फाइल फोटो
नई दिल्ली:
हमारी आन-बान-शान का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा जब फहराया या लहराया जाता है तो हम सभी का सीना फख्र से चौड़ा हो जाता है. उसका केसरिया, सफेद और हरा रंग मन में साहस, त्याग और देशभक्ति का भाव जागृत करता है. साथ ही हृदय सहज भाव से इसकी डिजाइन तैयार करने वाले के प्रति कृतज्ञता से भर जाता है.
लेकिन उस शख्स का नाम जानने के लिए हमें दिमाग पर काफी जोर डालना पड़ता है, क्योंकि उसको जीते-जी वह अपेक्षित सम्मान मयस्सर नहीं हुआ, जिसका वह हकदार था। वह गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो गया. आज यानी दो अगस्त को तिरंगे की डिजाइन तैयार करने वाले उसी गुमनाम हीरो पिंगाली वेंकैया का जन्मदिन है.
महात्मा गांधी से मुलाकात
दो अगस्त, 1876 को आंध्रप्रदेश में मछलीपत्तनम के निकट पिंगाली वेंकैया का जन्म हुआ था। 19 साल की अवस्था में उन्होंने ब्रिटिश आर्मी को ज्वाइन किया. जापानी, उर्दू समेत कई भाषाओं के जानकार पिंगाली की महात्मा गांधी से मुलाकात दक्षिण अफ्रीका में एंग्लो-बोअर युद्ध के दौरान हुई. उसके बाद वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बने और महात्मा गांधी से उनका नाता 50 से भी अधिक वर्षों तक बना रहा.
तिरंगे की कल्पना
1916-21 के पांच वर्षों के दौरान 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वज पर पिंगाली वेंकैया ने गहराई से शोध किया. 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मेलन में उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज की अपनी संकल्पना को पेश किया. उसमें दो रंग लाल और हरा क्रमश: हिंदू और मुस्लिम दो प्रमुख समुदायों का प्रतिनिधित्व करते थे. बाकी समुदायों के प्रतिनिधित्व के लिए महात्मा गांधी ने उसमें सफेद पट्टी का समावेश करने के साथ राष्ट्र की प्रगति के सूचक के रूप में चरखे को शामिल करने की बात कही.
राष्ट्रीय ध्वज
1931 में इस दिशा में अहम फैसला हुआ. तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने का प्रस्ताव पारित हुआ. उसमें मामूली संशोधनों के रूप में लाल रंग का स्थान केसरिया ने लिया. इसको 22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अंगीकार किया और आजादी के बाद यही तिरंगा हमारी अस्मिता का प्रतीक बना. बाद में रंग और उनके अनुपात को बरकरार रखते हुए चरखे की जगह केंद्र में सम्राट अशोक के धर्मचक्र को शामिल किया गया.
अविस्मरणीय योगदान
इस असाधारण योगदान के बावजूद 1963 में पिंगाली वेंकैया का बेहद गरीबी की हालत में विजयवाड़ा में एक झोपड़ी में देहावसान हुआ. समय के साथ समाज और काफी हद तक उनकी कांग्रेस पार्टी ने ही उनको भुला दिया. वर्षों बाद 2009 में उन पर एक डाक टिकट जारी हुआ. इस साल जनवरी में केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने विजयवाड़ा के ऑल इंडिया रेडियो बिल्डिंग में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया.
लेकिन उस शख्स का नाम जानने के लिए हमें दिमाग पर काफी जोर डालना पड़ता है, क्योंकि उसको जीते-जी वह अपेक्षित सम्मान मयस्सर नहीं हुआ, जिसका वह हकदार था। वह गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो गया. आज यानी दो अगस्त को तिरंगे की डिजाइन तैयार करने वाले उसी गुमनाम हीरो पिंगाली वेंकैया का जन्मदिन है.
महात्मा गांधी से मुलाकात
दो अगस्त, 1876 को आंध्रप्रदेश में मछलीपत्तनम के निकट पिंगाली वेंकैया का जन्म हुआ था। 19 साल की अवस्था में उन्होंने ब्रिटिश आर्मी को ज्वाइन किया. जापानी, उर्दू समेत कई भाषाओं के जानकार पिंगाली की महात्मा गांधी से मुलाकात दक्षिण अफ्रीका में एंग्लो-बोअर युद्ध के दौरान हुई. उसके बाद वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बने और महात्मा गांधी से उनका नाता 50 से भी अधिक वर्षों तक बना रहा.
तिरंगे की कल्पना
1916-21 के पांच वर्षों के दौरान 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वज पर पिंगाली वेंकैया ने गहराई से शोध किया. 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मेलन में उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज की अपनी संकल्पना को पेश किया. उसमें दो रंग लाल और हरा क्रमश: हिंदू और मुस्लिम दो प्रमुख समुदायों का प्रतिनिधित्व करते थे. बाकी समुदायों के प्रतिनिधित्व के लिए महात्मा गांधी ने उसमें सफेद पट्टी का समावेश करने के साथ राष्ट्र की प्रगति के सूचक के रूप में चरखे को शामिल करने की बात कही.
राष्ट्रीय ध्वज
1931 में इस दिशा में अहम फैसला हुआ. तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने का प्रस्ताव पारित हुआ. उसमें मामूली संशोधनों के रूप में लाल रंग का स्थान केसरिया ने लिया. इसको 22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अंगीकार किया और आजादी के बाद यही तिरंगा हमारी अस्मिता का प्रतीक बना. बाद में रंग और उनके अनुपात को बरकरार रखते हुए चरखे की जगह केंद्र में सम्राट अशोक के धर्मचक्र को शामिल किया गया.
अविस्मरणीय योगदान
इस असाधारण योगदान के बावजूद 1963 में पिंगाली वेंकैया का बेहद गरीबी की हालत में विजयवाड़ा में एक झोपड़ी में देहावसान हुआ. समय के साथ समाज और काफी हद तक उनकी कांग्रेस पार्टी ने ही उनको भुला दिया. वर्षों बाद 2009 में उन पर एक डाक टिकट जारी हुआ. इस साल जनवरी में केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने विजयवाड़ा के ऑल इंडिया रेडियो बिल्डिंग में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया.
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