
Uttar Pradesh Noida Ghaziabad Highways And Roads: हाईवे से लेकर सड़कों पर घर, मंदिर, मस्जिद बने हुए आपने कई देखे होंगे. देश भर में ऐसी कई सड़कें हैं. कई बार तो ये हादसों की वजह तक बनते हैं. नोएडा में ही ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे. जहां सड़क के बीचोंबीच या तो मकान है या फिर जमीन नहीं मिलने की वजह से सड़क वनवे हो गई है. सालों से मामला लटका हुआ है, मगर सड़क आज भी जस की तस है. सड़क से गुजरते वक्त हर किसी को अजीब लगता है, कई सवाल मन में उठते हैं, लेकिन जवाब नहीं मिलता और गाड़ी आगे बढ़ जाती है.
नोएडा में कहां-कहां रोड ब्लॉक
गौड़ सिटी वाले रोड से अगर आप ग्रेटर नोएडा की तरफ जाएंगे तो आगे जाकर सड़क के सामने खेत दिखने लगते हैं और फिर रास्ते को डायवर्ट कर वनवे कर दिया गया है. इसी तरह एक मूर्ति से आगे जाएंगे तो सर्वोत्तम स्कूल के सामने सड़क वनने हो जाती है. थोड़ी दूर बीच में एक खाली प्लाट है. ये रोड हनुमान मंदिर वाले रोड को नोएडा एक्सटेंशन के हाईवे से जोड़ती है. नोएडा एक्सटेंशन से दादरी जाने वाले रास्ते पर भी बीच में एक बड़ा पेड़ मिलता है. इस पर एक छोटा मंदिर भी बना है. हालांकि, ये सड़क को बाधित नहीं करता, मगर लोगों की आते-जाते निगाह इस पर जरूर पड़ जाती है. इसी तरह सेक्टर 150 से पर्थला की ओर जाएं तो बीच सड़क एक टूटा हुआ मकान पड़ता है. इसकी वजह से वहां पर एक से ज्यादा वाहन नहीं निकल पाते. यहां दुर्घटना होने का खतरा हमेशा बना रहता है. जाहिर है ये सभी मामले सरकारी दफ्तरों से लेकर कोर्ट में फाइलों के रूप में सालों से पड़े होंगे.
गाजियाबाद में तो हाईवे ही ब्लॉक
इसी तरह गाजियाबाद में बने एक मकान ने तो हाईवे के निर्माण को ही रोक दिया है. दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे के बीच में पड़ रहा ये मकान वीरसेन सरोहा का है. वो अब गुजर चुके हैं. उनके पोते इस मकान को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ रहे हैं. 90 के दशक में जब वीरसेन सरोहा और उनका परिवार मंडोला में 1600 वर्ग मीटर के प्लॉट पर बने एक साधारण घर में रहता था, तब जमीन की स्थिति अलग थी. यह ग्रामीण इलाका था, जहां घर और खेत ही थे. 1998 में यूपी हाउसिंग बोर्ड ने मंडोला हाउसिंग स्कीम के लिए दिल्ली-गाजियाबाद सीमा के पास के छह गांवों से 2614 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने की अधिसूचना जारी की. धीरे-धीरे यहां रह रहे परिवारों को अपनी जमीन देने के लिए मना लिया गया. लेकिन, वीरसेन ने अपनी जमीन देने से इनकार कर दिया. वे इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए. हाई कोर्ट ने उनकी जमीन के अधिग्रहण पर रोक लगा दी. इस प्रकार एक जिद ने लंबी कानूनी लड़ाई की रूपरेखा तय कर दी. अब वीरसेन के पोते इस केस को लड़ रहे हैं. विरोध और प्रक्रिया में होने वाली देरी के कारण यह साफ हो गया कि हाउसिंग स्कीम कभी मूर्त रूप नहीं ले पाएगी. इसलिए, जब भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे के लिए जमीन की खोज शुरू की तो हाउसिंग बोर्ड ने ये जमीन दे दी. हालांकि, वीरसेन के परिवार ने तब भी हार नहीं मानी. आज भी उनका घर बिल्कुल वैसा ही है जैसा नब्बे के दशक में था, जबकि इसके आस-पास की हर चीज गायब हो गई है. इसकी जगह एक तरफ अक्षरधाम तक और दूसरी तरफ उत्तराखंड की पहाड़ियों तक फैला एक्सप्रेसवे है. अभी भी ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है.
यूपी में क्या है नियम
उत्तर प्रदेश रोड कंट्रोल एक्ट 1964 के मुताबिक, सड़क के मध्य रेखा से राष्ट्रीय राजमार्ग अथवा राज्य राजमार्ग में 75 फीट की दूरी उचित मानी जाती है. साथ ही मेजर डिस्ट्रिक्ट रोड में 60 फीट एवं आर्डिनरी डिस्ट्रिक्ट रोड में 50 फीट की दूरी पर घर बनवाना ठीक रहता है. यह दूरी छोड़ने के बाद ही कोई निर्माण या बाउंड्री आदि कर सकते हैं.
हाईवे के नियम
नियमों के मुताबिक, हाईवे के मध्य से दोनों ओर 75-75 मीटर दायरे में कोई निर्माण नहीं होगा. यदि निर्माण बेहद जरूरी है तो एनएचएआई तथा राजमार्ग मंत्रालय से अनुमति लेनी होगी. राष्ट्रीय राजमार्ग नियंत्रण एक्ट की धारा 42 के तहत नई व्यवस्था में स्पष्ट है कि हाईवे के बीच से 40 मीटर तक निर्माण की इजाजत कतई नहीं मिलेगी.
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