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उत्तराखंड के जंगलों में लगी भीषण आग, अब तक 4 की मौत, 350 से अधिक मामले दर्ज

उत्तराखंड वन विभाग के एडिशनल पीसीसीएफ निशांत वर्मा ने कहा, "कुछ शरारती तत्वों द्वारा जंगलों में जानबूझकर आग लगाई जा रही थी. कुछ मामलों में भविष्य में जंगलों में अच्छी घास आने के लिए आग लगाई जा रही थी."

नई दिल्ली:

उत्तराखंड के जंगल में लगी भीषण करीब 1144 हैक्टेयर के इलाके में फैल गई है और सबसे अधिक आग उन इलाको में लगी है, जहां चीड़ के पेड़ ज्यादा हैं. यहां अबतक 900 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं और इनमें 4 लोगों की मौत भी हो चुकी है. अलग-अलग इलाको में 350 से अधिक मुकदमे दर्ज किए गए हैं, जिसमें 61 केस ऐसे हैं, जिनमें लोगों को नामजद किया गया है. आग की अलग-अलग वारदातों में 10 से ज्यादा को गिरफ्तार किया गया है. कुछ जगह आग रिहायशी इलाको तक भी पहुंच गई है और इसकी वजह से लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है. साथ ही आग के कारण वन्य जीवों को भी नुकसान पहुंच रहा है. 

उत्तराखंड में  गढ़वाल हो या कुमाऊं जंगलों की आग हर जगह है चाहे पहाड़ी क्षेत्र हो या फिर सड़कों के किनारे आग का तांडव हर जगह मचा हुआ है आग की लपटें जंगल के जंगल जला रही हैं. जंगलों में लगने वाली आग के पीछे कई वजह हैं कुछ मानसून सीजन में अच्छी घास के लिए आग लगा रहे हैं तो कुछ केवल शरारत में ही आग लगा रहे हैं. उत्तराखंड वन विभाग के एडिशनल पीसीसीएफ निशांत वर्मा ने कहा, "कुछ शरारती तत्वों द्वारा जंगलों में जानबूझकर आग लगाई जा रही थी. कुछ मामलों में भविष्य में जंगलों में अच्छी घास आने के लिए आग लगाई जा रही थी. वन्य जीवों का शिकार का मामला भी रहता है लेकिन यह शीतकाल में ज्यादा होता है."

उत्तराखंड के निवासी नागेंद्र ने कहा, "उत्तराखंड में ज्यादातर जंगल चीड़ के ही है हर ब्लॉक से लेकर हर डिस्ट्रिक्ट तक चीड़ के जंगल हैं और गर्मियों के समय चीड़ की पत्तियां नीचे जमीन पर गिरती हैं, जिस पर आग तेजी से लगती है आग से इतना धुंआ हो चुका है कि उत्तराखंड और दिल्ली में कोई अंतर नहीं लगता है. 

उत्तराखंड के जंगलो में सबसे ज्यादा आग चीड़ के पेड़ की वजह से लग रही है क्योंकि इसके पत्ते जिन्हें पिरूल कहा जाता है उसमें आग बहुत तेजी से पड़ती है. इसके अलावा किड से निकलने वाला तरल पदार्थ पेट्रोल की तरह ही आग पकड़ता है जिसको लिसा कहा जाता है.

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