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This Article is From Dec 10, 2015

अब पढ़े लिखे लोग ही लड़ेंगे हरियाणा में पंचायत चुनाव, नए नियम को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी

अब पढ़े लिखे लोग ही लड़ेंगे हरियाणा में पंचायत चुनाव, नए नियम को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: हरियाणा सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। अब पढ़े-लिखे लोग ही चुनाव लड़ सकेंगे।  दरअसल पंचायत चुनाव लड़ने के लिए नियम में किए संसोधन पर सुप्रीम कोर्ट ने 15 सितंबर को अंतरिम रोक लगा दी थी। राज्य सरकार नए नियमों के मुताबिक, जनरल के लिए दसवीं पास, दलित और महिला के लिए आठवीं पास होना जरूरी है। इसके अलावा बिजली बिल के बकाया ना होने, बैंक का लोन न चुकाने वाले और गंभीर अपराधों में चार्जशीट होने वाले लोग भी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
  • 70 पेज का है हरियाणा पंचायत चुनाव पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला।
  • हरियाणा पंचायत राज्य एक्ट संसोधन से संविधान का उल्लंघन नहीं हुआ।
  • ये जरूरी है कि चुने हुए प्रतिनिधि शिक्षित हो। ताकि वो अपने कर्तव्यों का निर्वाहन सही तरीक़े से कर सके।
  • टॉयलेट की अनिवार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि टॉयलेट बनाने को लेकर राज्य सरकार सहायता देती है, ऐसे में टॉयलेट की अनिवार्यता का फैसला सही है।
  • भारत में खुले शौच करने की कुप्रथा बहुत पुरानी है और इस प्रथा के खिलाफ गांधी जी भी थे, उन्होंने यहां तक कहा था कि आजादी से पहले इस कुप्रथा को खत्म करने की जरूरत है।

हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ये कहा....
हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि उसके नए नियमों के मुताबिक 43 फीसदी लोग पंचायत चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। हालांकि याचिकाकर्ता ने इस आकंड़े को गलत बताया है। वैसे सुप्रीम कोर्ट ने ये भी पूछा कि आखिर कितने सांसद अनपढ़ हैं। अटॉर्नी जनरल ने बताया कि चार सांसद। कोर्ट ने कहा कि सहज प्रक्रिया में ही पढ़े-लिखे लोग चुनाव लड़ रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने किया था ये सवाल
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार से पूछा था कि वो बताए कि नए नियमों के मुताबिक कितने लोग चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। राज्य में कितने टॉयलेट हैं। साथ ही स्कूलों की जानकारी भी मांगी थी। मंगलवार को सुनवाई के दौरान हरियाणा की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में बताया कि नए नियमों के मुताबिक 43 फीसदी लोग चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। साथ ही कोर्ट को बताया गया कि राज्य के 84 फीसदी घरों में टॉयलेट हैं, जबकि 20 हजार स्कूल हैं।

याचिकाकर्ता की शिकायत, गलत आंकड़े पेश किए गए
लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि सरकार ने गलत आंकड़े पेश किए हैं। सही में ये संख्या 43 फीसदी नहीं बल्कि 64 फीसदी है और अगर दलित महिलाओं की बात करें तो ये संख्या 83 फीसदी तक पहुंच जाती है। उन्होंने दावा किया कि सरकार ने ये आंकड़ा प्राइमरी स्कूलों के आधार पर दिया है। ये भी कहा गया कि सरकार ने घरों की संख्या 2012 के आधार पर की जबकि टॉयलेट आज के आधार पर। इसी तरह राज्य सरकार ने 20 हजार स्कूलों में प्राइवेट स्कूलों को भी गिना है, जबकि हकीकत ये है कि राज्य में दसवीं के लिए सिर्फ 3200 स्कूल हैं यानी आधे गांवों में दसवीं तक के स्कूल तक नहीं हैं। ऐसे में राज्य सरकार पंचायत चुनाव के लिए दसवीं पास की योग्यता कैसे निर्धारित कर सकती है।

25 जुलाई को खत्म हो चुका था सरपंचों का कार्यकाल
गौरतलब है कि सरपंचों का कार्यकाल 25 जुलाई- 2015 को खत्म हो चुका है। चुनाव से ठीक पहले 11 अगस्त को हरियाणा सरकार ने पंचायती राज कानून में संशोधन किया था। पंचायत चुनाव लड़ने के लिए 4 शर्तें लगाई थीं, लेकिन एक जनहित याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में सरकार के इस फैसले को चुनौती दे दी गई थी, जिस पर कोर्ट में लगातार सुनवाई करने के बाद 28 अक्टूबर को बहस पूरी हो गई थी। तब से फैसले का इंतजार था।

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