अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों वाली संविधान पीठ ने अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेषाधिकार का दो बार इस्तेमाल किया है. कोर्ट ने कहा कि सबूतों को देखते हुए 2.77 एकड़ विवादित जमीन मंदिर को दी जाती है. लेकिन इसके साथ ही अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए मस्जिद के लिए भी 5 एकड़ जमीन देने का आदेश सुनाया. कोर्ट ने कहा, 'मुस्लिमों ने मस्जिद को त्यागा नहीं था'. और अगर मुस्लिमों के अधिकार, जिनको ढांचे से वंचित किया जा रहा है, को ध्यान में नहीं रखा जाता है तो यह न्याय नहीं होगा और धर्मनिरपेक्ष देश के लिए यह कानून का शासन नहीं होगा. कोर्ट इस मामले में अनुच्चेद 142 के तहत मिले अधिकारों का इस्तेमाल करेगा.
इसके साथ ही अनुच्छेद 142 का ही इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा को मंदिर बनाने वाले ट्रस्ट में शामिल करने का आदेश सुनाया. जबकि निर्मोही अखाड़ा की दलीलों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. आपको बता दें कि संविधान में दिए अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को इस बात का अधिकार मिला हुआ है किसी भी मामले में पूरे न्याय के लिए वह कोई भी जरूरी आदेश दे सकता है.
आपको बता दें कि इसी साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए 22 सालों से अलग अलग रहे पति-पत्नी की शादी की मान्यता रद्द कर दी थी जबकि महिला ने इस मामले में तलाक देने पर सहमत नहीं थी. साल 2015 में ही इसी अनुच्छेद का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में जस्टिस वीरेंद्र सिंह की नियुक्ति लोकायुक्त के तौर पर की थी. जबकि लोकायुक्त की नियुक्ति सरकार का अधिकार है. इसी तरह बाबरी विध्वंस मामले की सुनवाई रायबरेली की अदालत से लखनऊ अदालत ट्रांसफर करने में भी इसी अनुच्छेद का इस्तेमाल किया था ताकि दो अलग-अलग केसों की संयुक्त सुनवाई हो सके.
अयोध्या फैसले के बाद सोशल मीडिया की मॉनिटरिंग सख्त
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