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'कान्हा छोटे हैं, थक जाते हैं', बांके बिहारी मंदिर दर्शन में क्या बदला कि खफा हुआ सुप्रीम कोर्ट

बांके बिहारी मंदिर में दर्शन का समय बढ़ाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है-आप पैसे वालों के लिए भगवान को आराम नहीं करने देते

'कान्हा छोटे हैं, थक जाते हैं', बांके बिहारी मंदिर दर्शन में क्या बदला कि खफा हुआ सुप्रीम कोर्ट
  • सुप्रीम कोर्ट ने श्री बांके बिहारी मंदिर में दर्शन समय बढ़ाने पर कड़ी नाराजगी जताई है
  • सुबह और शाम के दर्शन समय को बढ़ाने से गोस्वामी समाज के पुजारियों ने भगवान की दिनचर्या प्रभावित होने की बात कही
  • मामले की अगली सुनवाई जनवरी में होगी जिसमें संबंधित पक्षों को नोटिस का जवाब देना होगा
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उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर में विशेष दर्शन और बढ़ी हुई समय-सारणी पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है. कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि,"पैसे वाले लोगों से आप पैसे लेकर देवताओं को आराम तक करने नहीं दे रहे". सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप देवताओं को आराम तक करने नहीं दे रहे. आप उन लोगों को सहूलियत देते हैं जो आपको भगवान के आराम के वक्त पूजा कराने के लिए मोटा पैसा देते हैं.

क्या है पूरा मामला 

दरअसल बांके बिहारी मंदिर की देखभाल करने वाले गोस्वामी समाज की तरफ से मंदिर के देखभाल का अधिकार बदले जाने के खिलाफ याचिका दायर की थी. इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए यूपी सरकार और मंदिर की हाई पावर्ड कमेटी को नोटिस जारी किया है. इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी में होगी और तब संबंधित पक्षों को इस नोटिस का कोर्ट में जवाब देना होगा.

कोर्ट ने क्यों जताई नाराजगी?

सवाल ये है कि सुप्रीम कोर्ट को ऐसी टिप्पणी क्यों करनी पड़ी. दरअसल मथुरा में स्थित बांके बिहारी की मूर्ति को सजीव कान्हा मानकर उनकी पूजा होती है. गोस्वामी समाज के पुजारी बांके बिहारी को नियम से सुबह जगाते हैं, श्रृंगार करते हैं, भोग लगाते हैं, दर्शन के लिए श्रद्धालुओं के सामने लाते हैं, फिर दोपहर में भोग लगाकर आराम करने देते हैं. यही नियम शाम को भी है. बांके बिहारी भगवान कृष्ण का बाल स्वरूप हैं. उन्हें जीवंत मानकर उनकी पूजा के साथ उनकी दिनचर्या एक जीवंत अस्तित्व की तरह तय है. पहले गोस्वामी समाज के पुजारी गर्मियों में सुबह 6 बजे मंदिर के कपाट खोलते थे. फिर मंदिर की साफ सफाई और कान्हा का श्रृंगार किया जाता था. इसके बाद भोग लगाकर सुबह 7.30 बजे से दोपहर 12 बजे तक श्रद्धालुओं को दर्शन कराया जाता था. 

बांके बिहारी को दोपहर में आराम कराया जाता है. गर्मियों में कपाट शाम 5.30 बजे से 9.30 बजे तक खुलते थे. इसी तरह सर्दियों में पुजारी सुबह 7 बजे कपाट खोलते थे. फिर साफ़ सफाई, श्रृंगार और भोग के बाद सुबह 8.30 बजे से दोपहर 1 बजे तक दर्शन कराने की व्यवस्था थी. शाम को 4.30 बजे से 8.30 बजे तक दर्शन होता था. 

श्रद्धालुओं को सहूलियत, भगवान के लिए परेशानी

वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित समिति ने समय सुबह और शाम की शिफ्ट में एक एक घंटे का समय बढ़ा दिया था. ये बदला हुआ समय लगभग दो महीने पहले से लागू हुआ है. इसको लेकर गोस्वामी समाज के पुजारी नाराज हैं. उनका कहना है कि एक तो कान्हा छोटे हैं और दर्शन देते देते थक जाते हैं. ऐसे में नियम बदलकर श्रद्धालुओं को सहूलियत जरूर दी जा रही लेकिन बांके बिहारी इससे परेशान हो रहे हैं. 

'आप देवता को एक मिनट भी आराम नहीं करने देते'

गोस्वामी समाज की याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत, जस्टिस जॉयमाला बागची और जस्टिस विपुल पंचोली की बेंच ने मथुरा के बांके बिहारी मंदिर में दर्शन के समय बढ़ाए जाने को लेकर नाराजगी जताई. सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि कपाट दोपहर 12 बजे बंद होने के बाद आप देवता को एक मिनट भी आराम नहीं करने देते. उल्टा इसी दौरान आप उन्हें सबसे ज्यादा परेशान करते हैं. प्रभावशाली लोग जो मोटा पैसा दे सकते हैं, उन्हें इस दौरान विशेष दर्शन करने की छूट दे दी जाती है. 

मथुरा के बांके बिहारी मंदिर की देखभाल करने वाले गोस्वामी समाज ने सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार के अध्यादेश के खिलाफ याचिका दायर की है. यूपी सरकार श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट ऑर्डिनेंस 2025 लायी है. इसके आने से 1939 से मंदिर संचालन का काम देखने वाली गोस्वामी समाज की प्रक्रिया को हटा दिया गया है. इसी से नाराज़ गोस्वामी समाज सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है. 

गोस्वामी समाज की तरफ से कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कोर्ट में दलील दी कि मंदिर में हमेशा से गर्मियों और सर्दियों के लिए अलग-अलग दर्शन समय निर्धारित है. उन्होंने कहा कि ये परंपरा बेहद पवित्र है. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में मंदिर में भीड़ नियंत्रण के कुप्रबंधन पर भी नाराजगी व्यक्त की. फिलहाल अगले महीने इस मामले में सुनवाई होगी. देखना होगा कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद अगली सुनवाई तक व्यवस्था में बदलाव किया जाता है या नहीं.

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