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This Article is From Dec 06, 2016

तमिलनाडु : जयललिता के बाद अब शशिकला, सियासत और शह-मात का खेल

तमिलनाडु : जयललिता के बाद अब शशिकला, सियासत और शह-मात का खेल
शशिकला और जयललिता (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: जयललिता की मौत के बाद उनकी परछाईं की तरह साथ रहीं विश्‍वस्‍त सहयोगी शशिकला के भविष्‍य और अन्‍नाद्रमुक पार्टी की कमान संभालने को लेकर अनिश्चितता का दौर शुरू हो गया है. पार्टी के भीतर एक तबके में शशिकला का दबदबा रहा है लेकिन भ्रष्‍टाचार के कई मामलों में घिरे होने की वजह से उनके पर्दे के पीछे से निकलते हुए औपचारिक रूप से सियासी पारी शुरू करने पर पार्टी के भीतर असंतोष उत्‍पन्‍न होने के भी कयास लगाए जा रहे हैं.

इसकी एक बड़ी वजह यह है कि जयललिता की वजह से ही पार्टी के भीतर शशिकला सत्‍ता का एक केंद्र मानी जाती रहीं लेकिन नाराज होने पर जयललिता ने उनको बाहर का दरवाजा दिखाने से भी गुरेज़ नहीं किया. ये दीगर बात है कि बाद में उनकी घर वापसी हो गई.

ऐसे में यदि अब वह सियासी महत्‍वाकांक्षा प्रकट करती हैं और अन्‍नाद्रमुक के जनरल सेक्रेट्री के रूप में निकट भविष्‍य में पार्टी की कमान संभालने की दावेदारी करती हैं तो पार्टी और सरकार के बीच सत्‍ता के दो केंद्र बन सकते हैं क्‍योंकि ओ पन्‍नीरसेल्‍वम मुख्‍यमंत्री बन चुके हैं. इस परिस्थिति में उनको पार्टी और सरकार के स्‍थायित्‍व के लिए शशिकला के सहयोग की दरकार होगी क्‍योंकि यदि सरकार चलाने में शशिकला की दखलंदाजी बढ़ती है तो इससे पार्टी के भीतर सत्‍ता संघर्ष की स्थिति उत्‍पन्‍न होने के चलते शह-मात का खेल शुरू हो सकता है.

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खास बात यह है कि शशिकला और पन्‍नीरसेल्‍वम दोनों ही थेवर (ओबीसी) समुदाय से ताल्‍लुक रखते हैं और जातिगत समीकरणों के लिहाज से ये उनकी एकजुटता का कारण भी है और सत्‍ता संघर्ष की स्थिति में इस वोटबैंक के फिलहाल पन्‍नीरसेल्‍वम का साथ देने की ही संभावना है. इसके चलते शशिकला को सियासी नुकसान होने की आशंका है.

लेकिन यदि शशिकला खुद को जयललिता के राजनीतिक वारिस के रूप में पेश करती हैं तो पार्टी के एक धड़े में असंतोष की स्थिति में विभाजन होने की भी संभावना है. लेकिन कानूनी रूप से पार्टी में दो-फाड़ के लिए पार्टी के मौजूदा 135 विधायकों में से 90 से अधिक के समूह की दरकार होगी जोकि मौजूदा दौर में संभव नहीं दिखता.दूसरी बात यह है कि उस सूरतेहाल में विपक्षी द्रमुक की भूमिका महत्‍वपूर्ण हो जाएगी. उसके सहयोग के बिना विभाजित खेमे का सत्‍ता तक पहुंचना संभव नहीं होगा. यह कयास इसलिए लगाए जा रहे हैं क्‍योंकि शशिकला के करुणानिधि परिवार से अच्‍छे संबंध हैं.

दूसरी बात यह है कि अन्‍नाद्रमुक के विधायक फिलहाल किसी भी सूरत में चुनाव नहीं चाहेंगे क्‍योंकि जयललिता के बाद पार्टी के पास फिलहाल कोई ऐसा कद्दावर नेता नहीं है जिसके दम पर पूरे राज्‍य से वोट हासिल किए जा सकें और अगले चुनाव चार साल बाद होने हैं.

इन सबके चलते केंद्र की भूमिका भी अब अहम हो गई है क्‍योंकि किसी भी सियासी रुख की स्थिति में राजभवन और राज्‍यपाल की भूमिका अहम होगी. ऐसे में अन्‍नाद्रमुक को फिलहाल केंद्र का साथ चाहिए और केंद्र को अगले साल जुलाई में होने जा रहे राष्‍ट्रपति चुनाव के लिहाज से इस पार्टी के विधायकों के समर्थन की दरकार से इनकार नहीं किया जा सकता. ऐसे में केंद्र भी फिलहाल राज्‍य विधानसभा के अंकगणित में कोई फेरबदल नहीं चाहेगा. वहीं इसके साथ ही जयललिता की अनुपस्थिति में अन्‍नाद्रमुक के वोटबैंक पर अब द्रविड़ पार्टियों के साथ-साथ कांग्रेस और बीजेपी की नजर भी होगी.

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