जल्लीकट्टू के समर्थन में विरोध प्रदर्शन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
तमिलनाडु में जल्लीकट्टू पर फिलहाल रोक नहीं लगेगी. सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के नए एक्ट पर फिलहाल रोक लगाने से इंकार कर दिया है लेकिन कोर्ट नए एक्ट की संवैधानिकता पर सुनवाई करेगा. हालांकि कोर्ट ने जल्लीकट्टू को लेकर हुए प्रदर्शनों को लेकर राज्य सरकार की खिंचाई की है और कहा है कि कानून के राज में ये नहीं होना चाहिए. सर्वोच्च अदालत ने तमिलनाडु सरकार से नए एक्ट पर नोटिस जारी कर 6 हफ्ते में जवाब मांगा है और साथ ही कहा है कि राज्य में कानून व्यवस्था को बनाए रखा जाए. अदालत ने केंद्र सरकार को जनवरी 2016 का नोटिफिकेशन वापस लेने की इजाजत भी दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और तमिलनाडु सरकार पर बड़े सवाल भी उठाए. कोर्ट ने पूछा, जलीकट्टू को लेकर तमिलनाडू को एक्ट लाने की क्या जरूरत थी? क्या सरकार के पास इसका कोई कानूनी जवाब है? इस मामले में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए थे. अगर नया एक्ट लोगों के प्रदशर्न के दबाव में बनाया गया तो कावेरी मुद्दे पर तमिलनाडू सरकार कर्नाटक सरकार का विरोध क्यों कर रही है?
अदालत ने पूछा, 'आप कह रहे हैं कि नया कानून लेकर आए हैं लेकिन सड़क पर उतरकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवेहलना करने के लिए एक्ट लेकर आए? सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में जल्लीकट्टू को लेकर हुए प्रदर्शन पर नाराजगी जताई और कहा, 'राज्य सरकार को कानून व्यवस्था बनाए रखनी चाहिए. हम कानून के हिसाब से चलते हैं और कानून के राज में ऐसी चीजें नहीं हो सकतीं. किसी भी सभ्य समाज में कानून व्यवस्था सबसे प्राथमिक जरूरत होती है. हम इसी बात पर नहीं हैं कि आप एक्ट क्यों लेकर आए, ये जानना भी चाहते हैं कि ऐसा प्रदर्शन क्यों हुआ? इसकी जरूरत क्यों पड़ी?' सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि इस मामले को हाईकोर्ट नहीं भेजा जाएगा. कोर्ट ने कहा, 'सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के पूरे आदेश के आधार को ही खत्म कर दिया है. हम साफ करना चाहते हैं कि मामले को वापस हाईकोर्ट नहीं भेजा जाएगा.'
तमिलनाडु सरकार की ओर से कहा गया कि जल्लीकट्टू को लेकर लोग प्रदर्शन कर रहे थे और कानून व्यवस्था बिगड़ने के हालात थे. अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि केंद्र सरकार अपने नोटिफिकेशन को वापस ले रही है. ऐसे में यहां मसला राज्य के एक्ट का है. मामले को हाईकोर्ट भेजा जाना चाहिए. जल्लीकट्टू के समर्थन में दलील देते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि देश में धार्मिक परंपरा के तौर पर जानवरों को कुर्बान किया जा सकता है तो जल्लीकट्टू तो एक खेल है, वो भी कराया जा सकता है.
दरअसल तमिलनाडु विधानसभा द्वारा कानून पारित कर जल्लीकट्टू को इजाजत दिए जाने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई की. ये याचिकाएं भारतीय पशु कल्याण बोर्ड सहित अन्य द्वारा दायर की गई हैं. याचिका में कहा गया है कि तमिलनाडु विधानसभा द्वारा जल्लीकट्टू पर कानून पारित करना अदालत के आदेशों का अपमान है. उनका कहना था कि राज्य सरकार को ऐसा कानून पारित नहीं करना चाहिए था.
अदालत ने पूछा, 'आप कह रहे हैं कि नया कानून लेकर आए हैं लेकिन सड़क पर उतरकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवेहलना करने के लिए एक्ट लेकर आए? सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में जल्लीकट्टू को लेकर हुए प्रदर्शन पर नाराजगी जताई और कहा, 'राज्य सरकार को कानून व्यवस्था बनाए रखनी चाहिए. हम कानून के हिसाब से चलते हैं और कानून के राज में ऐसी चीजें नहीं हो सकतीं. किसी भी सभ्य समाज में कानून व्यवस्था सबसे प्राथमिक जरूरत होती है. हम इसी बात पर नहीं हैं कि आप एक्ट क्यों लेकर आए, ये जानना भी चाहते हैं कि ऐसा प्रदर्शन क्यों हुआ? इसकी जरूरत क्यों पड़ी?' सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि इस मामले को हाईकोर्ट नहीं भेजा जाएगा. कोर्ट ने कहा, 'सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के पूरे आदेश के आधार को ही खत्म कर दिया है. हम साफ करना चाहते हैं कि मामले को वापस हाईकोर्ट नहीं भेजा जाएगा.'
तमिलनाडु सरकार की ओर से कहा गया कि जल्लीकट्टू को लेकर लोग प्रदर्शन कर रहे थे और कानून व्यवस्था बिगड़ने के हालात थे. अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि केंद्र सरकार अपने नोटिफिकेशन को वापस ले रही है. ऐसे में यहां मसला राज्य के एक्ट का है. मामले को हाईकोर्ट भेजा जाना चाहिए. जल्लीकट्टू के समर्थन में दलील देते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि देश में धार्मिक परंपरा के तौर पर जानवरों को कुर्बान किया जा सकता है तो जल्लीकट्टू तो एक खेल है, वो भी कराया जा सकता है.
दरअसल तमिलनाडु विधानसभा द्वारा कानून पारित कर जल्लीकट्टू को इजाजत दिए जाने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई की. ये याचिकाएं भारतीय पशु कल्याण बोर्ड सहित अन्य द्वारा दायर की गई हैं. याचिका में कहा गया है कि तमिलनाडु विधानसभा द्वारा जल्लीकट्टू पर कानून पारित करना अदालत के आदेशों का अपमान है. उनका कहना था कि राज्य सरकार को ऐसा कानून पारित नहीं करना चाहिए था.
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