
नई दिल्ली:
देशभर के सरकारी और प्राइवेट कॉलेजों में मेडिकल दाखिलों की कमान देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने संभाल ली है। 5 जजों की संविधान पीठ ने एक अहम फैसला सुनाते हुए संविधान द्वारा दिए गए आर्टिकल 142 का इस्तेमाल कर न सिर्फ पूर्व चीफ जस्टिस आरएम लोढा कमेटी गठन किया है, बल्कि कहा है कि मेडिकल दाखिले की प्रक्रिया सरकार की देखरेख में ही होनी चाहिए।
कोर्ट ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया पर भी जमकर सवाल उठाए हैं। मध्य प्रदेश के प्राइवेट डेंटल कॉलेज के मामले में फैसला सुनाते हुए देश में मेडिकल दाखिलों की मौजूदा व्यवस्था पर कड़ी टिप्पणियां की गई हैं।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के जरिये कॉलेजों में होने वाली दाखिला प्रक्रिया की निगरानी के लिए रिटायर्ड चीफ जस्टिस आरएम लोढा की अध्यक्षता में कमिटी बनाई। पूर्व सीएजी विनोद राय और आईएलबीएस के निदेशक शिव सरीन कमिटी के सदस्य होंगे।
- कोर्ट ने कहा कि इस फैसले से प्राइवेट कॉलेजों की स्वायत्ता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
- CET या फीस का मुद्दा राज्य के पास था, लेकिन NEET के नोटिफिकेशन के बाद ये केंद्रीय कानून के तहत होगा।
- अब ये मामला केंद्र और राज्य के बीच होगा, जिसे आर्टिकल 254 के तहत आपस में सुलाझाया जाएगा।
- जस्टिस लोढा कमेटी तब तक काम करेगा जब तक केंद्र सरकार MCI की कार्यप्रणाली को दुरुस्त करने के लिए कोई इंतजाम नहीं करती।
- MCI कोई भी फैसले खुद नहीं ले पाएगी और उसे जस्टिस लोढा कमेटी की इजाजत की जरूरत होगी।
- कमेटी अपने फैसले या निर्देश जारी करने के लिए आजाद है।
- जस्टिस लोढा कमेटी MCI एक्ट के तहत सारे अधिकारों की निगरानी करेगी और दो हफ्तों में इसका नोटिफिकेशन जारी की जाए।
प्राइवेट कॉलेजों पर सख्त हुआ सुप्रीम कोर्ट
अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज CET को पारदर्शी और सही तरीके से कराने में नाकाम रहे हैं। जिसकी वजह से मेधावी और कमजोर वर्ग के छात्र दाखिले से वंचित रह जाते हैं, जबकि लाखों रुपये की कैपिटेशन फीस लेकर दाखिले दिए जाते हैं। सरकार के पास टेस्ट कराने के बेहतर तरीके होते हैं और उनका आसानी से पता लगाया जा सकता है, क्योंकि सरकार RTI, लोकायुक्त आदि के दायरे में रहती है। प्राइवेट कॉलेजों में दाखिलों के लिए सरकार के नामांकित लोग भी प्राइवेट कॉलेजों से जुड़े लोग होते हैं, जिनका बड़ा व्यावसायिक हित होता है।
मेडिकल काउंसिल पर भी उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और हाईकोर्ट की कमेटी का हवाला देते हुए कहा कि MCI का गठन देश में मेडिकल सेवाओं की बेहतरी के लिए किया गया, लेकिन अभी तक वो अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहा है और कोई भी बदलाव करने में नाकाम रही है। वो अपनी मूलभूत जिम्मेदारी को भी नहीं निभा पाया। जो मेडिकल प्रोफेशनल आ रहे हैं वे पूरी तरह तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि ये लोग प्राइमरी हेल्थ सेंटर या जिला स्तर पर उपयुक्त नहीं हैं। ये ग्रेजुएट मूलभूत जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहते हैं, इसलिए इस पेशे में अनैतिकता आ गई है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मैनेजमेंट कोटे में आधी सीटें राज्य की प्रवेश परीक्षा के ज़रिये भरने के मध्य प्रदेश सरकार के कानून को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट NEET मामले की सुनवाई 3 मई को करेगा।
क्या है आर्टिकल 142
दरअसल संविधान के आर्टिकल 142 में सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार दिया गया है कि जब सरकार किसी दायित्व का निर्वहन करने में नाकाम रहती है, तो सुप्रीम कोर्ट उस पर फैसला सुना सकता है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए यूपी में लोकायुक्त नियुक्त किया था।
कोर्ट ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया पर भी जमकर सवाल उठाए हैं। मध्य प्रदेश के प्राइवेट डेंटल कॉलेज के मामले में फैसला सुनाते हुए देश में मेडिकल दाखिलों की मौजूदा व्यवस्था पर कड़ी टिप्पणियां की गई हैं।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के जरिये कॉलेजों में होने वाली दाखिला प्रक्रिया की निगरानी के लिए रिटायर्ड चीफ जस्टिस आरएम लोढा की अध्यक्षता में कमिटी बनाई। पूर्व सीएजी विनोद राय और आईएलबीएस के निदेशक शिव सरीन कमिटी के सदस्य होंगे।
- कोर्ट ने कहा कि इस फैसले से प्राइवेट कॉलेजों की स्वायत्ता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
- CET या फीस का मुद्दा राज्य के पास था, लेकिन NEET के नोटिफिकेशन के बाद ये केंद्रीय कानून के तहत होगा।
- अब ये मामला केंद्र और राज्य के बीच होगा, जिसे आर्टिकल 254 के तहत आपस में सुलाझाया जाएगा।
- जस्टिस लोढा कमेटी तब तक काम करेगा जब तक केंद्र सरकार MCI की कार्यप्रणाली को दुरुस्त करने के लिए कोई इंतजाम नहीं करती।
- MCI कोई भी फैसले खुद नहीं ले पाएगी और उसे जस्टिस लोढा कमेटी की इजाजत की जरूरत होगी।
- कमेटी अपने फैसले या निर्देश जारी करने के लिए आजाद है।
- जस्टिस लोढा कमेटी MCI एक्ट के तहत सारे अधिकारों की निगरानी करेगी और दो हफ्तों में इसका नोटिफिकेशन जारी की जाए।
प्राइवेट कॉलेजों पर सख्त हुआ सुप्रीम कोर्ट
अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज CET को पारदर्शी और सही तरीके से कराने में नाकाम रहे हैं। जिसकी वजह से मेधावी और कमजोर वर्ग के छात्र दाखिले से वंचित रह जाते हैं, जबकि लाखों रुपये की कैपिटेशन फीस लेकर दाखिले दिए जाते हैं। सरकार के पास टेस्ट कराने के बेहतर तरीके होते हैं और उनका आसानी से पता लगाया जा सकता है, क्योंकि सरकार RTI, लोकायुक्त आदि के दायरे में रहती है। प्राइवेट कॉलेजों में दाखिलों के लिए सरकार के नामांकित लोग भी प्राइवेट कॉलेजों से जुड़े लोग होते हैं, जिनका बड़ा व्यावसायिक हित होता है।
मेडिकल काउंसिल पर भी उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और हाईकोर्ट की कमेटी का हवाला देते हुए कहा कि MCI का गठन देश में मेडिकल सेवाओं की बेहतरी के लिए किया गया, लेकिन अभी तक वो अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहा है और कोई भी बदलाव करने में नाकाम रही है। वो अपनी मूलभूत जिम्मेदारी को भी नहीं निभा पाया। जो मेडिकल प्रोफेशनल आ रहे हैं वे पूरी तरह तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि ये लोग प्राइमरी हेल्थ सेंटर या जिला स्तर पर उपयुक्त नहीं हैं। ये ग्रेजुएट मूलभूत जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहते हैं, इसलिए इस पेशे में अनैतिकता आ गई है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मैनेजमेंट कोटे में आधी सीटें राज्य की प्रवेश परीक्षा के ज़रिये भरने के मध्य प्रदेश सरकार के कानून को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट NEET मामले की सुनवाई 3 मई को करेगा।
क्या है आर्टिकल 142
दरअसल संविधान के आर्टिकल 142 में सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार दिया गया है कि जब सरकार किसी दायित्व का निर्वहन करने में नाकाम रहती है, तो सुप्रीम कोर्ट उस पर फैसला सुना सकता है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए यूपी में लोकायुक्त नियुक्त किया था।
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