नई दिल्ली:
दुनिया की सबसे पुरानी सभ्याताओं में से एक माने जाने वाली सिंधु घाटी सभ्यता जिसकी पहचान है मोहनजोड़दो से मिली प्रसिद्ध 'डांसिंग गर्ल' की मूर्ति. इस प्रतिमा को लेकर इतिहासकार और पुरातत्व विभाग के शौधकर्ता अलग अलग अंदाज़े लगाते आए हैं. ऐसे ही एक आकलन में यह दावा किया गया है कि यह डांसिंग गर्ल की मूर्ति दरअसल पार्वती की है जिससे यह पता चलता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग शिवजी के उपासक थे. यह दावा हाल ही में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) की हिंदी पत्रिका 'इतिहास' में प्रकाशित एक नए शोध पत्र में किया गया है.
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर ठाकुर प्रसाद वर्मा ने अपने रिचर्स पेपर 'वैदिक सभ्यता का पुरात्तव' में सिंधु घाटी सभ्यता को वैदिक पहचान देते हुए उस पुराने दावे को फिर दोहराया है जिसके तहत दक्षिणपंथी इतिहासवाद् यह कहते आए हैं कि इस सभ्यता के लोग शिव के उपासक थे. साथ ही वर्मा ने 2500 ईसा पूर्व की इस 'डांसिंग गर्ल' की मूर्ति को हिंदू देवी पार्वती बताया है जो अपने आप में पहला दावा है.
रिसर्च पेपेर में मोहनजोदड़ो के अन्य प्रतीकों का भी आकलन करते हुए कहा गया है कि उस सभ्यता के दौरान शिव की पूजा की जाती थी. वर्मा कहते हैं कि प्रसिद्ध 'सील 420' में जिस तरह एक सील में योगी और उसके आसपास खड़े जानवरों की झलक नज़र आती है उससे साफ लगता है कि उस वक्त शिव की उपासना की जाती थी. वर्मा ने यह दावा भी किया है कि डांसिंग गर्ल इसलिए भी पार्वती है क्योंकि जहां शिव होंगे, वहां शक्ति भी होगी.
हालांकि इस बारे में कुछ और इतिहासवादों की राय भिन्न है. इंडियन एक्सप्रेस से ही बात करते हुए जेएनयू की प्रोफेसर सुप्रीया वर्मा कहती है कि आज तक किसी भी पुरात्तत्वविद् ने डांसिंग गर्ल को देवी नहीं बताया, पार्वती तो छोड़ ही दीजिए. इस मूर्ति को हमेशा ही एक युवती की प्रतिमा की तरह ही देखा गया है.' बताया जाता है कि पुरात्तत्वविद् जॉन मार्शल ने 1931 में इस प्रतिमा को शिव की मूर्ति बताया था लेकिन बाद में इतिहासकारों ने अलग अलग राय दी जिसमें कुछ ने इसे एक औरत की मूर्ति के रूप में देखा.
बता दें कि इसी साल अक्टूबर में पाकिस्तान में एक वकील ने लाहौर उच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी कि वह सरकार को भारत से मशहूर 'डांसिंग गर्ल' मूर्ति वापस लाने का निर्देश दे. याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि कांसे की यह प्राचीन मूर्ति मोहनजोदड़ो से निकली थी और दिल्ली की राष्ट्रीय कला परिषद के आग्रह पर प्रदर्शन के लिए करीब 60 साल पहले भारत भेजी गई थी. भारत ने बाद में उस मूर्ति को लौटाने से इंकार कर दिया.
गौरतलब है कि दुनिया के कई प्रसिद्ध पुरात्तत्वविद् इस मूर्ति को सिंधु सभ्यता की तलाश में मोहनजोदड़ो में की गई खुदाई से निकली तमाम कलाकृतियों में से सबसे आकर्षक बता चुके हैं. कांसे की यह छोटी सी प्रतिमा सिंधु सभ्यता के बारे में दो अहम बातों की तरफ इशारा करती है - पहली तो यह है कि उस वक्त के कलाकार धातु के साथ काम करना जानते थे और यह सभ्यता इतनी विकसित थी कि वहां नृत्य जैसी कला के लिए भी ख़ासी जगह थी. भारतीय राष्ट्रीय संग्रहालय ने डांसिंग गर्ल की प्रतिमा का इसी तरह वर्णन किया है.
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर ठाकुर प्रसाद वर्मा ने अपने रिचर्स पेपर 'वैदिक सभ्यता का पुरात्तव' में सिंधु घाटी सभ्यता को वैदिक पहचान देते हुए उस पुराने दावे को फिर दोहराया है जिसके तहत दक्षिणपंथी इतिहासवाद् यह कहते आए हैं कि इस सभ्यता के लोग शिव के उपासक थे. साथ ही वर्मा ने 2500 ईसा पूर्व की इस 'डांसिंग गर्ल' की मूर्ति को हिंदू देवी पार्वती बताया है जो अपने आप में पहला दावा है.
रिसर्च पेपेर में मोहनजोदड़ो के अन्य प्रतीकों का भी आकलन करते हुए कहा गया है कि उस सभ्यता के दौरान शिव की पूजा की जाती थी. वर्मा कहते हैं कि प्रसिद्ध 'सील 420' में जिस तरह एक सील में योगी और उसके आसपास खड़े जानवरों की झलक नज़र आती है उससे साफ लगता है कि उस वक्त शिव की उपासना की जाती थी. वर्मा ने यह दावा भी किया है कि डांसिंग गर्ल इसलिए भी पार्वती है क्योंकि जहां शिव होंगे, वहां शक्ति भी होगी.
हालांकि इस बारे में कुछ और इतिहासवादों की राय भिन्न है. इंडियन एक्सप्रेस से ही बात करते हुए जेएनयू की प्रोफेसर सुप्रीया वर्मा कहती है कि आज तक किसी भी पुरात्तत्वविद् ने डांसिंग गर्ल को देवी नहीं बताया, पार्वती तो छोड़ ही दीजिए. इस मूर्ति को हमेशा ही एक युवती की प्रतिमा की तरह ही देखा गया है.' बताया जाता है कि पुरात्तत्वविद् जॉन मार्शल ने 1931 में इस प्रतिमा को शिव की मूर्ति बताया था लेकिन बाद में इतिहासकारों ने अलग अलग राय दी जिसमें कुछ ने इसे एक औरत की मूर्ति के रूप में देखा.
बता दें कि इसी साल अक्टूबर में पाकिस्तान में एक वकील ने लाहौर उच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी कि वह सरकार को भारत से मशहूर 'डांसिंग गर्ल' मूर्ति वापस लाने का निर्देश दे. याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि कांसे की यह प्राचीन मूर्ति मोहनजोदड़ो से निकली थी और दिल्ली की राष्ट्रीय कला परिषद के आग्रह पर प्रदर्शन के लिए करीब 60 साल पहले भारत भेजी गई थी. भारत ने बाद में उस मूर्ति को लौटाने से इंकार कर दिया.
गौरतलब है कि दुनिया के कई प्रसिद्ध पुरात्तत्वविद् इस मूर्ति को सिंधु सभ्यता की तलाश में मोहनजोदड़ो में की गई खुदाई से निकली तमाम कलाकृतियों में से सबसे आकर्षक बता चुके हैं. कांसे की यह छोटी सी प्रतिमा सिंधु सभ्यता के बारे में दो अहम बातों की तरफ इशारा करती है - पहली तो यह है कि उस वक्त के कलाकार धातु के साथ काम करना जानते थे और यह सभ्यता इतनी विकसित थी कि वहां नृत्य जैसी कला के लिए भी ख़ासी जगह थी. भारतीय राष्ट्रीय संग्रहालय ने डांसिंग गर्ल की प्रतिमा का इसी तरह वर्णन किया है.
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