क्या जनसंख्या 18 लाख पर एक सीट करेंगे या 10 लाख पर? सवाल पर उन्होंने कहा, यह नहीं होता, कोशिश यह होती है कि सारी कान्स्टीट्यूएंसी में पॉपुलेशन में एक बैलेंस हो. एक मिसाल देता हूं, 2006-2008 में लास्ट डीलिमिटेशन कमीशन ने जब फैसला किया, उस समय आउटर दिल्ली की कान्स्टीट्यूएंसी में 35 लाख वोटर थे और चांदनी चौक में पांच लाख वोटर थे. एक आदमी को पांच लाख वोटरों तक पहुंचने में और 35 लाख तक पहुंचने में कितना फर्क पड़ता है. तो उसको बैलेंस किया जाता है. तो जब बैलेंस किया गया तो एवरेज करीब 15 लाख निकला. कि अगर 15 लाख कर दोगे तो सब बैलेंस हो जाएंगी. प्लस-माइनस एक-दो लाख इधर-उधर किसी भी वजह से होता हो, लेकिन एवरेज करीब 15 लाख है. लेकिन हर जगह यह 15 लाख नहीं हो सकता. कई स्टेट ही छोटे हैं. लक्षद्वीप में तो सारे वोटर ही 80 हजार हैं. सिक्किम में लाख-डेढ़ लाख वोटर हैं.
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