उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि माल एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की सिफारिशें केंद्र और राज्यों के लिए बाध्यकारी नहीं हैं, हालांकि इनपर विचार करना महत्वपूर्ण है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि संसद और राज्य विधानसभाओं, दोनों के पास जीएसटी पर कानून बनाने की शक्ति है और परिषद की सिफारिशें केंद्र और राज्यों के बीच एक सहयोगी संवाद का फल हैं.
न्यायालय ने कहा कि जीएसटी परिषद सिर्फ अप्रत्यक्ष कर प्रणाली तक सीमित एक संवैधानिक निकाय नहीं है, बल्कि संघवाद और लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु भी है.
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने केंद्र की इस दलील को खारिज कर दिया कि जीएसटी परिषद की सिफारिशें विधायिका और कार्यपालिका के लिए बाध्यकारी हैं.
पीठ ने यह भी कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के पास जीएसटी पर कानून बनाने की शक्तियां हैं लेकिन परिषद को एक व्यावहारिक समाधान प्राप्त करने के लिए सामंजस्यपूर्ण तरीके से काम करना चाहिए.
न्यायालय कहा कि अनुच्छेद 246ए के मुताबिक संसद और राज्य विधायिका के पास कराधान के मामलों पर कानून बनाने की एक समान शक्तियां हैं. अनुच्छेद 246ए के तहत केंद्र और राज्य के साथ एक समान व्यवहार किया गया है, वहीं अनुच्छेद 279 कहता है कि केंद्र और राज्य एक-दूसरे से स्वतंत्र रहते हुए काम नहीं कर सकते. पीठ ने कहा कि 2017 के जीएसटी अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो केंद्र और राज्य के कानूनों के बीच विरोधाभास से निपटता हो और जब भी ऐसी परिस्थितियां बनती हैं तो परिषद उन्हें उचित सलाह देती है.
न्यायालय ने गुजरात उच्च न्यायालय के एक फैसले को बरकरार रखते हुए यह निर्णय दिया. गुजरात की अदालत ने कहा था कि ‘रिवर्स चार्ज' के तहत समुद्री माल के लिए आयातकों पर एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) नहीं लगाया जा सकता है.
पीठ ने कहा कि जीएसटी परिषद की सिफारिशें केंद्र और राज्यों पर इस कारण से बाध्यकारी नहीं हैं, क्योंकि अनुच्छेद 279बी को हटाना और संविधान संशोधन अधिनियम 2016 द्वारा अनुच्छेद 279 (1) को शामिल करना यह इंगित करता है कि संसद का इरादा सिफारिशों के लिए था. जीएसटी परिषद सिर्फ एक प्रेरक की तरह है, क्योंकि जीएसटी व्यवस्था का उद्देश्य सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना था.
पीठ ने कहा कि भारतीय संघवाद की महत्वपूर्ण विशेषताओं में से राजकोषीय संघवाद शामिल है और 2014 के संशोधन विधेयक के उद्देश्यों और कारणों के विवरण, संसदीय रिपोर्टों और भाषणों से संकेत मिलता है कि संविधान के अनुच्छेद 246ए और 279ए राज्यों और केंद्र के बीच सहकारी संघवाद और सद्भाव को बढ़ाने के मकसद से पेश किए गए थे.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए 153 पन्नों के फैसले में पीठ ने कहा कि जीएसटी परिषद में केंद्र की एक-मत हिस्सेदारी है और इसके साथ ही अनुच्छेद 246ए में प्रतिकूल प्रावधान की अनुपस्थिति से यह पता चलता है कि जीएसटी परिषद की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं हो सकती हैं.
फैसले में आगे कहा गया, ‘‘इसलिए, यह तर्क कि यदि जीएसटी परिषद की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होंगी, तो जीएसटी का पूरा ढांचा चरमरा जाएगा, यह टिकने वाला नहीं है.''
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