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तेजस क्रैश में शहीद पायलट नमांश स्याल की पत्नी अफसाना कौन हैं? हादसे की 'वो बात' रुला देगी

दुबई एयर शो में तेजस का क्रैश होना सिर्फ एक फाइटर जेट का क्रैश होना नहीं था, ये देश के लिए एक बड़ा झटका था. मगर शायद ये और बड़ा झटका होता अगर वहां मौजूद भीड़ पर ये गिर जाता. जानिए कैसे नमांश स्याल ने अपनी जान गंवाकर देश की साख बचाई.

  • विंग कमांडर नमांश स्याल का दुबई में तेजस विमान हादसे में निधन हो गया, जिससे पूरा देश स्तब्ध रह गया.
  • नमांश ने विमान में खराबी के बावजूद इजेक्ट नहीं किया और लोगों की जान बचाने के लिए विमान को खाली जगह मोड़ा.
  • नमांश की पत्नी अफसाना भी भारतीय वायुसेना में पायलट हैं और वे अपनी 7 साल की बेटी के साथ अब अकेली रह गई हैं.
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दुबई का आसमान. तारीख 21 नवंबर 2025 और भारत का फाइटर जेट 'तेजस'. सब कुछ सामान्य था, लेकिन फिर अचानक एक खबर आती है, जिसने हिमाचल की वादियों से लेकर पूरे हिंदुस्तान को झकझोर कर रख दिया. भारतीय वायु सेना के जांबाज विंग कमांडर नमांश स्याल अब हमारे बीच नहीं रहे. एक हादसे में एक हंसता-खेलता परिवार बिखर गया. नमांश की पत्नी का नाम अफसाना है. वो खुद भी देश सेवा में ही लगी हैं. वो खुद भारतीय वायुसेना में पायलट हैं. 

16 साल का साथ पल में टूट गया

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नमांश और अफसाना ने आसमान की ऊंचाइयों को छूने का सपना साथ देखा था. दोनों ने देश की रक्षा की कसम साथ-साथ खाई थी. 16 साल का साथ था इनका. 16 साल की यह शादीशुदा जिंदगी, जिसमें उन्होंने एक-दूसरे को सिर्फ जमीन पर ही नहीं, बल्कि बादलों के बीच भी समझा था. एक क्रैश ने इस बहादुर जोड़ी को तोड़ दिया.

तेजस से इजेक्ट क्यों नहीं हुए नमांश स्याल

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अफसाना खुद जानती हैं कि एक कॉकपिट में बैठने का मतलब क्या होता है. वो जानती हैं कि जब एक फाइटर जेट उड़ान भरता है, तो मौत और जिंदगी के बीच का फासला कितना कम होता है. लेकिन शायद उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा कि जिस 'तेजस' पर देश को इतना नाज़ है, वही तेजस उनके सुहाग को उनसे हमेशा के लिए छीन लेगा. खबर मिली है कि जब तेजस में खराबी आई, जब मौत सामने खड़ी थी, तब भी विंग कमांडर नमांश ने अपनी जान की परवाह नहीं की. वो चाहते तो इजेक्ट कर सकते थे, अपनी जान बचा सकते थे. लेकिन नीचे लोगों की भीड़ थी. दूसरे देशों के विमान खड़े थे. नमांश ने अपनी सूझबूझ दिखाई और जलते हुए विमान को खाली जगह की तरफ मोड़ दिया. उन्होंने दूसरों की जान बचाने के लिए अपनी सांसें कुर्बान कर दीं.इस तरह से उन्होंने न सिर्फ भीड़ की जान बचाई, बल्कि भारत की साख भी बचाई.

एक तरफ पति की शहादत पर गर्व, और दूसरी तरफ कभी ना भरने वाला खालीपन. अफसाना आज उसी दोराहे पर खड़ी हैं. उनकी 7 साल की मासूम बेटी है, जिसे शायद अभी ठीक से ये भी नहीं पता कि उसके पिता अब कभी लौटकर उसे गोद में नहीं उठाएंगे. नमांश के पिता गगन कुमार खुद एक शिक्षक रहे हैं, कहते हैं कि ये दुख सिर्फ उनके परिवार का नहीं, पूरे देश का है. गांव में भी सन्नाटा पसरा है.

क्या बीतेगी अफसाना पर

नमांश का बचपन का सपना था पायलट बनना. कांगड़ा के छोटे से गांव से निकलकर दुबई के एयर शो तक का सफर और फिर वो आखिरी उड़ान. अफसाना जानती हैं कि 'शहादत' का वजन क्या होता है, लेकिन जब वो वर्दी पहनकर अपने पति के पार्थिव शरीर को देखेंगी, तो उस वक्त एक पायलट नहीं, एक पत्नी का दिल कैसे संभलेगा? ये सोचना भी रूह कंपा देता है.

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हिमाचल के उस घर में आज मातम है, लेकिन उस मातम में एक अजीब सा सुकून भी है कि उनका बेटा कायरों की तरह नहीं, बल्कि एक हीरो की तरह गया है, लेकिन उस पत्नी का क्या? जो अब उसी आसमान को देखेगी तो उसे क्या नजर आएगा? अपना खोया हुआ प्यार या देश का गौरव? आज नमांश स्याल हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी वीरता हमेशा याद रखी जाएगी. एक फौजी सिर्फ सीमा पर नहीं लड़ता, उसका परिवार हर रोज अपने घर के आंगन में भावनाओं की जंग लड़ता है.  

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