
मुंबई में बॉम्बे हाईकोर्ट के साइलेंस जोन पर फैसले को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती थी...
नई दिल्ली:
मुंबई में अब गणपति विसर्जन उत्सव धूम धमाके से मनाया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के साइलेंस जोन पर जारी आदेश पर रोक लगाई. मुंबई में बॉम्बे हाईकोर्ट के साइलेंस जोन पर फैसले को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती थी. अगर हाईकोर्ट का साइलेंस जोन बरकरार रखने का फैसला बरकरार रहता तो गणेश विसर्जन में दिक्कत होती. शुक्रवार को ध्वनि प्रदूषण से जुड़े नियमों में बदलाव करने वाली केंद्र सरकार के कदम पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी.
हाईकोर्ट की रोक के बाद सभी अस्पतालों, धार्मिक स्थलों, स्कूल-कॉलेज के 100 मीटर के दायरे वाला क्षेत्र शांत क्षेत्र या साइलेंस जोन बना रहता. हाईकोर्ट के इस फैसले को कानून और राजनीतिक हलकों में केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार के लिए करारा झटका माना जा रहा है. वर्ष 2000 के ध्वनि प्रदूषण संबंधी नियमों में केंद्र सरकार द्वारा किए गए बदलाव को हाई कोर्ट ने असंवैधानिक मानते हुए प्रथम दृष्टया इसे संविधान के अनुच्छेद 21 व 14 के विपरीत बताया है अर्थात इसे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन माना गया है.
यह भी पढ़ें: जानिए कब है गणपति विसर्जन का शुभ मुहूर्त और क्या है इसका महत्व
हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि सरकार ने कानून में बदलाव करते समय जनहित से जुड़े सिद्धांत का पालन नहीं किया है. कानून में बदलाव करते समय जरूरी है कि लोगों के सुझाव व आपत्तियों को आमंत्रित किया जाए. पर्यावरण कानून के तहत इसे अनिवार्य किया गया है, लेकिन केंद्र सरकार व राज्य सरकार ने इसका पालन नहीं किया.
VIDEO : पूरे देश में गणेश महोत्सव की धूम
जस्टिस अभय ओक की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि हर नागरिक को गरिमा व सुख से रहने का अधिकार है. तेज आवाज सुनने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता और इससे अनेक नागरिक असाध्य रोगों और बीमारियों का शिकार हो जाते हैं.
हाईकोर्ट की रोक के बाद सभी अस्पतालों, धार्मिक स्थलों, स्कूल-कॉलेज के 100 मीटर के दायरे वाला क्षेत्र शांत क्षेत्र या साइलेंस जोन बना रहता. हाईकोर्ट के इस फैसले को कानून और राजनीतिक हलकों में केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार के लिए करारा झटका माना जा रहा है. वर्ष 2000 के ध्वनि प्रदूषण संबंधी नियमों में केंद्र सरकार द्वारा किए गए बदलाव को हाई कोर्ट ने असंवैधानिक मानते हुए प्रथम दृष्टया इसे संविधान के अनुच्छेद 21 व 14 के विपरीत बताया है अर्थात इसे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन माना गया है.
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हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि सरकार ने कानून में बदलाव करते समय जनहित से जुड़े सिद्धांत का पालन नहीं किया है. कानून में बदलाव करते समय जरूरी है कि लोगों के सुझाव व आपत्तियों को आमंत्रित किया जाए. पर्यावरण कानून के तहत इसे अनिवार्य किया गया है, लेकिन केंद्र सरकार व राज्य सरकार ने इसका पालन नहीं किया.
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जस्टिस अभय ओक की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि हर नागरिक को गरिमा व सुख से रहने का अधिकार है. तेज आवाज सुनने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता और इससे अनेक नागरिक असाध्य रोगों और बीमारियों का शिकार हो जाते हैं.
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