हैदराबाद के बाबा नगर इलाके में हमारी मुलाकात 28 साल के मुवाहिद और 24 साल के ज़ाहिद (बदले हुए नाम) से हुई। 2014 में इन दोनों नौजवानों ने अपने एक तीसरे साथी के साथ सीरिया जाकर इस्लामिक स्टेट में शामिल होने की नाकाम कोशिश की थी। इन्हें दिल्ली एयरपोर्ट पर ही पकड़ लिया गया था और इस तरह यह सीरिया जाने से रह गए। हालांकि इनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही नहीं की गई और सरकार ने इन्हें काउंसिलिंग के लिए भेज दिया। गौरतलब है कि आईएसआईएस से हमदर्दी रखने वाले संदिग्धों के सुधार के लिए सरकार की एक रणनीति के तहत काउंसिलिंग की जाती है।
सरकारी अनुमान के मुताबिक ISIS के प्रति लगाव रखने वाले भारतीय मुसलमानों का प्रतिशत देश में उनकी जनसंख्या के तुलना में काफी कम है। इसलिए जब तक जरूरत न पड़े किसी तरह की कड़ी कानूनी कार्यवाही का इस्तेमाल किए जाने से बचा जाता है। लेकिन पिछले हफ्ते NIA ने देश भर के 7 शहरों से 14 लोगों को गिरफ्तार किया जिनपर आईएसआईएस के तरीकों का इस्तेमाल करके भारत में हमला करने की योजना का आरोप लगा है। हिरासत में लिया गया एक युवक जो बैंगलुरू में सोफ्टवेयर प्रोफेशनल हैं, उसे पिछले साल तुर्की से लाया गया और वह फिलहाल काउंसिलिंग प्रोग्राम से गुज़र रहा है।
काउंसिलिंग की चुनौतियां
मुवाहिद और ज़ाहिद के पुनर्सुधार के नतीजे ने सरकार की काउंसिलिंग नीति के सामने चुनौतियां रखी हैं। दोनों ही पढ़े लिखे हैं, अच्छे परिवार से ताल्लुक रखते हैं। ज़ाहिद ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, वहीं मुवाहिद एमबीए कर चुके हैं। दोनों ही सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय थे और दुनिया भर में मुसलमानों के खिलाफ होने वाली ज्यादतियों पर वीडियो और रिपोर्ट भी देखा करते थे। इसी दौरान उनकी मुलाकात कुछ ऐसे लोगों से हुई जिनके विचारों की तरफ इनका झुकाव बढ़ता गया।
मुवाहिद बताते हैं कि फेसबुक पर उनकी मुलाकात मोहम्मद इबनाल बारा से हुई जो खुद को सीरियाई सामाजिक कार्यकर्ता बताता था और उसी ने मुवाहिद को सीरिया आने के लिए उकसाया था। ज़ाहिद की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, उसने बताया 'फेसबुक पर एक आदमी गुजरात का था जो हर पांच मिनट में कुछ न कुछ पोस्ट करता था। वह बार बार अपना नाम भी बदलता था।'
पश्चिमी आतंकवादी और मुसलमान
मध्य पूर्व में होने वाली हिंसा को मुवाहिद पश्चिमी और इज़राइली आतंकवादियों की मिलीभगत बताते हैं जो गाज़ा और फलिस्तीन के लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं। मुवाहिद कहते हैं कि पश्चिमी आतंकवादियों से उनका मतलब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी सेना है जो मुसलमानों को डराने का काम कर रही है। वहीं ज़ाहिद के मुताबिक आईएसआईएस के प्रति उनके झुकाव की वजह मुसलमानों पर होने वाले अत्याचार ही थे लेकिन बहुत जल्द उन्हें अपनी गलती समझ में आ गई। वह कहते हैं 'आईएसआईएस सबको मार रहा है, मुसलमान, गैर मुसलमान सबको। मैं समझ गया कि यह इस्लाम से जुड़ा हुआ नहीं हो सकता।'
मुवाहिद की आईएसआईएस के प्रति अलग विचारधारा है। वह कहते हैं 'मुझे जो समझ आया वह यह की यह संगठन मुसलमानों की मदद करता है। यह लोग जालिमों और हमलावरों के खिलाफ लड़ रहे हैं।' जब उनसे पूछा गया कि क्या वह इस संगठन द्वारा मुसलमानों को मारे जाने की बात को माफ कर सकते हैं तो जवाब मिला कि ज्यादातर मरने वाले शिया ही होते हैं और मुसलमान शियाओं को मुस्लिम नहीं समझते हैं। उनके ग्रंथ, उनके नियम एकदम अलग होते हैं।
यह जगह जन्नत है
ऑनलाइन बातों से प्रभावित होकर मुवाहिद इस्तानबुल के लिए रवाना होने की वाले थे कि दिल्ली हवाई अड्डे पर उन्हें सुरक्षा एजेंसियों ने पकड़ लिया। फिलहाल तेलंगाना पुलिस उनकी काउंसिलिंग कर रही है जहां उनके अभिभावक भी मौजूद होते हैं। ज़ाहिद अपने अंदर होने वाले बदलाव के साथ काफी खुश हैं और कहते हैं 'पुलिस ने मुझसे बातचीत की है। उन्होंने मुझसे कहा कि यह सब गलत है। मैं यहां रहकर अपने माता-पिता का ध्यान रखूं और यह जगह जन्नत है।' ज़ाहिद फिर से भटकना नहीं चाहते।
मुवाहिद भी वापिस नहीं जाना चाहते लेकिन उनकी वजह अलग हैं। वह कहते हैं 'वहां जाने का कदम गलत था। मुझे कुछ भी काम अकेले नहीं करना चाहिए था, यहां से इस तरह अकेले वहां जाना।' सरकार के इस काउंसिलिंग प्रोग्राम से हर कोई खुश नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में रणनीति मामलों के संपादक प्रवीण स्वामी का कहना है 'सच्चाई तो यह है कि इस्लामिक स्टेट की तरफ खिंचाव के पीछे कोई एक वजह नहीं है। यह राजनीतिक, धार्मिक और युवाओं में कुछ रोमांचक करने की इच्छा रखने जैसी भावनाओं का मिलाजुला प्रभाव है।'
जाते जाते हमने एक बार फिर मुवाहिद से पूछा कि क्या वह अभी भी ओबामा को आतंकवादी मानते हैं। जवाब मिला - 'हां कोई भी समझदार आदमी जिसमें इंसानियत है, वह भी ऐसा ही सोचेगा।'
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