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This Article is From Mar 03, 2018

त्रिपुरा: लेफ्ट फ्रंट का अबतक का सबसे खराब प्रदर्शन, पहली बार जीती थीं 60 में से 56 सीटें

त्रिपुरा में 1978 में पहली बार राज्य विधानसभा की 60 में से 56 सीटें जीतकर सत्ता संभालने वाले वाम मोर्चा का इस बार के चुनाव में जैसा बुरा हाल हुआ है, वैसा इससे पहले कभी नहीं हुआ था.

त्रिपुरा: लेफ्ट फ्रंट का अबतक का सबसे खराब प्रदर्शन, पहली बार जीती थीं 60 में से 56 सीटें
माणिक सरकार (फाइल फोटो)
अगरतला: त्रिपुरा में 1978 में पहली बार राज्य विधानसभा की 60 में से 56 सीटें जीतकर सत्ता संभालने वाले वाम मोर्चा का इस बार के चुनाव में जैसा बुरा हाल हुआ है, वैसा इससे पहले कभी नहीं हुआ था. नृपेन चक्रवर्ती ने 1978 में राज्य में पहली वाम मोर्चा सरकार का नेतृत्व किया. उस समय कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला और आदिवासी संगठन त्रिपुरा उपजाति जुबा समिति (टीयूजीएस) को चार सीटें मिली थी. वर्ष 1983 के विधानसभा चुनाव में वाम मोर्चा को 39 सीटें मिली, जबकि कांग्रेस -टीयूजेएस गठबंधन और क्षेत्रीय पार्टी अमरा बंगाली बाकी सीटों पर जीतने में सफल रहे. वाममोर्चा के खाते में गयी 39 सीटों में 37 सीटों पर अकेले माकपा ने कब्जा किया था, जबकि बाकी दो सीटें उसकी सहयोगी रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) की झोली में गयी थी. कांग्रेस ने 1983 में 14 सीटें और टीयूजेएस ने छह सीटें जीतीं.

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बहरहाल, 1988 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-टीयूजेएस गठबंधन ने वाम मोर्चा को मामूली अंतर से परास्त कर दिया. वर्ष 1988 में 59 सीटों पर चुनाव हुआ. माकपा के एक उम्मीदवार के निधन के कारण एक सीट पर चुनाव रद्द हो गया. कांग्रेस को 23 और टीयूजेएस को सात सीटें मिलीं जबकि माकपा ने 29 सीटों पर जीत दर्ज की. बाद में एक सीट पर उपचुनाव में आदिवासी संगठन की जीत के साथ कांग्रेस-टीयूजेएस गठबंधन की सीटों की संख्या 31 हो गयी. वर्ष 1993 में 49 सीटें जीतकर वाममोर्चा सत्ता पाने में कामयाब रहा. कांग्रेस को 10 और टीयूजेएस को महज एक सीट मिली. वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में भी वाममोर्चा ने 41 सीटें जीतकर अपना गढ़ बरकरार रखा. कांग्रेस-टीयूजेएस को 19 सीटों पर जीत मिली थी. चुनावों के बाद माणिक सरकार मुख्यमंत्री बने.

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वर्ष 2003 में 41 सीटें जीतने के साथ वाममोर्चा की सत्ता पर पकड़ बनी रही. वर्ष 2008 के चुनाव में वाममोर्चा ने 49 सीटें पाने के साथ शानदार जीत दर्ज की. इसके बाद 2013 के चुनाव में वाममोर्चा की सीटों की संख्या 50 पहुंच गयी जबकि कांग्रेस बाकी 10 सीटों पर विजयी हुयी. वर्ष 2016 में कांग्रेस के छह विधायक तृणमूल कांग्रेस में चले गए. बाद में फिर से पाला बदलते हुए वे भाजपा में शामिल हो गए. 

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एक और विधायक रतन लाल नाथ भी इस बार के विधानसभा चुनाव के दो महीने पहले भगवा पार्टी में शामिल हुए.

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