
भारत के 14वें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सरकार और संसद सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया. धनखड़ ने कहा कि उन्हें भारतीय लोकतंत्र के महत्वपूर्ण वर्षों का साक्षी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जगदीप धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गांव में एक जाट किसान परिवार में हुआ. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में प्राप्त की, फिर सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ में पढ़ाई की. इसके बाद जयपुर के महाराजा कॉलेज से भौतिकी में स्नातक की डिग्री हासिल की और 1979 में राजस्थान विश्वविद्यालय से विधि में स्नातक पूरा किया. उसी वर्ष उन्होंने वकालत शुरू की और 1990 में राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किए गए. वे सुप्रीम कोर्ट और देश के कई उच्च न्यायालयों में सक्रिय वकील रहे.

राजनीतिक करियर
धनखड़ ने 1989 में जनता दल के टिकट पर झुंझुनू से लोकसभा चुनाव जीता और संसद पहुंचे. 1990 में उन्हें चंद्रशेखर सरकार में संसदीय कार्य राज्य मंत्री बनाया गया. 1991 में वे कांग्रेस में शामिल हुए और अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ा. लेकिन हार गए. 1993 में वे किशनगढ़ विधानसभा सीट से विधायक चुने गए. 1998 में उन्होंने पुनः लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाई, लेकिन सफलता नहीं मिली.

2003 में धनखड़ ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) जॉइन की और पार्टी की राजस्थान चुनाव प्रचार समिति सहित कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं. 2016 में उन्हें भाजपा का विधि एवं विधायी मामलों का राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया गया. 2019 में उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया, जहां उन्होंने जुलाई 2022 तक केंद्र और राज्य सरकार के बीच समन्वय की भूमिका निभाई और कई मुद्दों पर मुखरता से अपनी राय रखी.

उपराष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल
जुलाई 2022 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया. 6 अगस्त 2022 को हुए चुनाव में उन्होंने विपक्ष की उम्मीदवार को हराया और 11 अगस्त 2022 को उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली. अपने कार्यकाल के दौरान वे संसद और सार्वजनिक मंचों पर सूचना, नैतिकता, संविधान और लोकतंत्र जैसे मुद्दों पर सक्रिय रहे. उन्होंने फर्जी खबरों के खिलाफ सख्ती, वोकल फॉर लोकल और भारतीय संस्कृति व भाषायी विविधता के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद की. संसद के मानसून सत्र से पहले उन्होंने सभी दलों से सदन की गरिमा और संवाद बनाए रखने की अपील भी की थी.
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