नई दिल्ली:
सर्वोच्च न्यायालय ने स्विस दवा कंपनी नोवार्टिस एजी की एक कैंसररोधी दवा के पेटेंट दावे को खारिज कर दिया। अदालत के फैसले की स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सराहना की।
सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को एक अहम फैसला देते हुए कैंसर की दवा ग्लिवेक (इमैटिनिब मेसिलेट) पर स्विस कंपनी नोवार्टिस एजी के पेटेंट का दावा खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि कंपनी पेटेंट की जांच पर खरी नहीं उतरी।
न्यायमूर्ति आफताब आलम तथा न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की पीठ ने बौद्धिक संपदा अपीली बोर्ड के निर्णय को चुनौती देने वाली स्विट्जरलैंड की कंपनी नोवार्टिस की याचिका खारिज कर दी।
चेन्नई स्थिति बौद्धिक संपदा अपीली बोर्ड ने वर्ष 2006 में दवा पेटेंट करवाने से संबंधित नोवार्टिस की याचिका खारिज कर दी थी, जिसे कंपनी ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। नोवार्टिस एजी ने दावा किया था कि इमैटिनिब मेसिलेट के बीटा क्रिस्टलाइन रूप का अविष्कार उसी ने किया है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा कि इससे मरीजों को सस्ती जीवन रक्षक दवाएं उपलब्ध हो सकेंगी।
मुंबई के कैंसर रोगी सहायता संगठन से जुड़ी वाईके सप्रू ने कहा, "यह ऐतिहासिक निर्णय है। इस फैसले का दूरगामी और व्यापक प्रभाव होगा, क्योंकि जेनरिक दवाओं के उत्पादन से गरीब मरीजों को उपचार में सहूलियत होगी।"
सप्रू ने आगे बताया, "इस फैसले के बाद जीवन रक्षक दवाओं की कीमतें घटकर 160,000 रुपया प्रति महीना से 6,000 रुपया महीना तक आ जाएंगी।"
सप्रू के अतिरिक्त इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में कैंसर के वरिष्ठ चिकित्सक समीर कौल तथा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में चिकित्सक पीके जुल्का ने भी न्यायालय के इस फैसले की तारीफ की।
न्यायमूर्ति आलम ने नोवार्टिस के दावे को 'पेटेंट के अधिकार क्षेत्र से इतर' बताया। उन्होंने कहा, "भारतीय पेटेंट अधिनियम की धारा तीन (डी) का चाहे जिस तरह से विश्लेषण किया जाए, नोवार्टिस यह दावा नहीं कर सकती कि यह कोई पेटेंट है। यह पेटेंट की योग्यता की जांच में विफल हुई।"
भारतीय पेटेंट अधिनियम की धारा तीन (डी) को बरकरार रखते हुए न्यायालय ने कहा कि इस धारा का संशोधित पक्ष केवल उचित अविष्कारों के लिए है।
रक्त कैंसर की इस दवा पर पेटेंट को लेकर जारी कानूनी जंग पर कई अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनियों की नजर टिकी हुई थी। नोवार्टिस, ग्लिवेक जैसी सस्ती दवा के पेटेंट के लिए लंबे समय से प्रयासरत थी। यदि कंपनी को इसमें कामयाबी मिल जाती तो भारतीय कंपनियों को जेनरिक दवाओं के निर्माण से प्रतिबंधित कर दिया जाता।
दूसरी तरफ सर्वोच्च न्यायलय के फैसले पर टिप्पणी करते हुए नोवार्टिस के भारत के प्रबंध निदेशक रंजीत शाहनी ने इसे बेहद निराशाजनक बताया।
रंजीत शाहनी ने मुंबई में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "यह निर्णय मरीजों के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि इससे चिकित्सा के विकास में बाधा पहुंचेगी और बीमारियों के लिए बेहतर उपचार का विकल्प प्रदान करने में अवरोध उत्पन्न होगा।"
सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को एक अहम फैसला देते हुए कैंसर की दवा ग्लिवेक (इमैटिनिब मेसिलेट) पर स्विस कंपनी नोवार्टिस एजी के पेटेंट का दावा खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि कंपनी पेटेंट की जांच पर खरी नहीं उतरी।
न्यायमूर्ति आफताब आलम तथा न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की पीठ ने बौद्धिक संपदा अपीली बोर्ड के निर्णय को चुनौती देने वाली स्विट्जरलैंड की कंपनी नोवार्टिस की याचिका खारिज कर दी।
चेन्नई स्थिति बौद्धिक संपदा अपीली बोर्ड ने वर्ष 2006 में दवा पेटेंट करवाने से संबंधित नोवार्टिस की याचिका खारिज कर दी थी, जिसे कंपनी ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। नोवार्टिस एजी ने दावा किया था कि इमैटिनिब मेसिलेट के बीटा क्रिस्टलाइन रूप का अविष्कार उसी ने किया है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा कि इससे मरीजों को सस्ती जीवन रक्षक दवाएं उपलब्ध हो सकेंगी।
मुंबई के कैंसर रोगी सहायता संगठन से जुड़ी वाईके सप्रू ने कहा, "यह ऐतिहासिक निर्णय है। इस फैसले का दूरगामी और व्यापक प्रभाव होगा, क्योंकि जेनरिक दवाओं के उत्पादन से गरीब मरीजों को उपचार में सहूलियत होगी।"
सप्रू ने आगे बताया, "इस फैसले के बाद जीवन रक्षक दवाओं की कीमतें घटकर 160,000 रुपया प्रति महीना से 6,000 रुपया महीना तक आ जाएंगी।"
सप्रू के अतिरिक्त इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में कैंसर के वरिष्ठ चिकित्सक समीर कौल तथा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में चिकित्सक पीके जुल्का ने भी न्यायालय के इस फैसले की तारीफ की।
न्यायमूर्ति आलम ने नोवार्टिस के दावे को 'पेटेंट के अधिकार क्षेत्र से इतर' बताया। उन्होंने कहा, "भारतीय पेटेंट अधिनियम की धारा तीन (डी) का चाहे जिस तरह से विश्लेषण किया जाए, नोवार्टिस यह दावा नहीं कर सकती कि यह कोई पेटेंट है। यह पेटेंट की योग्यता की जांच में विफल हुई।"
भारतीय पेटेंट अधिनियम की धारा तीन (डी) को बरकरार रखते हुए न्यायालय ने कहा कि इस धारा का संशोधित पक्ष केवल उचित अविष्कारों के लिए है।
रक्त कैंसर की इस दवा पर पेटेंट को लेकर जारी कानूनी जंग पर कई अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनियों की नजर टिकी हुई थी। नोवार्टिस, ग्लिवेक जैसी सस्ती दवा के पेटेंट के लिए लंबे समय से प्रयासरत थी। यदि कंपनी को इसमें कामयाबी मिल जाती तो भारतीय कंपनियों को जेनरिक दवाओं के निर्माण से प्रतिबंधित कर दिया जाता।
दूसरी तरफ सर्वोच्च न्यायलय के फैसले पर टिप्पणी करते हुए नोवार्टिस के भारत के प्रबंध निदेशक रंजीत शाहनी ने इसे बेहद निराशाजनक बताया।
रंजीत शाहनी ने मुंबई में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "यह निर्णय मरीजों के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि इससे चिकित्सा के विकास में बाधा पहुंचेगी और बीमारियों के लिए बेहतर उपचार का विकल्प प्रदान करने में अवरोध उत्पन्न होगा।"
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