मुंबई:
500-100 रुपये की नोटबंदी के कई आर्थिक-सामाजिक पहलू हैं. ज्यादातर खबरों में लोगों का गुस्सा और नाराज़गी झलकती है लेकिन महाराष्ट्र के अकोला से एक ऐसी ख़बर है जिसके मायने सामाजिकता के ताने-बाने को और मज़बूत बनाते हैं.
नोटबंदी के फैसले से सब परेशान हैं, लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी सफर कर रहे यात्रियों को हो रही है, जिनके पास पैसे तो हैं लेकिन उनकी अहमियत कागज़ से ज्यादा नहीं. राहगीरों की परेशानी देखते हुए महाराष्ट्र में अकोला के नेशनल हाइवे 6 पर एक ढाबे के मलिक ने सफर कर रहे सभी मुसाफिरों से बाकायदा बोर्ड लगाकर कह दिया है, पैसे नहीं हैं फिर भी खाना खाएं, लौटते वक्त अगर हो तो पैसे चुका कर जाएं.
अपनी कार से मराठवाड़ा के तुलजापूर का सफर अपने परिवार साथ तय कर रहे अमरावती के पवन दांदले भी इसी बात से परेशान थे लेकिन अकोला के मराठा ढाबे में उन्हें खाना मिला और पैसे भी नहीं चुकाने पड़े. दांदले ने कहा अंकल ने मुझसे बोला, जब भी इधर से गुजरो पैसे दे देना, नहीं भी हैं तो कोई बात नहीं. दांदले परिवार जैसी हालत नागपुर से औरंगाबाद जा रहे कविता और संजय की भी थी. उनके पास भी 500-1000 के नोट थे जिसे कोई लेने को तैयार नहीं था. ऐसे में मराठा ढाबे ने उनकी भूख मिटाई.
मलकापुर के डॉ. सैय्यद ने तो दो दिनों बाद ही 15 लोगों के खाने का बिल चुकाया. ढाबे के मालिक संदीप पाटिल ने बताया कि पुणे के एक परिवार ने उनसे पूछा कि क्या वो उन्हें खाना खिला सकते हैं. ये बात सुनकर उन्हें बहुत बुरा लगा. कारण पूछने पर पता चला कि 500-1000 रुपये के नोट होने की वजह से उन्हें लंबा सफर भूखा तय करना पड़ा जिसके बाद उन्होंने ये फैसला लिया. मुंबई से कोलकाता जाने के दौरान आप भी यहां खाना खा सकते हैं, हां जब लौटें बिल चुकाते जाएं, इंसानियत पर भरोसा बनाए रखने के लिये.
(धनंजय साबले के इनपुट के साथ)
नोटबंदी के फैसले से सब परेशान हैं, लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी सफर कर रहे यात्रियों को हो रही है, जिनके पास पैसे तो हैं लेकिन उनकी अहमियत कागज़ से ज्यादा नहीं. राहगीरों की परेशानी देखते हुए महाराष्ट्र में अकोला के नेशनल हाइवे 6 पर एक ढाबे के मलिक ने सफर कर रहे सभी मुसाफिरों से बाकायदा बोर्ड लगाकर कह दिया है, पैसे नहीं हैं फिर भी खाना खाएं, लौटते वक्त अगर हो तो पैसे चुका कर जाएं.
अपनी कार से मराठवाड़ा के तुलजापूर का सफर अपने परिवार साथ तय कर रहे अमरावती के पवन दांदले भी इसी बात से परेशान थे लेकिन अकोला के मराठा ढाबे में उन्हें खाना मिला और पैसे भी नहीं चुकाने पड़े. दांदले ने कहा अंकल ने मुझसे बोला, जब भी इधर से गुजरो पैसे दे देना, नहीं भी हैं तो कोई बात नहीं. दांदले परिवार जैसी हालत नागपुर से औरंगाबाद जा रहे कविता और संजय की भी थी. उनके पास भी 500-1000 के नोट थे जिसे कोई लेने को तैयार नहीं था. ऐसे में मराठा ढाबे ने उनकी भूख मिटाई.
मलकापुर के डॉ. सैय्यद ने तो दो दिनों बाद ही 15 लोगों के खाने का बिल चुकाया. ढाबे के मालिक संदीप पाटिल ने बताया कि पुणे के एक परिवार ने उनसे पूछा कि क्या वो उन्हें खाना खिला सकते हैं. ये बात सुनकर उन्हें बहुत बुरा लगा. कारण पूछने पर पता चला कि 500-1000 रुपये के नोट होने की वजह से उन्हें लंबा सफर भूखा तय करना पड़ा जिसके बाद उन्होंने ये फैसला लिया. मुंबई से कोलकाता जाने के दौरान आप भी यहां खाना खा सकते हैं, हां जब लौटें बिल चुकाते जाएं, इंसानियत पर भरोसा बनाए रखने के लिये.
(धनंजय साबले के इनपुट के साथ)
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