SC Verdict NDPS: सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की ने आज NDPS मामले पर अहम फैसला सुनाया. जिसके अनुसार अगर शिकायतकर्ता और जांच अधिकारी एक ही हो तो आरोपी के खिलाफ कोई पक्षपात नहीं है. ये किसी आपराधिक मामले में किसी अभियुक्त को बरी करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है. मामले में इंवेस्टिगेशन ऑफिसर भी मुखबिर या शिकायतकर्ता हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जांच करने वाला अधिकारी भी शिकायतकर्ता हो सकता है. सिर्फ इसलिए कि शिकायतकर्ता जांच अधिकारी है, यह जांच को कम नहीं करता है. कोर्ट के अनुसार पूर्वाग्रह के आरोप स्वचालित नहीं हैं.
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जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस एस रविन्द्र भट के संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि शिकायतकर्ता को जांचकर्ता होने के कारण अभियुक्त को लाभ नहीं मिल सकता है, केस टू केस आधार पर सिचुएशन तय करनी होगी. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना था कि नारकोटिक्स ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम (NDPS Act) के तहत जांच अधिकारी और शिकायतकर्ता यदि एक ही व्यक्ति है तो क्या ट्रायल भंग हो जाएगा ?
क्या है पूरा मामला
यह मामला 16 अगरस्त 2018 को मोहनलाल बनाम पंजाब राज्य के मामले में दिए गए एक फैसले से उपजा है. जिसमें जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस आर बानुमति और जस्टिस नवीन सिन्हा की तीन जजों वाली बेंच ने फैसला किया था कि एक निष्पक्ष जांच जो निष्पक्ष ट्रायल की नींव है. जरूरी है कि सूचनाकर्ता और जांचकर्ता को एक ही व्यक्ति नहीं होना चाहिए. न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए. पूर्वाग्रह या पूर्वनिर्धारित निष्कर्ष की किसी भी संभावना को बाहर रखा जाना चाहिए. ये आवश्यकता सबूतों का उल्टा बोझ उठाने वाले सभी कानूनों में अधिक आवश्यक है.
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लेकिन 17 जनवरी 2019 को जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस एम आर शाह की बेंच ने मुकेश सिंह बनाम राज्य (दिल्ली की नारकोटिक्स ब्रांच) के मामले में मोहनलाल फैसले पर अपनी असहमति व्यक्त की. जिसके अनुसार किसी दिए गए मामले में जहां शिकायतकर्ता ने खुद जांच की थी, रिकॉर्ड पर सबूत का आकलन करते समय मामले के ऐसे पहलू को निश्चित रूप से वजन दिया जा सकता है, लेकिन यह कहना पूरी तरह से अलग बात होगी कि इस तरह के मुकदमे को खुद ही भंग कर दिया जाएगा. बेंच ने तब व्यक्त किया कि इस मामले में कम से कम तीन जजों की बेंच द्वारा पुनर्विचार की जरूरत है. बाद में इस मामले को पांच जजों के संविधान पीठ को भेजा गया था.
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