सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने दूसरी बार अपने पिता जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के फैसले को पलट दिया.
नई दिल्ली:
जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने एक बार फिर अपने पिता जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के 33 साल पुराने फैसले को पलट दिया.
सन 1985 में जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने व्यभिचार की धारा को बरकरार रखा था और कहा था कि यह असंवैधानिक नहीं है.
अब जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि यह कानून असंवैधानिक है और रद्द किया जाता है.
खास बात यह है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. अगस्त 2017 में निजता के अधिकार के फैसले में जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता के चर्चित एडीएम जबलपुर केस में उस फैसले को पलटा था जिसमें कहा गया था कि इमरजेंसी के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है.
वाईवी चंद्रचूड़ पांच जजों वाली बेंच के उन चार जजों में से एक थे जिन्होंने तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा इमरजेंसी लगाने को सही ठहराया था. बेटे धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चार जजों द्वारा दिए गए उस फैसले में कमियां थीं. जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता व्यक्ति के अस्तित्व से जुड़ी हुई चीजें हैं जिन्हें छीना नहीं जा सकता.
यह भी पढ़ें : व्यभिचार पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से दिया केंद्र सरकार को बड़ा झटका , ठुकरा दी दलील
गौरतलब है कि 158 साल पुराने कानून IPC 497 (व्यभिचार) की वैधता (Supreme Court verdict on Adultery under Section 497) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपना फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो भी सिस्टम महिला को उसकी गरिमा के विपरीत या भेदभाव करता है वह संविधान के कोप को आमंत्रित करता है. कोर्ट ने कहा कि जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है वह असंवैधानिक है.
VIDEO : सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून को रद्द किया
सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने 9 अगस्त को व्यभिचार की धारा IPC 497 पर फैसला सुरक्षित रखा था. पीठ को तय करना था कि यह धारा अंसवैधानिक है या नहीं, क्योंकि इसमें सिर्फ पुरुषों को आरोपी बनाया जाता है, महिलाओं को नहीं.
सन 1985 में जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने व्यभिचार की धारा को बरकरार रखा था और कहा था कि यह असंवैधानिक नहीं है.
अब जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि यह कानून असंवैधानिक है और रद्द किया जाता है.
खास बात यह है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. अगस्त 2017 में निजता के अधिकार के फैसले में जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता के चर्चित एडीएम जबलपुर केस में उस फैसले को पलटा था जिसमें कहा गया था कि इमरजेंसी के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है.
वाईवी चंद्रचूड़ पांच जजों वाली बेंच के उन चार जजों में से एक थे जिन्होंने तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा इमरजेंसी लगाने को सही ठहराया था. बेटे धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चार जजों द्वारा दिए गए उस फैसले में कमियां थीं. जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता व्यक्ति के अस्तित्व से जुड़ी हुई चीजें हैं जिन्हें छीना नहीं जा सकता.
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गौरतलब है कि 158 साल पुराने कानून IPC 497 (व्यभिचार) की वैधता (Supreme Court verdict on Adultery under Section 497) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपना फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो भी सिस्टम महिला को उसकी गरिमा के विपरीत या भेदभाव करता है वह संविधान के कोप को आमंत्रित करता है. कोर्ट ने कहा कि जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है वह असंवैधानिक है.
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सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने 9 अगस्त को व्यभिचार की धारा IPC 497 पर फैसला सुरक्षित रखा था. पीठ को तय करना था कि यह धारा अंसवैधानिक है या नहीं, क्योंकि इसमें सिर्फ पुरुषों को आरोपी बनाया जाता है, महिलाओं को नहीं.
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